१४७. जोहानिसबर्ग में प्लेग
जोहानिसबर्गकी जनताको यह सूचना दी गई है कि २९ अप्रैलको जोहानिसबर्गके मंडीघरमें दो यूरोपीय गिल्टीवाले प्लेगसे ग्रस्त हुए। रैंड प्लेग-समितिने बीमारोंको रिएटफॉटीनके छुतहे रोगोंके अस्पताल में भेज देनेके सिवा इस महीनेकी ४ तारीखतक और कुछ नहीं किया। उसने मंडी-घरको सन्देहका लाभ दिया और यह निष्कर्ष निकाला कि यदि विपरीत बात प्रमाणित न हो तो छूत बाहरी जरियोंसे ही आई होगी। इस प्रकार, साधारण नियमको उलट दिया गया। क्योंकि, जनसाधारणके नाते, हमने सदा यह समझा है कि यदि किसी खास स्थानमें प्लेग या और किसी छूतकी बीमारीसे कोई ग्रस्त होता है, तो उस स्थानको ही छूतसे ग्रस्त मानने और फिर उस स्थानमें ही छूतका कारण ढूंढनेकी कोशिश सबसे पहले जरूरी होती है। इस प्रकार डर्बन, केप टाउन और दक्षिण आफ्रिकाके दूसरे भागोंमें ही नहीं, बल्कि संसारके शेष भाग में भी, जहाँ-कहीं ऐसी घटनाएँ हुई हैं, उन स्थानोंमें ताला लगा दिया गया है, उन्हें सूतक (क्वारंटीन) में रख दिया गया है और उनकी छूत नष्ट की गई है। परन्तु तेजदम जोहानिसबर्ग में, अतिप्रशं-सित रैंड प्लेग-समिति उलटी गंगा बहाती है और छूतका और कहीं पता लगानेमें असमर्थ होने पर यह खोज करने लगती है कि कहीं वह स्वयं मंडीघरके भीतर ही तो नहीं है; और चार दिनकी खोजके बाद यह पता लगाने में सफल होती है कि वहाँके चूहोंपर प्लेगका असर था। उसके बाद अचानक, नाटकीय ढंगसे समिति इस महीनेकी ४ तारीखको दुपहर में मंडीके गिर्द पुलिसका घेरा डलवा देती है और मकानोंको कुछ हलके सूतकमें रख देती है। इससे बेशक लोगोंके मनपर असर होता है, काफी हलचल पैदा हो जाती है और शायद प्रशंसा भी प्राप्त होती है; परन्तु हमारा खयाल है, यह बहुत कुछ वैसा ही दिखाई देता है जैसे घोड़ा निकल जानेके बाद अस्तबलमें ताला लगाना। क्योंकि इन दो घटनाओंका पता लगनेके बाद पूरे चार दिनतक मंडीके द्वारा नगरमें छूत फैलने दी जाती है। बेशक, ताज्जुबकी बात तो यह है कि इस समय सारा जोहानिसबर्ग प्लेगसे पीड़ित नहीं हो उठा। लेकिन कमसे कम इस मामलेमें प्लेगसे आम मुक्तिके लिए बधाईकी हकदार समिति नहीं है, परन्तु इसका श्रेय उस शानदार मौसम और जोहानिसबर्गकी बड़ी ऊँचाईको है जो समितिकी बड़ी भूलोंके बावजूद प्लेगके कीटाणुओंको पनपने नहीं देती।
इंडियन ओपिनियन, १४-५-१९०४