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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

अन्य रंगदार लोग भी स्वभावत: उनकी चपेटमें आ जाते है। लॉर्ड मिलनरने दोनों में कोई भेद करनेसे इनकार कर दिया है और इसका भारतीयोंको परिणाम भोगना पड़ेगा। पुलिस कमिश्नरने कृपा करके हिदायतोंमें यह जरूर जोड़ दिया है कि १९०२ के २८ वें अध्यादेशके अनुसार मुक्त वतनियों और ऊँची श्रेणीके रंगदार लोगोंके साथ कोई छेड़छाड़ न की जाये। इसलिए पुलिसको बहुत ही कष्टप्रद कर्त्तव्य पूरा करना होगा। उसे ऊँची श्रेणीके और दूसरे रंगदार लोगोंकी पहचान करने में प्रवीण बनना पड़ेगा। स्पष्टतः ऐसी कोई कसौटी तो तय नहीं की गई, जिससे पता लगे कि उच्च श्रेणीका रंगदार मनुष्य कौन है। इसलिए यह निर्णय पूरी तरहसे पुलिसके विवेकाधीन रहेगा। पुलिस कमिश्नरको शायद यह नहीं सूझा कि ऐसी हिदायतोंसे बहुत बड़ी मात्रामें चिढ़ और असुविधा उत्पन्न हुए बिना नहीं रहेगी। जिन नियमोंका क्षेत्र इतना अनिश्चित है उनकी अपेक्षा सब सम्बन्धित लोगोंके लिए यह कहीं बेहतर होता कि नियम जैसे है वैसे ही लागू किये जायें, और पैदल पटरियोंपर चलनेसे सभी रंगदार लोगोंको मना कर दिया जाये। यह कठोर उपाय हो सकता है; परन्तु यदि ट्रान्सवाल-सरकारको रंग-विरोधी नीतिका अनुसरण करना है, तो हमें और कोई हल दिखाई नहीं देता। नये नियम इस बातका एक अतिरिक्त दृष्टान्त उपस्थित करते हैं कि किस प्रकार ब्रिटिश भारतीय संघकी यह शिकायत उचित सिद्ध हो रही है कि ट्रान्सवालके पुराने एशियाई-विरोधी कानून पहलेसे कहीं ज्यादा सख्तीसे काममें लाये जाते हैं, क्योंकि जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, पैदल-पटरी सम्बन्धी नियम बोअर राज्यमें बिलकुल निःसत्व थे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०४

११७. पत्र: डॉ० पोर्टरको


२१ से २४, कोर्ट चेम्बर्स
जोहानिसबर्ग
मार्च १८, १९०४


डॉ० सी० पोर्टर

स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारी

जोहानिसबर्ग

प्रिय डॉ० पोर्टर,

साथका कच्चा रुक्का[१] जैसा मेरे पास आया है वैसा ही आपको भेजता हूँ। मुझे मालूम हुआ है कि, इस हालतमें, बस्तीमें लगभग १५ भारतीय पड़े हैं। उनमेंसे बहुतेरे कंगाल हैं। एक आदमी मर गया है और उसकी लाशको किसीने हटाया नहीं है, या कोई हटानेकी स्थितिमें ही नहीं है।

क्या आप कृपा करके इस मामले में दिलचस्पी लेंगे? स्वयंसेवक बहुत काम कर रहे हैं और बीमारोंकी देखभाल की जा रही है। चन्दा इकट्ठा करनेकी भी कोशिश की जा रही

  1. यह उपलब्ध नहीं है। परन्तु गांधीजीने आत्मकथा (गुजराती, १९५२, पृष्ठ २८८) में कहा है कि मदनजीतके पेन्सिलसे लिखे हुए इस रूक्केका आशय यह था: "यहाँ एकाएक प्लेग फैल गया है। आपको तुरन्त आकर कुछ करना चाहिए, नहीं तो परिणाम भयंकर होगा। फौरन आइए।"