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१२१. प्लेग[१]

जोहानिसबर्ग
मार्च ३०, १९०४

आजतकके आँकड़े ये हैं :

गोरे
निश्चित रोगी
संदिग्ध रोगी
 

रंगदार
संदिग्ध
 
एशियाई
निश्चित
संदिग्ध
 
५०
वतनी

निश्चित
संदिग्ध
 

२३

निश्चित प्लेग रोगियोंकी मृत्युसंख्या

गोरे
एशियाई
४७
वतनी

लगभग ये सभी आँकड़े प्लेग फैलनेकी जानकारी हो चुकने के बादके हैं, अर्थात्, सत्यानाशी २०वीं तारीखके बाद बहुत कम नये लोग बीमार हुए हैं। पहले दो दिन ही, जब बीमारों को समेटा जा रहा था, मृत्युसंख्या अधिक रही। और, एशियाइयोंके अधिक संख्यामें बीमार होने तथा मरनेके कारणोंका पता भी इससे लग जाता है। निमोनियाकी बीमारीने प्लेगका रूप पहले भारतीयों में धारण किया। डॉक्टरोंने उन मामलोंको मामूली माना। सावधानियाँ नहीं बरती गईं। यह चेतावनी देनेके बावजूद कि यह प्लेग है, अधिकारियोंको भरोसा नहीं हुआ। और छूत फैली। इससे सबक यह मिलता है कि मामूली मामलों में भी साधारण सावधानी बरती जानी चाहिए। हर बीमारी कम-ज्यादा संक्रामक होती है। फिर छूत-नाशक औषधियोंको अच्छी तरह छिड़कने और, उस घरमें ही सही, बीमारको अलग करनेमें क्या बिगड़ता है।

यह दंतकथा कि केवल भारतीय बस्ती में ही छूत है, अभीतक चलाई जा रही है; और शायद यह अच्छी बात है। इससे लोगों को संतोष होता है और उनमें निरर्थक भय नहीं फैलता।

जब घेरा डाला गया तब बस्ती में १,३६१ भारतीय थे। इनमें से ८०० से ऊपर क्लिप्सप्रूटमें हटा दिये गये हैं। यह स्थान जोहानिसबर्ग के मार्केट-स्क्वेयर से लगभग १२ मील है। जिन भारतीयोंको दुर्भाग्यवश सूतक (क्वारंटीन) में रहना पड़ा है उनके व्यवहारसे अधिकारी पूरी तरह संतुष्ट हैं। वे भी अपनी तरफसे भारतीयोंको आवश्यक सुविधायें दे रहे हैं। धार्मिक आग्रहोंका आदर किया जाता है। घेरेके लोगोंको भोजन काफी उदारतापूर्वक दिया जाता है।

  1. यह "हमारे जोहानिसबर्ग संवाददाता द्वारा प्राप्त" रूपमें प्रकाशित हुआ था।