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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२०८

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१३०. प्लेग

यद्यपि प्लेगने जोहानिसबर्गका पिण्ड लगभग छोड़ दिया है, फिर भी भारतीयोंके विरुद्ध पाबन्दियाँ अभी पूरी सख्तीसे लगी हुई हैं। इस कार्रवाई में पॉचेफस्ट्रम अगुआ मालूम होता है, जैसा कि नीचे लिखी बातोंसे स्पष्ट होगा:

१. उन एशियाइयों और रंगदार लोगोंको, जो प्लेग पीड़ित इलाकोंसे पॉचेफस्ट्रम पहुँचें, दोमें से एक बात पसन्द कर लेनेको कहा जाये या तो वे छूत-निवारणके लिए दस दिनोंतक अलग रहें, या जहाँसे आये हैं वहाँ लौट जायें।

२. एशियाइयों और भारतीयोंको शहर-खाससे हटा दिया जाये।

३. पुलिस अधिकारियोंसे अनुरोध किया जाये कि वे एशियाइयों और वतनियोंको मुख्य सड़कोंसे नगरमें घुसने से रोकें।

४. पाँचेफस्ट्रम और जोहानिसबर्ग के बीचके स्टेशनों और जोहानिसबर्गके उत्तरके स्टेशनों से सभी प्रकारके फलौंका आना बन्द कर दिया जाये।

५. लोक स्वास्थ्य उपनियमोंकी धारा ७ छः महीने के लिए लागू कर दी जाये।

६. अपने मालिकोंके साथ आनेवाले अथवा मवेशियोंकी देखभाल करनेवाले वतनियोंको इधरसे उधर गुजरने दिया जाये, बशर्ते कि उनके पास अपने मामूली मासिक पास मौजूद हों, जिनसे यह साबित हो कि वे इसी जिलेके निवासी हैं।

इस प्रकार भारतीयोंकी गतिविधि वतनियोंकी अपेक्षा कहीं अधिक कठोरतासे नियन्त्रित है, हालाँकि जोहानिसबर्गसे बाहरके जिलोंमें अन्य जातियोंकी अपेक्षा भारतीयों में प्लेगकी प्रमुखता हरगिज ज्यादा नहीं रही है। सच तो यह है कि भारतीय प्लेगसे अधिक मुक्त रहे प्रतीत होते हैं। स्वयं जोहानिसबर्गके बारेमें भी, हमने पिछले सप्ताह जो पत्र-व्यवहार छापा था उससे बिलकुल साफ जाहिर होता है कि प्लेग फैलनेका सारा दोष नगर परिषदका है। २६ सितम्बरके बाद—जिस दिन नगर परिषद मालिकके रूपमें वहाँ आई—वहाँ बहुत ज्यादा भीड़-भाड़ हुई। यदि यह अत्यधिक भीड़-भाड़ रोक दी जाती तो शायद उपनिवेशभर में कहीं भी बिलकुल प्लेग न हुआ होता। बस्तीमें रहनेवाले भारतीयोंने इस लज्जाजनक स्थितिपर आपत्ति की थी। उन्हें हालातसे मजबूर होकर ही बस्ती में रहना पड़ा था। वे नगर परिषद के किरायेदार नहीं बनना चाहते थे और उन्होंने कानूनके अनुसार बस्तीके बदले में दूसरे स्थानकी बार-बार माँग की थी। इसलिए यह बिलकुल स्पष्ट है कि जोहानिसबर्ग में जो भयंकर प्लेग फैला, वह ऐसी परिस्थितियों में फैला जो भारतीयोंके काबूसे बिलकुल बाहर थीं। इन तथ्योंकी श्रृंखलासे यह स्वाभाविक निष्कर्ष निकलता है कि भारतीयोंपर जो विशेष प्रतिबन्ध लगाये गये हैं वे सर्वथा अनुचित और अनावश्यक हैं। केन्द्रीय सरकार लाचारीकी स्थिति बता सकती है और कह सकती है कि जबतक स्थानीय अधिकारियोंकी कार्रवाई प्लेगके नियमोंके विरुद्ध नहीं है तबतक वह उसमें दखल नहीं दे सकती। परन्तु हमारी शिकायत तो स्वयं नियमोंके विरुद्ध है, खास तौरपर जब कि उन नियमोंके अनुसार दी गई सत्ताका परिषद और स्थानीय निकाय दुरुपयोग करते हैं और उनको व्यापारिक ईर्ष्या की तृप्तिका साधन बनाते हैं। हमने अनेक बार स्वीकार किया है कि प्लेगके आतंकके दिनों में कुछ कष्ट अनिवार्य होते हैं और इस अभिशापको दूर करनेके लिए स्थानीय अधिकारियोंको पर्याप्त सत्ता देनी चाहिए; परन्तु जब पाँचेफस्ट्रूमकी भाँति स्थानीय अधिकारी सारी मर्यादाओंका