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१४४. नेटालमें प्लेग फैला तो?

मैकईवानके मकान और यूनियन कैसिल दफ्तरके बीच पॉइंट के गृह-समूह (ब्लॉक) में चूहे मरते पाये गये हैं। कहा जाता है कि वे प्लेगसे मरे हैं। अधिकारियोंने नेटालमें प्लेग न फैलने देनेके लिए तत्परतासे कार्रवाई की है और हम सच्चे दिलसे आशा करते हैं कि उनके प्रयत्न सफल होंगे। लेकिन अगर प्लेग फैला तो भारतीय समाजके लिए यह एक दुर्भाग्य होगा। वह ट्रान्सवालमें इस रोगके आक्रमणके परिणामसे मुक्त होनेके लिए संघर्ष कर रहा है और ऐसे मौकेपर प्लेग फैलनेसे उसके दुःखोंका प्याला लबालब भर जायेगा। परन्तु हम भारतीयोंको चेतावनीके दो शब्द कहे बिना नहीं रह सकते। मामूली बीमारीकी भी, खासकर बुखार या निमोनियाकी, अविलम्ब देखभाल होनी चाहिए और जरूरी हो तो, अधिकारियोंको सूचना दे दी जानी चाहिए। इस प्रकारकी बीमारियोंका इलाज करनेमें कदाचित् बड़ी ढिलाई की जाती है, परन्तु खासकर आजके जैसे समयमें बुखार या निमोनियाको मामूली बात समझना बड़ी मूर्खता होगी। हम उनसे यह भी कहेंगे कि ऐसे सब रोगियोंको बिलकुल अलग रखा जाये, ताकि छूतकी जोखिम कमसे कम हो जाये। लेकिन सबसे अधिक आवश्यक यह है कि गरीब-से-गरीब घरोंमें भी रोशनी और हवाको पूरी तरहसे आने दिया जाये। प्रत्येक घरका सारा कचरा निकाल दिया जाये। और यदि ये प्रारंभिक सावधानियाँ प्रत्येक व्यक्ति बरते तो हमें कोई सन्देह नहीं कि मुसीबत टल जायेगी। भारतीय निवास-स्थानोंको सुधारनेकी दिशामें पहले ही बहुत कुछ किया जा चुका है और हमें सभी दिशाओंमें सुधार दिखाई दे रहे हैं। किन्तु रोगके आक्रमणके खतरेको देखते हुए प्रयत्नोंको दुगुना कर देना जरूरी है और हमें आशा है कि उपनिवेशका प्रत्येक भारतीय हमारी बातको हृदयांकित कर लेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ७-५-१९०४

१४५. सुयोग्य विजय

सो, सर्वोच्च न्यायालयने भारतीयोंके परीक्षात्मक मुकदमेका[१] फैसला खर्चसहित वादीके पक्ष में कर दिया है। मामले के सफलतापूर्ण अन्तपर हम अपने ट्रान्सवालवासी देशभाइयोंको हार्दिक बधाई देते हैं। यह विजय महँगी कीमत चुकाकर प्राप्त की गई है और इसके वे सुयोग्य पात्र हैं। हम इतनी ही आशा रख सकते हैं कि सरकार भारतीय समाजको विजयके फलोंका उप-भोग करने देगी। हमारे खयाल से इस महान और असमान संघर्ष में ब्रिटिश भारतीयोंका आचरण उनकी परम्पराओंके अनुरूप रहा है। उन्हें अधिकार था कि वे ब्रिटिश अधिकार जमनेके बाद जल्दी ही यह मामला पेश कर देते और हमें मालूम है कि उस समय ट्रान्सवालके उत्तम वकीलोंने यही मार्ग अपनानेकी सलाह दी थी; परन्तु उन्होंने दूसरी ही तरह सोचा। उन्हें खयाल

  1. हबीब मोटन बनाम ट्रान्सवाल-सरकार: फैसलेमें कहा गया था कि भारतीय व्यापारियोंको पृथक वस्तियोंके बाहर व्यापार करनेके परवाने न देनेके जो आदेश परवाना अधिकारियोंको दिये गये थे वे गैर-कानूनी थे और वादीको प्रिटोरिया तथा पीटर्सबर्ग शहरोंमें सामान्य वस्तुओंके विक्रेता के तौरपर व्यापार करनेका परवाना पानेका हक है।