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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२४१

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ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय


मैं यह सुझाने की धृष्टता करता हूँ कि १८८५ का कानून ३ पूरा-पूरा रद कर दिया जाये। साथ ही, पैदल पटरियोंसे सम्बन्धित नगर-नियम और एशियाइयोंपर विशेष रूपसे निर्योग्यताएँ लादनेवाले तमाम कानून भी रद कर दिये जायें। केपकी तरहका एक प्रवासी अधिनियम बनाया जाना चाहिए, किन्तु भारतीय भाषाओंको शैक्षणिक योग्यताकी कसौटीमें अछूत नहीं मानना चाहिए। और, नेटालकी तरह एक विक्रेता परवाना अधिनियम बनाया जाना चाहिए। शर्त यह है कि, उसमें परवानेकी अर्जियों पर स्थानीय अफसरोंके निर्णयोंके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपीलका अधिकार हो; और वर्तमान परवाने उससे अछूते रहें—हाँ, अगर दूकानें स्वच्छता और शोभाके आवश्यक मानको पूरा न करती हों तो इसमें अपवाद किया जा सकता है।

इस प्रकार प्रवासका जबरदस्त हौआ हमेशा के लिए हट जायेगा, और व्यापारमें अनुचित भारतीय स्पर्धाका प्रश्न भी न रहेगा। स्थानीय अधिकारी परवानोंकी संख्याका नियमन कर सकेंगे। भारतीयोंका इतना ही दावा है कि जबतक वे पाश्चात्य ढंगकी जरूरतोंके मुताबिक चलते हैं तबतक उन्हें व्यापार करने, अचल सम्पत्ति रखने, नागरिकताके अधिकारोंको भोगने आदिका अधिकार उपनिवेशके सर्वसामान्य नियमोंके अनुसार मिलना चाहिए।

मैं आपको यह भी याद दिला दूं कि लॉर्ड मिलनर ऐसे ही किसी विधानके लिए प्रतिज्ञा-बद्ध हैं, ब्रिटिश भारतीयोंपर विशेष रूपसे निर्योग्यताएँ लादनेवाले विधानके लिए नहीं। और वे इसके लिए भी प्रतिज्ञाबद्ध हैं कि शिक्षित और आसूदा भारतीय किसी भी प्रकारके प्रतिबन्धक विधानसे एकदम मुक्त रखे जायेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]

कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स: सी० ओ० २९१, जिल्द ७८, इंडिविजुअल्स-बी।

१५७. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय

अच्छा ही हुआ कि, हाइडेलबर्ग के ब्रिटिश भारतीयोंने ट्रान्सवालके परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरको वफादारी-भरा मानपत्र दिया और ऐसा करते हुए, उनका ध्यान हालमें ही निर्णीत परीक्षात्मक मुकदमेकी तरफ खींचा। उसके कारण परमश्रेष्ठको सरकारी नीतिके सम्बन्धमें एक महत्त्वपूर्ण घोषणा करनी पड़ी। सर आर्थर लालीने शिष्टमण्डलको जो उत्तर दिया था उसका फोक्सरस्टके उस भाषण में विस्तार किया जो उन्होंने अपने सम्मानमें फोक्सरस्टके लोगों द्वारा आयोजित भोज में दिया था। परमश्रेष्ठने भारतीयोंकी वफादारी और परिश्रमशीलताकी उचित सराहना की। ट्रान्सवालमें भारतीयोंके दर्जेके बारेमें परमश्रेष्ठ बहुत संभल-संभल कर बोले। उन्होंने कहा कि जबतक उपनिवेश मन्त्रीसे स्वीकृति न मिल जाये तबतक सरकार कुछ नहीं कर सकती। परन्तु उन्होंने यह कहने में कोई संकोच नहीं किया कि उन्हें गोरे निवासियोंसे बहुत ज्यादा सहानुभूति है जो एशियाई व्यापारियोंसे मात नहीं खाना चाहते। उन्होंने फोक्स- रस्टके लोगोंको वचन भी दिया कि वे अपने स्वदेशवासियोंकी इच्छा पूर्तिका भरसक प्रयत्न करेंगे। अलबत्ता उनका यह वचन शर्तके साथ था। उन्होंने कहा कि सरकारकी कार्रवाई पूर्णत: न्यायके अनुसार होगी। निहित स्वार्थीको रक्षा करनी होगी, जो लोग उपनिवेशमें पहलेसे बसे हैं उनकी स्थितिकी व्याख्या ठीक-ठीक करनी होगी और यह भी बताना पड़ेगा कि जो लोग भविष्य में इस देशमें प्रवेश करेंगे उन्हें किन-किन अयोग्यताओंके मातहत काम करना होगा। ये सारी बातें बहुत संतोषजनक हैं। वर्तमान अनिश्चित स्थिति स्थानमें जो भी व्यवस्था