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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


प्लेग फैलनेका असली और मुख्य कारण था—जोहानिसबर्ग नगर-परिषदकी ब्योरेकी बातोंपर ध्यान देनेकी पूर्ण असमर्थता। नगर परिषद द्वारा प्रकाशित आंकड़ोंसे स्पष्ट है कि मार्चमें निमोनियाके कारण मृत्युसंख्या इतने असाधारण रूपमें अधिक थी कि इस जबरदस्त हकीकतके बावजूद नगर परिषदकी अकर्मण्यताका कारण बिलकुल समझमें नहीं आता। हाँ, अगर सारी परिषदको यह विश्वास रहा हो कि जोहानिसबर्ग में प्लेग कभी हो ही नहीं सकता, तो बात दूसरी है। जैसी निश्चित और जल्दीकी चेतावनियाँ बिना माँगे जोहानिसबर्ग में अधिकारियोंको मिली वैसी अक्सर नहीं मिलतीं। स्वच्छता के प्रारम्भिक सिद्धान्तोंपर ध्यान देकर प्लेगको रोकना नगर-परिषदके लिए सदा सम्भव था, फिर भी उसने लगभग अठारह महीनेतक कागजपर बड़ी-बड़ी योजनाएँ बनानेके सिवा कुछ नहीं किया। इसलिए अब स्वास्थ्य समितिका यह कहना थोथे उपहासके सिवा कुछ नहीं है कि उससे जो कुछ हो सकता था वह सब उसने किया और जनताके विरोधके कारण अस्वच्छ क्षेत्रके बजाय कोई नया स्थान निश्चित करना उसके लिए सम्भव नहीं था—मानो ऐसे किसी विरोधके कारण सारे समाजके स्वास्थ्य और प्राणोंको खतरेमें डालना, जैसा कि बेशक उसने डाला, उचित हो सकता था। ध्यान रखना चाहिए कि परिषदके अस्वच्छ क्षेत्रको अपने कब्जे में लेनेके पाँच महीने बाद प्लेग फैला था। तब प्रश्न उठता है: दखल करने से पहले परिषदने स्थानके चुनावके बारेमें लोक-भावनाको क्यों नहीं टटोला? जब वह ऐसा नहीं कर सकी, तब केवल कानूनी अधिकार करके ही सन्तुष्ट क्यों नहीं हो गई? जो लोग मकान मालिकोंका काम करते रहनेके लिए तैयार थे उन्हें उसने वैसा क्यों नहीं करते रहने दिया? इस प्रस्तावको अस्वीकार करनेके बाद, परिषदने उस जायदादसे किराया वसूल करना क्यों नहीं बन्द किया, जिसे खुद उसने मनुष्योंके रहनेके अयोग्य करार दे दिया था और जहाँ उसने या तो, जैसा हम कहेंगे, घोर लापरवाहीके कारण लोगोंको रहने दिया था, जैसा वह कहेगी, इसलिए रहने दिया कि जनता अस्वच्छ क्षेत्रके बजाय परिषद के चुने हुए दूसरे स्थानके विरुद्ध थी? परिषदने, उस क्षेत्रके प्रत्येक किरायेदारकी मकान मालिक बन बैठने और उन सबसे आमदनी करनेका निर्णय कर चुकने के बाद, वहाँ इतनी भीड़भाड़ और ऐसी भयंकर गन्दगी क्यों की? एक भी नये किरायेदारको उसने उस इलाके में आकर रहने क्यों दिया? भारतीय बस्तीमें काफिर क्यों भर दिये गये? बाड़ोंमें कूड़ा-कचरा क्यों पड़ा रहने दिया गया? फरवरीमें श्री गांधीने डॉ० पोर्टरको पत्र लिखकर जो बड़ा ही माकूल सुझाव दिया था, उसे समय रहते हुए भी, परिषदने क्यों नहीं स्वीकार किया? हमारी रायमें, इन बहुत ही उचित प्रश्नोंके निर्णयात्मक उत्तर मिलने चाहिए। हम ऐसी कोई मिसाल याद नहीं कर पाते, जिसमें कोई सार्वजनिक संस्था भूलपर-भूल करती गई हो, पिछले अनुभवसे लाभ उठाने से इनकार करती रही हो और स्वाभाविक निष्कर्षो तथा अपने ही प्रस्तावोंको ध्यान में रखने से इनकार करती रही हो। नगर-परिषद गन्दगीकी बिनापर उक्त क्षेत्रपर दखल करनेका अधिकार माँगनेके लिए लॉर्ड मिलनरके पास गई थी और उसने वहाँ बहुत अधिक गन्दगी बताते हुए कहा था कि व्यक्तिगत सम्पत्तिको पूरी तरह कब्जे में लेनेके सिवा और किसी मार्ग से बुराईका इलाज ही नहीं हो सकता। क्या यह केवल आँखोंमें धूल झोंकना था? अगर नहीं, तो अवश्य ही उसका स्पष्ट कर्त्तव्य था कि दखल करनेका अधिकार पानेके बाद वह सबसे पहला कदम इलाकेके लोगोंको हटाकर अधिक आरोग्यप्रद मकानोंमें रखनेका उठाती। दुर्भाग्यवश भारतीय बस्तीके निवासियोंको हटाकर क्लिपस्प्रूटमें एक अस्थायी शिविरमें ले जानेके सिवा हमें अब भी किसी स्थायी स्थानके चुनावकी ओर प्रगतिका कोई चिह्न दिखाई नहीं देता। उपर्युक्त बातोंसे यह अवश्य स्पष्ट हो जाना चाहिए कि जोहानिसबर्ग में पहले-पहल भारतीयोंमें प्लेग फैलनेका कारण असाधारण परिस्थितियां थीं, जिनके लिए केवल परिषद ही जिम्मेदार है। जैसी सफाई रखना