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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२०५

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तिब्बतको प्रेषित मिशन

दारोंके लिए उनका हटाया जाना और उनका व्यवसाय बन्द हो जाना एक तरहसे बरबादी ही है, क्योंकि जब शिविरका सूतक (क्वारंटीन) खतम हो जायेगा तब उनके जानेके लिए कोई स्थान नहीं होगा, और इसमें शंका है कि स्थायी स्थानके मुकर्रर होनेतक अधिकारी उन्हें नगरकी सीमाके भीतर दूकानें खोलनेकी इजाजत देंगे। इसके सिवा उनका सारा माल नगरपालिकाने अपने गोदाममें रख दिया है और यद्यपि गोदाम बहुत अच्छा है फिर भी जिन्हें व्यापारका कुछ भी ज्ञान है वे तुरन्त समझ जायेंगे कि जो चीजें हवा लगाये बिना बहुत समय-तक एक जगह बिखरी रखी जायेंगी उन्हें कितनी हानि पहुँचेगी। समाज इन सारे कष्टों को स्थितप्रज्ञ बनकर सह रहा है और आशा इतनी ही है कि जब प्लेग बिलकुल मिट जायेगा तब उनका धीरज उनको लाभ पहुँचायेगा।

भारतीयों में प्लेग केवल नगर परिषदकी गफलतके कारण फैला। यह इस बातसे प्रमाणित है कि दूरस्थ जिलोंमें भारतीय लगभग अछूते रहे हैं। प्रिटोरियामें जो थोड़े लोग बीमार हुए वे यूरोपीयों और वतनियोंमें हुए । बेनोनीमें दो वतनियोंपर रोगका आक्रमण हुआ है । जमिस्टनमें भी वतनियोंपर ही प्लेगका हमला हुआ है; और इन सब स्थानों में भारतीय अपने ही मकानों-दूकानोंमें रहते रहे हैं। जबसे जोहानिसबर्ग में नगरपालिका एक-एक किरायेदारकी सीधी मालिक-मकान बनी, उसके बादसे ही अत्यधिक भीड़ और गन्दगीकी खराबी पैदा हुई, जिसके साथ यह भयंकर अभिशाप आया ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-४-१९०४

१२८. तिब्बतको प्रेषित मिशन

तिब्बत भेजे गये ब्रिटिश मिशनका तिब्बतियोंसे संघर्ष हो गया है । तिब्बतियोंकी हानिका सरकारी अन्दाजा यह है कि ३०० तिब्बती मारे गये और २०० बन्दी बनाये गये । रायटरने तार द्वारा उस दृढ़ता और साहसकी शानदार तफसील भेजी है, जिसके साथ जोड़ीमें कमजोर और हथियारोंके गरीब तिब्बती नवीनतम शस्त्रोंसे सज्जित अनुशासनबद्ध ब्रिटिश सेनासे लड़े । पीछे हटने में भी शत्रुका ढंग बड़ा ही गौरवास्पद रहा। यहाँतक कि, जिन लोगोंको उसे देखनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ उनके मनपर उसके पीछे हटने के ढंगकी स्थायी छाप भी मालूम होती है । ऐसे धीर और ऐसे वीर लोगोंके साथ सहानुभूति न हो, यह असम्भव है। मिशनके राजनीतिक स्वरूप अथवा उसकी आवश्यकताके बारेमें हमें अभी कुछ नहीं कहना है । यह उचित हो सकता है और नहीं भी । परन्तु यह सोचकर बहुत बड़ा अफसोस होता है कि ऐसे जीवटवाले राष्ट्रको ब्रिटिश सेनाके साथ युद्ध करना पड़ा है। हम इतनी ही आशा रख सकते हैं कि ब्रिटिश नीतिके निर्माताओंने मिशन भेजनेकी जरूरतके बारेमें पूरी तरह अपना इतमीनान कर लिया होगा और जब सब मामला खतम हो जायेगा तब वे जनताके सामने अपनी कार्रवाईको ठीक साबित कर सकेंगे। रायटरने बताया है कि शायद सिख सेनाके महान साहसने मिशनको विपत्ति से बचा लिया। यह खुशखबरी है, यद्यपि इससे आश्चर्य बिलकुल नहीं होता, क्योंकि यह भारतीय सेनाकी परम्पराओंके सर्वथा अनुरूप है । परन्तु इस समाचारसे अनेक विचार उत्पन्न होते हैं । साम्राज्यके अंग होनेके नाते उपनिवेश सिखोंकी वीरताके परिणामोंके भागी बननेके लिए तैयार हो जायेंगे और अगर यह पता चले कि तिब्बतके विशाल पठारोंमें सोना