देखे। भारतीयोंने आपसमें स्वेच्छासे चन्दा जमा किया था और कुछ पुरुष स्वयंसेवक-परिचारकोंकी देखरेख में बीमारोंको अपेक्षाकृत आरामसे रख दिया गया था। उस कामचलाऊ अस्पतालको डॉ० गॉडफ्रेने तुरन्त अपने नियन्त्रणमें ले लिया और यह इंतजाम किया कि दवा-दारू जाननेवाला कोई एक शुश्रूषक सारी रात वहाँ मौजूद रहे। श्री गांधीका कहना है कि शनिवारको सुबह टाउन क्लार्कने उनसे मिलकर कहा कि वे नगर-परिषदकी ओरसे कोई आर्थिक दायित्व तो नहीं ले सकते, लेकिन अनुरोधके अनुसार वे स्टेशन रोडवाले सरकारी गोदामको अस्थायी अस्पतालके तौरपर काममें लानेकी इजाजत दे देंगे और जिला-सर्जन डॉ० मैकेंजी व्यवस्थाकी देखरेख करेंगे तथा ब्यौरेकी बातें डॉ० गॉडफ्रेपर छोड़ दी जायेंगी। प्राप्त मकानको स्वयंसेवकों द्वारा साफ कराया गया, उसमें छूतनाशक दवा छिड़की गई, २५ खाटें लाई गईं और साढ़े तीन बजेतक बीमार उसमें दाखिल कर लिये गये। डॉ० मैकेंजीने व्यवस्था की थी कि परिचारिका-बहन वेस्टको परिचारकोंके कामकी देखभाल करने के लिए दाइयोंके निवासस्थानसे यहाँ भेजा जाये। इस समयतक डॉक्टरोंकी राय नहीं बन पाई थी कि लक्षण किस रोगके है। परन्तु बीमारीके जोरके कारण डॉ० मैकेंजी बादमें इस नतीजेपर पहुँचे कि रोगी निमोनियाके प्लेगसे पीड़ित हैं। भर्ती किये गये २५ रोगियोंमें से रविवारकी रातको सिर्फ ५ जिन्दा बचे। इनमेंसे ३ राइटफॉन्टीनके छूतके रोगोंके अस्पतालमें भेज दिये गये। श्री गांधीने अपने बयानमें आगे कहा कि भारतीय समाजने प्लेगको फैलनेसे रोकनेके लिए प्रत्येक उपाय, जो किया जा सकता था, कया है और अबतक उसने हर मामलेकी खबर दी है। एक जन-साधारणकी हैसियतसे बोलते हुए श्री गांधीने अपना यह विचार प्रकट किया कि यदि ठीक-ठीक सावधानी बरती जाती तो बीमारी फैली न होती। वे उन स्थानोंपर रोगियोंकी सेवा करते रहे हैं, जहाँ प्लेगसे असाधारण मौतें हुई है। परन्तु जो लोग बीमारोंके सम्पर्कमें आये उनकी खूब सावधानी रखनेके कारण रोग पृथक किये हुए स्थानतक ही सीमित रहा है। अन्तमें श्री गांधीने कहा, "मेरी रायमें प्लेग फैलनेका एकमात्र कारण अस्वच्छ क्षेत्रकी गन्दगी और भीड़-भाड़की हालत थी। हालकी वर्षाने उसे और भी बढ़ा दिया था। मैं नहीं समझता कि रोगके कीटाणु बाहरसे ही आये होंगे। प्लेग एक उग्र प्रकारके निमोनियासे अधिक कुछ नहीं है। उसके फैलनेका दोष भारतीय समाजपर बिलकुल नहीं है। सरकारी तन्त्र ही दोषपूर्ण है और, मैं पूरे और उचित आदरके साथ कहता हूँ कि, यदि लोक-स्वास्थ्य समिति अधिक कार्य-कुशल होती तो प्लेग फैलता ही नहीं। अब तो सिर्फ एक ही बात की जा सकती है कि, अस्वच्छ क्षेत्रकी सारी इमारतें जला दी जायें और लोगोंको एक अस्थायी शिविरमें ले जाया जाये और उन्हें भोजन दिया जाये। इसमें खर्च तो होगा, परन्तु वह करने लायक होगा।
स्टार, २१-३-१९०४