पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

प्लेग

स्थिति बहुत कठिन है। विटवाटर्सरैंड जिलेके बाहर कोई एशियाई तबतक सफर नहीं कर सकता जबतक उसके पास स्वास्थ्यका प्रमाणपत्र न हो। कई स्थानोंमें एशियाइयोंके लिए मंडीका उपयोग वर्जित है। पॉचेफस्ट्रम तो ट्रान्सवालसे किसी भारतीयको अपने यहाँ आने ही नहीं देता। परिणाम यह है कि रेलवे अधिकारी टिकट देनेसे ही इनकार कर देते हैं। १,६०० आदमियोंके बस्ती से निकाल दिये जानेके कारण भारतीय व्यापारी और दूकानदार भारी कष्ट पा रहे हैं, क्योंकि उनमें से बहुतसे इन व्यापारियों और दूकानदारोंके कर्जदार हैं और अब वे अपना ऋण चुका नहीं सकते। जोहानिसबर्ग नगर परिषदकी बैठक आज यह विचार करनेको हुई थी कि भारतीयों और दूसरे एशियाइयोंपर नियन्त्रण रखनेके लिए और अधिकार माँगना और खास तौरपर काफिर बस्तियोंकी तरह ही भारतीय बस्तियोंपर भी पूरा नियन्त्रण रखना वांछनीय होगा या नहीं। स्पष्ट ही इसका उद्देश्य अस्वच्छ क्षेत्र अधिग्रहण अध्यादेश (इनसेनिटरी एरिया एक्सप्रोप्रिएशन ऑर्डिनेन्स) के अनुसार अस्वच्छ क्षेत्रके भीतर, या उसके ठीक पड़ोसमें, उपयुक्त स्थान तलाश कर देनेकी जिम्मेदारीसे बच निकलना है। इस सारी भारतीय-विरोधी प्रवृत्तिका क्या परिणाम होगा, यह अभीसे कोई नहीं कह सकता। समय ही बतायेगा कि अन्तमें न्यायकी विजय होती है या नहीं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९०४

१३५. प्लेग

यद्यपि ट्रान्सवालमें प्लेग खतम हो रहा है, क्रूगर्सडॉर्पके एक खान-क्षेत्रमें कुछ बीमार मिले हैं। इससे प्रकट होता है कि अभीतक बहुत सचेत रहने की जरूरत बनी है। और यदि प्लेगकी जैसी दुःखद घटनाओंसे जरा भी सन्तोष ग्रहण करना उचित हो तो, ब्रिटिश भारतीयोंके सौभाग्यसे, क्रूगर्स डॉकी घटनासे सिद्ध होता है कि प्लेग व्यक्तियोंका लिहाज नहीं करता और ट्रान्सवाल में ब्रिटिश भारतीयोंको जिन असाधारण पाबन्दियोंका शिकार बनाया गया है वे गैरजरूरी हैं; क्योंकि जोहानिसबर्ग-खाससे बाहरकी घटनाएँ अधिकतर वतनियोंमें हुई हैं और उनमें यूरोपीय लोग भी शामिल हैं। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि यह रोग खास तौरपर भारतीयों में ही फैला है। असल में, मालूम होता है, प्लेगका आरम्भ खानोंमें हुआ और वह वहींसे लाया गया; क्योंकि भारतीय बस्ती में पहले-पहल प्लेगकी जो घटनाएँ हुईं वे उन्हीं लोगों तक सीमित थीं जो खानोंमें काम करते थे। और शुरू-शुरू में वह महज निमोनियावाला प्लेग था, यह तथ्य शायद खानोंके काम और प्लेगके बीच कुछ सम्बन्ध स्थापित करता है। कुछ भी हो, जिस केन्द्रीय तथ्यकी ओर हमने ध्यान आकृष्ट किया है और जिसे कभी नहीं भूलना चाहिए, यह है कि भारतीयों को बिना किसी उचित कारणके प्लेग फैलानेका दोषी ठहराया जा रहा है। यह बात साफ तौरसे याद रखना जरूरी है, क्योंकि हमें बहुत डर है कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंपर अधिक और स्थायी कानूनी निर्योग्यताएँ थोपनेकी और इस मामलेमें भारत सरकार और ट्रान्सवाल-सरकार के बीच इस समय चालू बातचीतपर रंग चढ़ानेकी कोशिश की जा सकती है। प्लेग फैलनेका कारण अब उस पत्र-व्यवहारमें[१] साफ-साफ जाहिर कर दिया गया है, जो हमने किसी पिछले सप्ताह में प्रकाशित किया था; और उससे भी, जो हम इस अंकमें प्रकाशित कर रहे हैं। जोहानिसबर्ग में

  1. देखिए “पत्र : डॉ० पोर्टरको,” फरवरी ११, १५ और २०, १९०४ ।