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पत्र: "रैंड डेली मेल" को

डॉ० पोर्टरको लिखे गये पत्रोंमें तो केवल आनेवाली विपत्तिकी चेतावनी दी गई थी, परन्तु एक बार भी यह कभी नहीं कहा गया था कि प्लेग वास्तवमें फैल गया है।

श्री मैककैनने' सन्दिग्ध मृत्युओंका ब्योरा देनेकी मेरी असमर्थताका जिक्र करते हुए एक ही मुलाकातका हवाला दिया है। बात यों हुई थी । मेरे सामने बाड़ोंके नाम और नम्बर नहीं थे। मैंने उस मुंशीको फोन किया जिसे इस मामलेमें कुछ जानकारी थी, और उसी समय वहीं श्री मैककैनको कमसे-कम तीन आदमियोंके नाम बताये गये जो मेरी राय में प्लेगसे मरे थे। बाड़ोंके नम्बर भी बताये गये थे।


मैंने कभी नहीं कहा है कि काफिरोंको भारतीय बस्ती में पहले-पहल उस समय लाया गया, जब कि बस्तीपर परिषदका अधिकार हो गया था; और मैं मुक्त रूपसे स्वीकार करता हूँ कि मेरे कुछ देशवासियोंने काफिरोंको किरायेदारके रूपमें रखा था। परन्तु मैंने कहा है, और उसे दुहरानेका साहस करता हूँ, कि २६ सितम्बरके बाद उनसे बस्तीको पाट दिया गया, और यह सिद्ध कर सकता हूँ कि कई बाड़ोंमें, जिनमें उस तारीखसे पहले काफिर कभी नहीं रहे थे, उस तारीख के बाद वे भर दिये गये। यदि उस तारीखको जो अधिक भीड़ थी उसे परिषद दूर नहीं कर सकती थी तो मेरी रायमें, उसमें कुछ भी बढ़ती करना अक्षम्य था । और यह बात कि बस्तीमें भारतीय और काफिर दोनोंकी संख्या में वृद्धि हुई, साबित की जा सकती है । बस्तीमें ९६ बाड़े थे । मान लीजिये कि छः बाड़े खाली थे । उन्हें घटा दिया जाये तो २० मार्च १९०४ को बस्तीमें प्रति बाड़े ३५ निवासीसे ऊपर थे। और यदि इनमें आप कमसे कम १,००० और जोड़ दें (यह मेरे खयालसे उन लोगोंकी संख्या है जो मार्च मासमें बस्ती छोड़ गये थे), तो प्रति वाड़ा ४५ हो जाते हैं।

मेरी सबसे बड़ी शिकायत यह नहीं है कि लोक स्वास्थ्य समिति प्लेग फैलनेकी घोषणा करनेमें चूक गई, परन्तु यह है कि वह या नगर परिषद आगेकी बात सोच कर उस विपत्तिका उपाय करनेका अपना फर्ज अदा न कर सकी, जिसकी चेतावनी उसे १९०२ में मिल चुकी थी, १९०३ में दुहराई गई थी और पिछली फरवरीमें और जोरके साथ दोहराई गई थी, यद्यपि कमसे-कम पिछले २६ सितम्बरको वह कारगर तरीकेपर अपना कर्तव्य पालन करनेकी स्थितिमें थी ।

आपका,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९०४

[१] [२]

  1. १. स्वास्थ्य निरीक्षक।
  2. २. यह मुलाकात गांधीजी द्वारा १ मार्चको डॉ० पोर्टरको पत्र लिखनेके शीघ्र बाद हुई थी।