१५२. “कुली" क्या है?
नगर-निगम विधि आयोग (म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन लॉज़ कमिशन) की रिपोर्ट, आयोग द्वारा तैयार किये हुए विधेयकके मसविदेके साथ, आम लोगोंकी जानकारीके लिए इस मासकी ३ तारीखके ट्रान्सवाल गवर्नमेंट गज़टमें प्रकाशित कर दी गई है। विधेयक स्वयं एक सावधानीसे तैयार किया हुआ अभिलेख है, जिसमें अनुसूचियोंके अलावा ३२६ उपधाराएँ हैं। उसके कुछ खण्ड ऐसे हैं, जिनका भारतीय समाजपर अत्यन्त मार्मिक असर पड़ता है और जिनसे उपनिवेशकी नगरपालिका-सम्बन्धी नीति गम्भीर रूपसे भंग होती है। एक दूसरे स्तम्भमें हम विधेयकके वे अंश छाप रहे हैं जिनका उपनिवेशमें बसे ब्रिटिश भारतीयोंपर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। व्याख्यात्मक उपधारामें "रंगदार व्यक्ति" शब्दोंकी व्याख्या इस तरह की गई है, जिससे कुली" शब्दको सरकारी आधार मिल जाता है; और वह इतनी अस्पष्ट है कि उससे भविष्य में बहुत परेशानी होगी। सभीका खयाल यह था कि कुछ वर्ष पहले श्रीमती विन्दनके मामले में सर वाल्टर रंगने जो आक्षेप किये थे, उनके बाद विधेयकके निर्माता इस बातकी बहुत सावधानी रखेंगे कि इस शब्दका प्रयोग किस प्रकार करते हैं। इस व्याख्याके अनुसार दूसरे अर्थोके साथ-साथ रंगदार व्यक्तिका एक अर्थ "कुली" भी होगा। कुली क्या होता है? यह ठीक-ठीक कोई नहीं जानता। अगर उसे भारतीय अर्थ में लिया जाये तो वह सिर्फ मजदूर या सामान ढोनेवाला होता है। अगर आम भद्दा अर्थ लगाया जाये तो फिर प्रत्येक भारतीय भले ही कुछ भी हो या कोई भी हो——कुली है। अगर इसका अर्थ मर्यादित रखना हो, जो उपनिवेशके अधिक जानकार लोग लगाते हैं, तो वह होता है गिरमिटिया भारतीय। अब, ऐसी व्याख्या सहज ही की जा सकती थी, जिसे देखते ही तुरन्त प्रकट हो जाता कि आयुक्तोंका इरादा "रंगदार व्यक्ति" शब्दों में किस वर्गके भारतीयोंको सम्मिलित करनेका है। "असभ्य जातियाँ" शब्दोंकी व्याख्या भारतीयोंके लिए अत्यन्त असंतोषजनक और संतापकारी है। हम नम्रतापूर्वक कहना चाहते हैं कि गिरमिटिया भारतीय भी असभ्य जातिके लोग नहीं हैं, परन्तु उनकी सन्तानोंको असभ्य कहकर बहिष्कृत कर देना तो समझ में ही नहीं आता। हमें उन सैकड़ों भारतीय बच्चोंका खयाल आता है जो, जैसा सर हैनरी मैकैलमने कहा है, अत्यन्त चतुर और विनम्र हैं, परन्तु गिरमिटिया भारतीयोंसे उत्पन्न होनेके कारण असभ्य वर्ग में गिने जायेंगे। इसे हम ब्रिटिश भारतीयोंके असंयत अपमानके सिवा और कुछ नहीं समझते। किन्तु विधेयकका सबसे आपत्तिजनक पहलू है उसकी नागरिकोंकी योग्यताएँ। अबतक सामान्य कानूनके अनुसार नगरपालिकाओंका मताधिकार भारतीयोंको प्राप्त था; परन्तु इस विधेयक में यह व्यवस्था की गई है कि जो लोग १८९६ के अधिनियम ८ के अनुसार संसदीय मताधिकारके अयोग्य हैं वे नागरिक होनेके भी अयोग्य होंगे। स्वर्गीय श्री एस्कम्बने निश्चित रूपसे कहा था कि वे नगरपालिका-मताधिकारको छूना नहीं चाहते; और उन्होंने नागरिक मताधिकारको उसी आधारपर रखने से इनकार कर दिया था जिसपर राजनीतिक मताधिकार स्थित है| फिर भी, हम आयुक्तोंको गम्भीरतापूर्वक यह प्रस्ताव करते देखते हैं कि भारतीयोंको मताधिकारसे-नगरपालिका-चुनाव-सम्बन्धी मताधिकारसे भी——सर्वथा वंचित कर दिया जाये! उन्होंने इस
१. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ९।