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१५६. पत्र : मंचरजी मेरवानजी भावनगरीको[१]'

२५ व २६ कोर्ट चेम्बर्स
रिसिक स्ट्रीट
जोहानिसबर्ग
मई २३, १९०४

सेवामें

सर मंचरजी भावनगरी, संसद सदस्य,

१९६, कामवेल रोड
लन्दन, इंग्लैंड
प्रिय महोदय,

परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर, सर आर्थर लालीने हाइडेलबर्गसे गुजरते हुए एक भारतीय शिष्टमण्डल द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्र [२]के उत्तरमें जो कहा उसका आशय यह था कि परीक्षात्मक मुकदमे के फैसलेके बलपर भारतीय व्यापारियोंकी अबाध व्यापार करनेकी स्वत- न्त्रता बरदाश्त नहीं की जायेगी। और यह भी कि, इस दिशामें कानून बनानेकी अनुमतिके लिए श्री लिटिलटनसे निवेदन किया जा चुका है।

१८८५ के कानून ३ में, जिसका संशोधन १८८६ में किया गया, जो भारतीय स्थिति बताई गई थी, और परीक्षात्मक मुकदमेके फैसले के अनुसार, जिसकी व्याख्या की गई थी, वह इस प्रकार है:

(१) भारतीय बेरोक-टोक उपनिवेशमें आकर रह सकते हैं।

(२) वे उपनिवेशमें जहाँ चाहें व्यापार कर सकते हैं। उनके लिए पृथक बस्तियाँ निर्धारित की जा सकती हैं, किन्तु कानून उन्हें केवल बस्तियोंमें रहनेको बाध्य नहीं कर सकता। कानूनमें इसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

(३) वे नागरिक नहीं बन सकते।

(४) वे बस्तियोंके अलावा और कहीं भी अचल सम्पत्ति नहीं रख सकते।

(५) उपनिवेशमें आनेपर उन्हें ३पौंड पंजीयन (रजिस्ट्रेशन)-शुल्क देना पड़ेगा। इसलिए, उपर्युक्त कानूनकी रूसे भी, अचल सम्पत्ति रखनेपर रोकके अतिरिक्त, भारतीयोंकी परिस्थिति अभी एकदम चिन्ताजनक नहीं है।

तथापि, शान्ति-रक्षा अध्यादेश (पीस प्रिजर्वेशन ऑर्डिनेन्स) का अनुचित उपयोग करके आने-जानेकी स्वतन्त्रता बिलकुल छीन ली गई है। अध्यादेशका ऐसा उपयोग आखिरकार अन्यायपूर्ण है। यह अध्यादेश कानून के अनुसार चलनेवाली ब्रिटिश प्रजाके लिए नहीं, विद्रोही और राजद्रोही लोगोंकी हलचलोंपर रोकथाम लगानेके विचारसे बना था।

विधान किस रूपमें पेश करनेका विचार है, अभी यह कहना कठिन है; किन्तु यह देखते हुए कि उसको पेश करने के भी पहले श्री लिटिलटनकी मंजूरी जरूरी है, मुझे भरोसा है कि आप उनसे मिलकर इस प्रश्नपर चर्चा कर लेंगे। यदि एक बार उन्होंने किसी खास कार्रवाई के लिए अपनी अनुमति दे दी तो फिर राहत पाना बहुत कठिन हो जायेगा।

  1. सर मंचरजी भावनगरीने इस पत्रकी एक नकल उपनिवेश-कार्यालयको भेजी थी। इंडियाने अपने १ जुलाई १९०४ के अंकमें इसको “निजी संवाददाता द्वारा" प्रेषित पत्रके रूपमें प्रकाशित किया था।
  2. देखिए "अभिनन्दनपत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरको", मई १८, १९०४