डॉक्टरी सहायता दी गई। डॉक्टर ग्रॉडफ्रे अभी-अभी ग्लासगोसे आये थे। उन्होंने अपनी सेवाएँ समाजको मुक्त रूपमें सौंप दी। बादमें, उसी दिन (शुक्रवारको) स्वास्थ्य-निरीक्षक मौकेपर पहुँचे और उन्होंने सहायताका हाथ बढ़ाया। लेकिन अभीतक वे सरकारी तौरपर जिम्मेदारी लेने में असमर्थ थे। कुछ मकानोंको कब्जे में लेकर अस्थायी अस्पताल बना दिया गया। जिन्होंने इस अस्पतालका दृश्य देखा है—उन मरीजोंको तड़पते हुए, जिन्हें कभी बीमार होना ही नहीं था; डॉ० ग्रॉडफे, श्री मदनजीत और नौजवान शिक्षित भारतीयोंको भारी खतरा उठाकर शुश्रूषक बने हुए तथा उन छोटे-छोटे कमरोंमें भरे १४ मरीजोंकी सावधानताके साथ सेवा करते हुए; और उन मरीजोंको एकके बाद एक मौतके मुंहमें समाते हुए—वे उस दृश्यको कभी भूलेंगे नहीं। वह दृश्य भीषण भी था और प्रेरणाप्रद भी—भीषण उस दारुण शोका घटनाके फलस्वरूप और प्रेरणाप्रद इसलिए कि उससे समाजके प्रसंगानुकूल उठ खड़े होने और संगठन करनेके सामर्थ्यका दर्शन हुआ। जहाँ एक बाड़ेमें बीमारोंकी देखभाल की जा रही थी, वहीं दूसरे बाड़ेमें एक बहत बड़ी आम सभा हो रही थी। गरीब-अमीर सबने मिलकर कोई एक हजार पौंड चन्दा जमा किया, ताकि समाजके उपयोगके लिए एक स्थायी अस्पताल खड़ा किया जा सके। जिस ढंगसे गरीबोंने आगे आकर चन्दा दिया वह उनके लिए बहुत ही श्रेयास्पद है।
शनिवारको प्रातःकाल ऐसा मालूम हुआ कि अधिकारियोंने स्थितिको समझा है। उन्होंने एक बहुत बड़े गोदामको, जो पुराना चुंगीघर था, अस्थायी अस्पतालके लिए दे दिया। फिर भी, टाउन क्लार्कने उस समय कोई आर्थिक दायित्व लेनेसे इनकार कर दिया और बिस्तर, चटाइयाँ वगैरा जुटानेका काम समाजपर छोड़ दिया। किन्तु भारतीयोंको रुपये-आने-पैसेकी गिनती करते रहनेकी गुंजाइश नहीं थी, और उन्होंने इंतजाम अपने हाथमें ले लिया। जिलासर्जनने बड़ी कृपा करके एक बहुत अच्छी तालीम पाई हुई दाई दे दी और अन्तमें २५ रोगियों में से पाँचको संक्रामक रोगोंके अस्पतालमें पहुंचा दिया गया है और प्लेग फैल जानेकी सरकारी तौरपर घोषणा कर दी गई है। इस प्रकार, नगर-परिषदको समयपर सहायतार्थ आनेके लिए गरीबोंके मक्खियोंकी तरह मरनेका दृश्य देखनेकी जरूरत हुई है। फिर भी किसी व्यक्ति-विशेषका कोई दोष नहीं है, क्योंकि अलग-अलग सभी भलाई करनेको उत्सुक रहे हैं। इस भयंकर दुर्घटनाके लिए दोषी वह निष्प्राण, भारी-भरकम नगर-निगम है, जो लाल फीतेसे बँधा हुआ है और कल्पनाओंपर पनपता है। बस्तीके चारों ओर अब घेरा डाल दिया गया है, यद्यपि दूसरे जिलोंमें भी प्लेगकी घटनाएँ हुई हैं। परन्तु भारतीय समाज अपने कष्टोंको अपनी परम्पराओंके योग्य वीरतापूर्ण धैर्य के साथ सहन कर रहा है।
इंडियन ओपिनियन, २४-३-१९०४