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प्लेगसे एक सबक


उससे कुछ काम लेंगे तो इतना ही कि वह स्वशासित जनताके अधिकारोंकी आड़ में तमाम ब्रिटिश भारतीय-विरोधी कार्रवाइयोंके लिए एक पनाह बन जाये ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-४-१९०४

१३८. प्लेगसे एक सबक


प्लेगने ब्रिटिश भारतीयों को ऐसे पाठ सिखाये हैं जो हमें विश्वास है, भुलाये नहीं जायेंगे; और आशा है, समाज उनसे लाभ उठायेगा। भारतमें एक आम कहावत है कि मनुष्यके लिए सुयश खोनेसे लाखों रुपया खो देना अच्छा है। इस कहावतसे यह निष्कर्ष निकलता है कि एक बार जब आदमी बदनाम हो जाता है तब उस बदनामीका असर मिटाना और लोगोंकी नजरमें फिरसे अच्छा बनना उसके लिए कठिन हो जाता है। जो व्यक्तियोंके लिए सही है, वह समुदायोंके लिए भी उतना ही सही है । फ्रान्सीसी लोग कला-प्रियताके लिए प्रसिद्ध हैं, अंग्रेज व्यक्तिगत शौर्य के लिए, जर्मन कर्मठताके लिए, रूसी मितव्ययिताके लिए, और दक्षिण आफ्रिका के उपनिवेश स्वर्ण-लिप्साके लिए; इसी तरह दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय, सही या गलत, आरोग्य- शास्त्रके प्रथम सिद्धान्तोंके अज्ञान और गन्देपनके लिए बदनाम हो गये हैं। फलतः जिन लोगोंके विरुद्ध यह आरोप जरा भी साबित नहीं किया जा सकता, उन्हें अक्सर केवल इस कारण कष्ट भोगने पड़ते हैं कि वे भारतीय हैं। और कोई बात हो भी नहीं सकती थी। यह ट्रान्सवालमें प्लेग फैलनेके कारण उदाहरणोंसे सिद्ध किया जा चुका है। सारे दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्वतन्त्रतापर ऐसे प्रतिबन्ध लगा दिये गये हैं जिनके लिए, यदि शान्ति और न्याय-पूर्वक विचार किया जाये तो, कोई कारण नहीं मिलेगा। ट्रान्सवालमें भूतपूर्वं भारतीय बस्तीके निवासियोंके साथ वस्तुतः कैदियोंका-सा बर्ताव किया जा रहा है। बस्ती में जो कुत्ते, बिल्ली और अन्य पशु पाये गये, उन्हें भी मार डाला गया है, क्योंकि कहीं भारतीयोंके संसर्गसे उनमें प्लेगके कीटाणु न पहुँच गये हों! वहाँ विभिन्न नगरोंके स्थानिक निकायोंने भारतीयोंके खिलाफ कँटीले तारोंकी बाढ़ खड़ी करनेके नियम बना दिये हैं। ऑरेंज रिवर उपनिवेशने ट्रान्सवालसे आनेवाले भारतीयोंके लिए अपने द्वार बिलकुल बन्द कर दिये हैं। केप और नेटाल ऐसी कड़ी पाबन्दियोंके साथ प्रवेश करने देते हैं, जिनका कोई वैज्ञानिक अर्थ नहीं है। उदाहरणार्थ, कोई भारतीय भले ही किसी काफिरके साथ एक ही डिब्बेमें सफर कर रहा हो, ज्यों ही उन मुसा-फिरोंकी गाड़ी नेटालकी सीमापर पहुँचती है, त्यों ही भारतीयको तो उपनिवेशमें प्रवेश करनेसे पहले पाँच दिनतक सूतक (क्वारंटीन) में रहनेको मजबूर किया जाता है, परन्तु काफिरको आने देनेमें कोई रोकटोक नहीं की जाती।

ये नियम वेशक कठोर हैं, तो भी हमें इनसे क्रोध नहीं आना चाहिए। लेकिन हमें अपना आचरण ऐसा व्यवस्थित करना चाहिए कि इनकी पुनरावृत्ति न हो। और इस दृष्टिसे हमें अपने घरोंको अक्षरशः और आलंकारिक रूपमें भी व्यवस्थित करनेमें लग जाना चाहिए। हममें से छोटेसे-छोटेको भी सफाई और तन्दुरुस्तीका मूल्य जानना चाहिए। हमारे बीचसे अधिक भीड़ करनेकी आदत मिट जानी चाहिए। हमें धूप और हवाको मुक्त रूपसे अन्दर आने देना चाहिए। संक्षेप में, हमें यह अंग्रेजी कहावत हृदयांकित कर लेनी चाहिए कि भगवद्भक्तिके बाद स्वच्छताका ही दर्जा है।

और उसके बाद क्या? हम यह वादा नहीं करते कि हम पूर्वग्रह के पाशसे तुरन्त ही मुक्त हो जायेंगे। नेकनामी एक बार चली जाती है तो आसानीसे वापस नहीं मिलती। सुयशकी हानि