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१४२. क्रूगर्सडॉर्पकी भारतीय बस्ती

क्रूमर्सडॉर्पकी लोक-स्वास्थ्य समितिकी रिपोर्टसे विदित होता है। जिसके लिए हम अपने सहयोगी क्रूगर्सडॉ स्टैंडर्डके ऋणी हैं कि नगर परिषदने अब भारतीय बस्तीके मकानोंकी बेदखली न कराने का फैसला किया है। इसका एकमात्र कारण यह है कि परिषदके अपने ही मूल्य-निर्धारकने उन मकानोंकी कीमत नगर-परिषदकी लगाई कीमतसे अधिक बताई है; और श्री बार्नेटने, जिन्होंने भारतीयोंकी तरफसे मूल्यांकन किया है, और भी ज्यादा मूल्य बताया है। इसलिए जो मकान कुछ ही दिन पहलेतक " लज्जाके योग्य अस्वच्छ" और नगरके सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माने जाते थे, वे अब अचानक वैसे नहीं रहे और अब उन्हें जहाँ हैं वहीं रहने दिया जायेगा। इसलिए यह निरा रुपयेका सवाल है। परन्तु, यद्यपि अब उनको ब्रिटिश भारतीयोंकी जायदाद बना रहने दिया जायेगा और नष्ट नहीं किया जायेगा, फिर भी नगर- परिषदने निर्णय किया है कि भारतीय उनमें फिर तबतक नहीं रह सकेंगे जबतक वे उन्हें नगरके निर्माण सम्बन्धी नियमोंके अनुसार न बना लें। हमें नहीं मालूम कि इसका क्या अर्थ है। अगर मतलब यह है कि भारतीय उन मकानोंको गिराकर नये सिरेसे बनायें तो अवश्य ही नगर परिषद के लिए उनको एक धेला भी मुआवजे में दिये बिना उनकी सम्पत्तिसे वंचित कर देनेका यह एक आसान तरीका है इस प्रकार अनुचित साधनोंसे काम बना लेना न्यायपूर्ण होगा या नहीं, इससे स्पष्टत: नगर परिषदका कोई वास्ता नहीं। किन्तु नगर परिषदके निर्णयसे एक गम्भीर प्रश्न पैदा होता है: ये मकान गन्दे हैं, तो वास्तवमें कहाँतक गन्दी हालत में हैं? परिवर्तनों या सुधारोंकी किस हदतक जरूरत है, और भारतीयोंपर जो प्रतिबन्ध लगाये गये हैं, उन्हें लगानेका, आम तौरपर, नगर परिषदको क्या अधिकार है? क्योंकि, हमें मालूम हुआ है कि सम्पत्तिसे वंचित किये गये भारतीयोंको अब भी नगरसे बहुत दूरके स्थानपर तम्बुओंमें रहने को मजबूर किया जा रहा है। लेकिन चूँकि क्रूगर्सडॉर्प में प्लेग बिलकुल नहीं है, और आम तौरपर ट्रान्सवालमें भी वह मिट गया है, इसलिए हमें आशा है कि यह विषम स्थिति अब खतम कर दी जायेगी, और भारतीयोंको अपने मकानों में फिर रहने दिया जायेगा, और वह नौबत न आने दी जायेगी कि नगर परिषदने स्पष्ट ही जो मनमाना तरीका अपनाया है उसे अपनानेके अधिकारको किसी कानूनी अदालतमें चुनौती दी जाये।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९०४