१६१. गिरमिटिया भारतीय
हमको प्रवासी भारतीयोंके संरक्षककी ३१ दिसम्बर १९०३ तकके सालकी रिपोर्टकी एक प्रति मिली है। इसके अनुसार उपनिवेशमें गिरमिटिया भारतीयोंकी आबादी, जिसमें उनकी सन्तानें भी शामिल हैं, सालके अन्तमें ८१,३९० थी, जब कि १८९६ में वह ३१,७१२ और १९०२ में ७८,००४ थी। पिछले सालकी पैदाइशकी दर ३२.११ और मौतकी दर २०.७८ थी। सबसे कम मौतकी दर १८९८ में रही, यानी १४.३०। और विलक्षण बात यह है कि उसी सालमें सबसे कम पैदाइशकी दर भी दिखाई देती है, यानी १९.०९। आलोच्य वर्षमें ५२ आदमी प्लेगसे, ३२८ निमोनिया और फेफड़ोंकी अन्य शिकायतोंसे और २६२ राजयक्ष्मासे मरे। ये आंकड़े कुछ अशान्तिजनक हैं और इसलिए इनको सावधानीसे जाँचने की जरूरत है। जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है, कोयलेकी खानोंमें भारतीयों की मौतकी दर अधिक ऊँची रही है। खान- खुदाईके इलाकेमें जो थोड़ेसे भारतीय हैं उनमें ४० मौतें हुई। इनमें से १६ राज- यक्ष्माकी और ८ निमोनियाकी थी। और यह उम्मीद है कि संरक्षक तबतक चैनसे नहीं बैठेगा जबतक कि इस मृत्यु-संख्यामें भारी कमी न हो जाये। संरक्षकके दफ्तर में गतवर्ष १,०५३ विवाह दर्ज किये गये जिनमें २ बहुविवाह थे। पिछले साल भारतको लौटनेवाले २,०२९ भारतीयोंकी बचत, रुपया और जेवर मिलाकर, ३४,६९० पौंड थी, अर्थात् प्रति व्यक्ति १७ पौंडसे कुछ ज्यादा। इसमें अक्सर पेश किये जानेवाले इस खयालसे विपरीत एक निर्णायक तर्क मिलता है कि भारतीय लोग बड़े मजे में भारत वापस जा सकते हैं और अपनी कमाईसे अपनी बाकी जिन्दगी बिना कुछ किये बिता सकते हैं, या अपनी बची पूँजीको किसी अन्य व्यवसाय में लगा सकते हैं, जिससे अच्छी रोजी कमा सकें। भारत जैसे गरीब देशमें भी संजी-दगीसे यह नहीं कहा जा सकता कि १७ पौंडसे एक आदमीका गुजारा बहुत दिन हो सकता है। २,०२९ लौटे भारतीयोंमें से १,५४२ मद्रासी और ४८७ कलकत्तावाले थे। मद्रासियों की बचतकी रकम थी २७,४१७ पौंड अर्थात् १८ पौंड प्रति व्यक्ति और कलकत्तावालोंकी बचतकी रकम थी ७,२७३ पौंड अर्थात् १५ पौंड प्रति व्यक्ति। संरक्षकने प्रवासियोंकी बचतका जो वर्गीकरण दिया है वह बड़ा दिलचस्प है। इसके अनुसार ४७ मद्रासियों में से प्रत्येकके पास २,००० रुपये से अधिक थे जब कि कलकत्तावालों में से ५ के पास ही इतने रुपये थे। २५ मद्रासियों के पास २,००० रुपयेसे कम थे जब कि इतने रुपये ६ कलकता वालोंके पास। २२ मद्रासियों के पास ५० रुपये से कम थे जब कि इतने रुपये ११ कलकत्तावालोंके पास थे। इस तरह, कलकत्तावाले शुरूसे आखिर तक कमजोर उतरे हैं। इससे यह भी जाहिर है कि वे मद्रासियोंके बराबर न तो मेहनती हैं और न किफायती। अच्छा हो कि हमारे कलकत्तावाले भाई इस जरूरी तथ्यको अंकित कर लें और जो उनमें प्रभावशाली हैं वे उनको अधिक दूरदर्शिताकी आवश्यकता समझायें। ८१,३९० भारतीयोंमें से ३०,१३१ गिरमिटिया थे और बाकी मुक्त हो गये थे "मालिक और नौकर" शीर्षकके अन्तर्गत हमको बताया गया है कि आम तौरपर मालिक और गिरमिटिया भारतीयोंके बीच सम्बन्ध अच्छे रहे हैं और परिणामस्वरूप भारतीयोंके साथ अच्छा व्यवहार किया जाता है।
जो भारतीय संरक्षकके पास शिकायतें करनेके लिए जानेके इच्छुक हों उनके सम्बन्धमें नये नियम बना दिये गये हैं। पहले अगर कोई भारतीय यह साबित कर देता था कि वह संरक्षकके पास शिकायत पेश करने जा रहा है तो वह गिरफ्तारी से मुक्त रहता था। लेकिन