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१२६. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको


[जोहानिसबर्ग]
अप्रैल ८, १९०४


श्री अर्नेस्ट एफ० सी० लेन

गृह-कार्यालय (ऑफिसेज ऑफ दि इंटीरियर)

केप टाउन

प्रिय श्री लेन,

मैंने संघ-सरकारके गजटमें विवाह-सम्बन्धी घोषणा देखी है, जिसके मुताबिक उन लोगोंके लिए, जो अपना विवाह-संस्कार अपने मुस्लिम या यहूदी विवाह-अधिकारियों द्वारा कराना चाहते हैं, अपने इस विचारकी सचना प्रकाशित करना लाजिमी है। मझे पता नहीं कि यह घोषणा जान-बूझकर की गई है और सरकारकी भावी नीतिका पूर्व-संकेत करनेवाली है, अथवा यहूदियोंके लिए जरूरी हुई है और उसमें जिस नेटाल विवाह-कानूनका उल्लेख किया गया है उसके अनसार मुसलमानोंका उल्लेख करना आवश्यक हो गया है। अगर पहली बार तो मैं जनरल स्मट्सका[१] ध्यान इस तथ्यकी ओर खींचना चाहता हूँ कि मैंने भारतीय समाजकी ओरसे जो-कुछ निवेदन किया है, सो यह है कि, भारतीय धार्मिक रीति-रिवाजोंके अनुसार जो एकपति-पत्नी विवाह हो चुके है उन्हें कानून-सम्मत करार दिया जाये और भविष्यमें भी ऐसे विवाह वैध माने जायें। विचाराधीन विवाह-सम्बन्धी घोषणासे विवाहके निर्णय, विधि इत्यादिके प्रकाशनका ऐसा दौर शुरू हो जायेगा, जो हिन्दू और मुस्लिम दोनोंके रीति-रिवाजोंके सर्वथा विरुद्ध है। और न ऐसे प्रकाशनकी आवश्यकता ही है, क्योंकि उक्त दोनों मजहबोंमें विवाह-संस्कार अत्यन्त उपचारपूर्वक किये जाते हैं, जिसके फलस्वरूप धोखाधड़ीवाले विवाह असम्भव हो जाते हैं। मुझे लगता है कि जब आयोगकी सिफारिशोंको अमली शक्ल देने के लिए कानूनका मसविदा बनाया ही जा रहा है, तभी मुझे यह बात जनरल स्मट्सके ध्यानमें ला देनी चाहिए।

इसके अतिरिक्त, श्री मेलरको श्री बर्टनने जो उत्तर दिया है उसमें मैंने देखा है कि रेलवे विभागमें काम करनेवाले गिरमिटिया भारतीयोंने तीन पौंडी करकी किस्तोंके रूपमें अपनी मजदूरीमें से कुछ रकम कटवा दी है। मेरा नम्र निवेदन है कि आयोगने इस करके बारेमें जो रुख जाहिर किया है उसका तथा अदायगीकी इस प्रणालीको जारी रखनेका मेल नहीं बैठता। जिन विषयोंपर आयोगको सिफारिशें करनी थीं उनमें से एक मुख्य विषय ३ पौंडी कर था। निवेदन है कि कमसे-कम आयोगका विवरण प्राप्त होनेके समयतक सरकार यह कटौती रोके रहती तो अच्छा होता। और चूंकि आयोग इस करको खतम कर देनेके बारे में ऐसी जोरदार सिफारिशें पेश कर चुका है, मैं पूरी आशा करता हूँ कि सम्बन्धित अधिकारियोंको अगर अभीतक हिदायतें नहीं दी गई है तो अब दे दी जायेंगी कि वे कटौतीपर आग्रह न करें; क्योंकि मेरी यह धारणा है कि यदि सरकारने इस करको रद करनेका विधयक पेश किया तो पिछला कर वसूल न किया जायेगा।

आपका सच्चा,

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ५९५७) से।

  1. जॉन क्रिश्चियन स्मट्स (१८७०-१९५०) लोकदलके एक संस्थापक, उपनिवेश सचिव और शिक्षा-मन्त्री (१९०६), प्रतिरक्षा, खान और गृहकार्य मन्त्री (१९१०) और प्रधान मन्त्री (१९१९-२४ और १९३९)।