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गल्पका महत्त्व

उल्लंघन करके ब्रिटिश भारतीयोंको अनावश्यक पाबन्दियोंका शिकार बनायें, तब यह कहना पड़ता है कि "अब बस करो"। ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति अनिश्चित तो है ही, प्लेगके फैल जानेके कारण और भी अधिक कठिन हो गई है। और, हमारा खयाल है कि लॉर्ड मिलनरका, जो उनकी अपनी ही उपमाके अनुसार “पहरेके बुर्जपर बैठे हैं" और जिन्हें अपनी आँखोंके आगे होनेवाली सब बातोंको एक विशाल दृष्टिसे देखनेका अवसर प्राप्त है,साफ फर्ज है कि वे निर्दोष भारतीयोंको प्लेगकी सावधानियोंके बहाने और अधिक सताये जानेसे बचायें|

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-४-१९०४

१३१. गल्पका महत्त्व

ट्रान्सवाल उपनिवेशके स्वास्थ्य अधिकारी डॉ० टर्नरने प्लेगके विषयमें अखबारोंके नाम प्रेषित अपने पत्र में कहा है कि बीमारीको रोकने या उसका सफाया करनेके लिए सीधी-सादी और साधारण पाबन्दियोंसे अधिक और कुछ करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने अपनी यह राय दी है कि जो असाधारण कदम उठाये जा रहे हैं वे केवल लोगोंकी भावनाको ही तृप्ति देते हैं। इस कथनकी पूरी-पूरी परख पिछले सप्ताह जोहानिसबर्गकी भारतीय बस्तीमें लगाई गई आगसे हो गई। असल में वह एक नाटकीय प्रदर्शन था, जिसका उद्देश्य लोगों की कल्पनाको उत्तेजित करना था। हाँ, मकान निस्सन्देह जलाकर खाक कर दिये जाने चाहिए थे; किन्तु सोचना तथ्योंके बिलकुल विपरीत है कि, चूँकि वे जला दिये गये हैं, इसलिए छूतका एक-मात्र उद्गम नष्ट हो गया है। और जैसा हमारे संवाददाताने बताया है कि, बस्तीके चारों ओरके घेरे और उसके निवासियोंकी हलचलोंपर नियन्त्रणकी बात एक निरी गल्प है, जिसका पोषण किया जा रहा है—सफाईकी जरूरतें पूरी करनेके लिए नहीं, बल्कि जनताकी भावनाको सन्तुष्ट करनेके लिए। बस्तीके बाहरके झोंपड़े इस बुरी तरह कोसे गये स्थानके बुरेसे-बुरे हिस्सोंसे कहीं ज्यादा खराब हैं। प्लेगकी अत्यन्त घातक घटनाएँ जोहानिसबर्गके बर्गर्सडॉर्प में स्टेशन रोडपर हुई हैं। दूसरी घटनाएँ भी जोहानिसबर्गके अस्वच्छ क्षेत्रके भीतर, परन्तु बस्तीके बाहर हुई हैं। उन स्थानोंको छूत-रहित बनानेके सिवा कुछ नहीं किया गया। और शायद करना जरूरी भी नहीं था। वहाँ रहनेवाले लोगोंकी हलचलोंमें हस्तक्षेप नहीं किया गया। फिर भी, डॉ० पेक्स चाहे कितना ही तर्क करते और कितनी ही ठंडी दलीलें देते, उनसे जनताका मन इतना शान्त न होता जितना बस्तीको इस तरह जला देने और उसमें रहनेवाले लोगोंको अलग रख देनेसे हुआ। किन्तु अब चूँकि ये दोनों कार्रवाइयाँ की जा चुकी हैं, हम विश्वास रखें कि, कमसे कम, जहाँतक जोहानिसबर्गका सम्बन्ध है, ब्रिटिश भारतीय आबादी उचित रूपसे स्वतन्त्र छोड़ दी जायेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन १६-४-१९०४