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प्लेग

लोगोंको भेजना विचारपूर्वक होता है और मारधाड़में होनेवाली बातोंमें अनिवार्य त्रुटियोंकी शिकायतोंपर तत्काल ध्यान दिया जाता है। पूरी बस्ती इस हफ्तेमें खाली हो जायेगी और इमारतें जलाकर राख कर दी जायेंगी। इस तरह, जो काम पिछले साल २६ सितम्बरको, जब कथित अस्वच्छ क्षेत्रकी बेदखली की जा रही थी होना था, इस समय भयभीत मनःस्थितिमें अंधाधुंध खर्चपर हो रहा है।

क्लिप्सप्रूटमें श्री बर्जेस खीमेकी देखरेख में हैं। जनताके जो प्रिय बन गये है वे डॉ० विलियम ग्रॉडफ्रे वहाँ नगर-परिषदकी ओरसे सहायक चिकित्सा-निरीक्षक नियुक्त कर दिये गये हैं और निस्सन्देह कुछ ही दिनोंमें खीमा व्यवस्थित रूपसे चलने लगेगा।

जोहानिसबर्गके अधिकारी सहूलियतसे काम ले रहे हैं। किन्तु दुर्भाग्यवश प्रिटोरियाको छोड़कर ट्रान्सवालकी दूसरी जगहोंके बारेमें यही बात नहीं कही जा सकती। डॉ० पेक्सके अनुसार, पीटर्सबर्ग, क्रूगर्सडॉर्प और पॉचेफ़स्ट्रममें केवल प्लेगकी रोकथाम ही नहीं की जा रही है, भारतीय-समाजकी दुरवस्थासे पूरा-पूरा लाभ उठाकर उनका उन्मूलन करनेकी कोशिश की जा रही है। व्यापारिक ईर्ष्या खुलकर खेल रही है और प्लेगकी रोकथामके बहाने भारतीय व्यापारकी जड़ें उखाड़ी जा रही हैं। जैसे बने वैसे उनकी राहमें रोड़े अटकाये जा रहे हैं। किन्तु भारतीय धीरज और बहादुरीसे इन तकलीफोंका सामना कर रहे हैं। यूरोपीय व्यापारियोंकी बन आई है। किन्तु यदि भारतीय शान्त बने रहे तो उन्हें हानि पहुँचानेवाले लोगोंके प्रयत्न निष्फल हो जायेंगे। क्रूगर्सडॉर्पमें भारतीयोंका सन्तप्त हो उठना ठीक ही था। लगता था परिस्थिति बहुत विषम हो जायेगी, किन्तु श्री रिच[१] वहाँ पहुँच गये हैं और मामला सद्भावसे सुलझ गया है। भारतीयोंके लिए यह समय अपने अधिकारोंपर अड़नेका नहीं है, कष्ट भोगकर अपनी जिम्मेदारी समझनेका है। प्लेग पहले उनमें फैला था। रोगियोंकी सर्वाधिक संख्या भी उन्हींमें है। जनताका निष्कर्ष यह है कि इस अनिष्टको जड़ भारतीय ही है। यह सही-गलत जो हो, इसे मानना तो होगा ही। और भारतीय समाज धैर्यपूर्वक कष्ट सहकर य दिन काट रहा है, यह ठीक ही है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९०४
  1. एल० डब्ल्यू रिच, उस समय गांधीजी के मुंशी।