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ट्रान्सवालका एशियाई व्यापारी-आयोग


क्या लोक-स्वास्थ्य समितिकी तरह उन्होंने भी प्रकृतिके प्रति अपने अपराधका कोई प्रायश्चित्त किया है? हमें जोरके साथ 'हाँ' कह सकने में खुशी है। जब परिषद सोई हुई थी तब वे जाग गये। जिस क्षण उन्हें अनुभव हो गया कि रोग अत्यन्त भयंकर रूपमें शुरू हो गया है, उसी क्षण उन्होंने प्रशंसनीय परिश्रम और धैर्यके साथ काम शुरू कर दिया। उन्होंने एक कामचलाऊ अस्पताल खोला और चन्दा इकट्ठा किया; रोगियोंकी सेवा और दूसरे जरूरी कामोंके लिए स्वयंसेवक आगे बढ़े; बीमारीकी हरएक घटनाकी जानकारी अधिकारियोंको दी गई; और अपने ऊपर लगाई गई विशेष पाबन्दियोंका अत्यन्त सहिष्णुतासे पालन किया गया। यह सब समाधानकारक और श्रेयास्पद है। इससे उनकी कानून और व्यवस्थाके पालनकी वृत्ति प्रकट होती है और यह भी जाहिर होता है कि उनपर अत्यधिक पाबन्दियाँ लगाना अथवा उन्हें अत्यधिक कठिनाइयोंमें डालना किसी भी बिनापर उचित नहीं होगा। जो समाज नियन्त्रणमें रह सकता है उसके भीतरी दोष आसानीसे दूर किये जा सकते हैं। परन्तु यदि भारतीय समाज कोई स्थायी पाठ नहीं सीखेगा और इस अग्नि-परीक्षाके बाद भी किसी देखरेख अथवा नियन्त्रणके बिना स्वेच्छासे सफाईके नियमोंपर अच्छी तरह ध्यान नहीं देगा तो उसको जो दंड मिला है वह बहुत थोड़ा ही होगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २-४-१९०४

१२३. ट्रान्सवालका एशियाई व्यापारी-आयोग

मार्च १६ को एशियाई व्यापारी आयोगकी पहली नियमित बैठक हुई थी। जोहानिसबर्ग लीडरसे हम उसकी कार्रवाई एक अन्य स्तम्भमें उद्धृत कर रहे हैं।

आयुक्तोंने निर्णय किया है कि उन्हें उन ब्रिटिश भारतीय व्यापारियोंके दावोंपर विचार करनेका अधिकार नहीं है जो यह साबित नहीं कर सकते कि वे लड़ाईसे ठीक पहले पृथक् बस्तियोंके बाहर परवाने लेकर व्यापार कर रहे थे, और लड़ाई छिड़ जानेके कारण अपना व्यवसाय छोड़नेको मजबूर हुए थे। इसका अर्थ यह है कि, जो लोग ट्रान्सवालमें १५ वर्षसे व्यापार करते थे; परन्तु जिन्होंने, यों कहिए कि, अगस्त १८९९में अपना व्यवसाय खतम कर दिया था, उनकी आयुक्तोंके आगे कोई हैसियत नहीं है और यदि इस सीमित विचार-क्षेत्रके अन्तर्गत आयुक्तोंके प्रतिवेदनपर ही मामला खत्म हो जाता है तब तो परवानोंके बलपर इस समय व्यापार करते हुए सैकड़ों भारतीय व्यापारी अपना व्यापारका अधिकार खो देंगे और फलस्वरूप बिलकुल बरबाद हो जायेंगे। परन्तु यह निर्णय भले ही कठोर दिखाई देता हो, आयुक्तोंके सामने कोई दूसरा मार्ग नहीं था। सच तो यह है कि हमने अपने पाठकोंको इसके लिए पहले ही तैयार कर दिया था, जब हमने कुछ समय पूर्व इस प्रश्नकी चर्चा की थी।[१] आयोगके विचारणीय विषयोंकी सूचीकी भाषामें बचावकी कोई गुंजाइश नहीं रखी गई है; उसमें केवल यह कहा गया है कि आयुक्त उन लोगोंके मामलोंपर विचार करेंगे जो बस्तियोंसे बाहर परवानोंके बिना लड़ाई छिड़नेके समय या उससे ठीक पहले व्यापार कर रहे थे। हमें आशा है कि सरकारने विचारणीय विषयावली तैयार करते समय कभी ऐसे किसी

  1. देखिए, "एशियाई व्यापारी-आयोग," १०-३-१९०४।