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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


झुंझलाहट पैदा करनेवाले नियम कायम हैं। शिविर इस महीनेकी ११ तारीख से खुला घोषित किया गया है। शिविरके उद्घाटनके बादसे किसीको भी प्लेगकी बीमारी नहीं हुई। कहने लायक कोई दूसरी बीमारी भी नहीं हुई। फिर भी शिविर-निवासियोंकी गतिविधि बड़े असुविधाजनक ढंगसे नियंत्रित है। वे परवानोंके बिना शिविर छोड़ नहीं सकते। और परवाने रोजाना नये लेने पड़ते हैं। और ये परवाने तभी जारी किये जाते हैं जब शिविर-निवासी अपने पंजीकरणकी सनदें पेश कर सकें, जो केवल यह साबित करनेवाली रसीदें होती हैं कि उन्होंने ३ पौंड चुका दिये हैं। शिविर और जोहानिसबर्गके बीच रेलगाड़ी आती-जाती है। सुबहकी गाड़ी ६ बजे चलती है और शामकी गाड़ी जोहानिसबर्गसे शिविरके लिए ६-१५ बजे रवाना होती है। इसके लिए रविवारको छोड़कर सप्ताहभर के लिए ३ शिलिंगकी रकम वसूल की जाती है। सिर्फ तीसरे दर्जे के डिब्बे रखे जाते हैं और शामकी गाड़ीमें रोशनी नहीं होती। जो लोग जोहानिसबर्गके अलावा ट्रान्सवालके और किसी शहरको जाना चाहें, उन्हें शिविर व्यवस्थापकको इसकी सूचना और जिस मकानमें जाकर रहना है उसका विवरण देना पड़ता है। तब स्वास्थ्य-अधिकारी उस नगरके अधिकारीसे पत्र-व्यवहार करता है, जिसका नाम प्रार्थी बताता है; और यदि मकान रहने लायक और साफ-सुथरा प्रमाणित कर दिया जाता है तो शिविरसे बिलकुल चले जानेकी इजाजत दे दी जाती है। जो जोहानिसबर्ग में रहना चाहें उन्हें भी इसी ढका पालन करना होता है, और यदि बताया हुआ मकान स्वास्थ्य अधिकारी द्वारा मंजूर कर लिया जाता है तो जानेका पास दे दिया जाता है। अगर किसी आदमीके पास जानेका पास न हो तो उसे शामके साढ़े आठ बजे या इससे पहले, शिविरमें हाजिरी देनी पड़ती है। ऐसा न करनेपर पहले अपराधके लिए उसे जुर्मानेका दण्ड दिया जा सकता है, जो १५ पौंडसे अधिक नहीं होगा; जुर्माना अदा न करनेपर तीन महीनेका कारावास दिया जा सकता है। दुबारा जुर्म करनेवालेपर ५० पौंडतक जुर्मानेकी या, जुर्माना न देनेपर, छः मास- तक सख्त कैदकी सजा दी जा सकती है। स्त्रियों और बच्चोंके सिवा और लोगोंको गत सोमवारसे खूराक देना बन्द कर दिया गया है। कामके नामपर उन्हें खुदाई या पत्थर फोड़नेमें लगाया जाता है, जिसकी मजदूरी २ शिलिंग रोज होती है और यदि मजदूर प्रथम श्रेणीका साबित हो तो वह बढ़ाकर ३ शिलिंग कर दी जाती है। लौटनेपर शिविर-निवासियोंकी जाँच की जाती है और तलाशी भी ली जाती है। यह थोड़ा या बहुत जेलका-सा जीवन है, जिसके योग्य ये लोग नहीं हैं, क्योंकि अधिकारियोंने स्वीकार किया है कि इनका व्यवहार उत्तम रहा है। यदि शिविर वास्तवमें आने-जानेके प्रतिबन्धोंसे मुक्त है तो कोई कारण दिखाई नहीं देता कि शिविर में रहनेवाले एशियाइयों और जोहानिसबर्ग में रहनेवाले एशियाइयोंके बीच इतना तीव्र भेद किया जाये। अब तो शिविरका केवल एक ही काम होना चाहिए कि, जिन लोगोंको कहीं रहनेको जगह न मिले उन्हें आश्रय स्थान दिया जाये। यह समझना कठिन है कि उन्हें अपने रहनेकी जगहें सूचित करने और अर्जियाँ देनेपर ऊपर बताये हुए तमाम कष्टप्रद क्रमसे निकलनेको क्यों मजबूर किया जाये। अवश्य ही, यदि अधिकारी निवास-स्थानोंकी पड़ताल करना-चाहें तो लोगोंको उपर्युक्त पाबन्दियोंका शिकार बनाये बिना भी कर सकते हैं। यह एक अपराध है, और नहीं है तो होना चाहिए, कि कोई व्यक्ति ऐसे निवास-स्थानोंमें रहने लगे जो सफाईके नियमोंकी जरूरत पूरी न करते हों। और रैंड प्लेग-समितिको, जो गन्दगीकी हमेशा खोज करती रहती है, इस लायक होना चाहिए कि जो भारतीय गन्दे घरोंमें रहने लगे हों उनका पता लगा ले। परन्तु उसका प्रजाजनोंकी स्वतन्त्रतापर ऐसे प्रतिबन्ध लगाना, जो आखिरकार तो नाजायज ही हैं, ठीक नहीं है। शिविरके बाहर भी ब्रिटिश भारतीयोंकी