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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२४४

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१५८. परीक्षात्मक मुकदमेपर "ईस्ट रैंड एक्सप्रेस"

13 ट्रान्सवालके परवाना सम्बन्धी परीक्षात्मक मुकदमे के बारेमें इतना अधिक कहा जा चुका है और हमें खुद अपनी ओरसे उसके सम्बन्ध में इतना ज्यादा कहना पड़ा है कि हमारे सामने जो विभिन्न कतरनें पड़ी हैं उन्हें हम निपटा नहीं सके हैं। किन्तु उनमेंसे एकको जल्दीसे निपटा देना जरूरी है, क्योंकि वह पूर्वी ट्रान्सवाल (ईस्ट रैंड)-वासियोंके आवेशकी सूचक है। किन्तु हमें यह देखकर घोर दुःख होता है कि हमारे सहयोगी ईस्ट रैंड एक्सप्रेसने एक अत्यन्त खतरनाक सिद्धान्तका समर्थन किया है। और यद्यपि यह सिद्धान्त इस महीनेकी १४ तारीख के अंकमें बहुत सावधानीसे बताया गया है, फिर भी अनुक्त बातोंसे यह निष्कर्ष निकले बिना नहीं रहता कि पूर्वी ट्रान्सवालके लोगोंको कानून अपने हाथोंमें लेने और अगर भारतीय उस जिलेके भीतर दुकानें खोलनेका कोई प्रयत्न करें तो उन्हें ऐसा करनेसे जबरदस्ती रोकनेका प्रच्छन्न परामर्श दिया गया है। ये हथकंडे और तरीके ब्रिटिश पत्रकारों और उन लोगोंके अनुरूप नहीं हैं जो अपनेको ब्रिटिश कहते हैं। यदि हमारा सहयोगी क्षणिक झुंझलाहटमें इतना नीचा उतर आता है तो इसका अर्थ यह होगा कि वह एक तुच्छ-सी वस्तुके लिए उन सब बातोंको त्याग देता है जिन्हें अंग्रेज लोग पवित्र मानते हैं। हम चाहते हैं कि सहयोगी अपना पक्ष स्वयं पेश करे और हमारे कथनमें अत्युक्ति है या नहीं, यह तय करनेका काम पाठकों-पर छोड़ दे। फैसलेपर विचार करनेके बाद, जिसकी व्याख्या उसने गलत की है, वह आगे कहता है:


यह माना जा सकता है कि एशियाई इस अवसरसे लाभ उठानेकी कोशिश करेंगे। अबतक कुली पूर्वी ट्रान्सवाल (ईस्ट रैंड) के नगरोंमें नहीं आने दिये गये हैं; परन्तु ऐसा मालूम होता है कि आयन्दा कानूनन उनका विरोध नहीं किया जा सकेगा। तब हमें क्या करना है? हम सदाकी तरह ही कृत-संकल्प हैं कि एशियाइयोंको बाजारोंके बाहर व्यापार न करने देंगे। बाजार नगरोंसे उचित दूरीपर स्थित हैं। अबतक सामान्य रूपमें राज्य जो संरक्षण देता था, क्या उसका स्थान अब ऐच्छिक कार्रवाई ले सकती है? जहाँतक पूर्वी ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, हमारा खयाल है, उसपर सर्वोच्च न्यायालयके निर्णयका कोई असर नहीं होगा| इतिहास बताता है कि जब कानून किसी समाजकी रक्षा नहीं कर सकता तब आम तौरपर वह समाज ही अपनी रक्षा आप करनेका कोई मार्ग ढूँढ लेता है। तथापि, जनता द्वारा कानून अपने ही हाथोंमें लेनेपर हमें दुःख होना चाहिए। परन्तु यदि भारतीय अथवा चीनी लोग इस फैसलेके अनुसार इस जिलेके गोरोंमें व्यापार करनेका प्रयत्न करेंगे, तो हमें डर है, वही होगा जो सेनापतिकी भाषा में 'एक खेदजनक घटना' माना जायेगा। एशियाई कानून बोअर-राज्यके पिछले कुछ वर्षोंमें जितना कठोर था उतना ही कठोर फिर बनाये जानेके पूर्व, बारबर्टनमें कुछ एशियाइयोंने व्यापार करनेका प्रयत्न किया था। परन्तु दूसरे दिन तड़के ही उन्हें अपना माल असबाब छोड़कर भागना पड़ा और इस तरह उनकी जानें फाँससे बचीं। अवश्य ही बारबर्दन वासियोंके इस कृत्यको घोर निन्दा की जानी चाहिए। परन्तु इस घटनासे हमारे एशियाई मित्रोंको