इस दुःखजनक विषय में हमने संरक्षकका पूरा कथन पेश कर दिया है और हम इस बात-पर आश्चर्य प्रकट किये बिना नहीं रह सकते कि यह मामला गम्भीर विचार किये बिना यों ही खतम कर दिया गया। गिरमिटिया भारतीयोंमें आत्महत्याएँ आये सालकी चीज बन गई हैं और हमारे विचार में इसके कारणकी जांच गहराईसे की जानी चाहिए। भारतीयोंके संरक्षकका यह उत्तर कोई उत्तर नहीं है कि जिनके बारेमें माना जाता है कि वे जानते हैं वे ही अगर कोई सूचना देने से इनकार करें तो बहुत-सी घटनाओंका सम्भावित कारण जानना भी असम्भव है। अंग्रेजीकी एक सीधी-सादी कहावत है, "जहाँ चाह वहाँ राह।" और अगर संरक्षक हमारी ही तरह अनुभव करे तो चूंकि उसको एक निरंकुश शासकके अधिकार प्राप्त हैं, इसलिए उसे आत्महत्या के कारण ढूँढने में रत्ती-भर भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। संरक्षकके बयानसे इस बातका काफी पता लग जाता है कि कहीं न कहीं खराबी जरूर है। स्वतन्त्र भारतीयोंकी ५१,२५९ जनसंख्यामें ८ आत्महत्याएँ हुई और ३०,१३१ गिरमिटिया भारतीयोंमें २३। दोनोंके अनुपातों में यह इतनी बड़ी विषमता क्यों है? पेरिस इस बारे में सबसे बदनाम माना जाता है। वहाँ आत्महत्याओंकी सबसे अधिक संख्या अर्थात् दस लाखमें ४२२ पाई जाती है। परन्तु गिरमिटिया भारतीयोंमें यह संख्या दस लाखमें ७४१ है। ये आँकड़े गम्भीर विचारके लिए काफी कारण उपस्थित करते हैं। हमारा खयाल है इस विषय में रिपोर्टमें दी गई जानकारी बहुत ही थोड़ी है। आत्महत्याओंकी संख्या किस खेतीमें सबसे ज्यादा है, यह बताने के लिए एक विवरण दिया जाना चाहिए और न्यायाधीशको जाँचमें जिस प्रकारका सबूत आदि दिया गया है, कमसे कम उसका सार भी होना चाहिए। हम इन भयंकर आँकड़ोंसे मालिकोंके विपक्ष में कोई परिणाम निकालना नहीं चाहते। परन्तु हम भारतीयों और मालिकों के हित में पूरी तरह जाँच करनेके लिए जोर अवश्य देते हैं और हमारे विचार में कारणकी जाँचके लिए एक निष्पक्ष आयोगसे कम कोई चीज न्यायके उद्देश्यको पूरा नहीं कर सकेगी। एक आदर्श आयोग में एक प्रतिष्ठित डॉक्टर, एक प्रवासी निकायका नामजद व्यक्ति, संरक्षक और, अगर यह सुझाव देना धर्म-विरुद्ध नहीं है तो, उपनिवेशका एक सम्मानित भारतीय सम्मिलित किये जाने चाहिए। ऐसा आयोग सच्चाईतक पहुँचे बिना नहीं रह सकता। इस विषयपर जितना प्रकाश डाला जायेगा सब सम्बन्धित लोगोंके लिए उतना ही अधिक अच्छा होगा। और हम आशा करते हैं कि हमने जो बातें कहीं हैं उनपर अधिकारी अनुकूल विचार करेंगे।[१]
इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९०४
- ↑ इस सम्बन्धमें गांधीजीने दादाभाई नौरोजीसे पत्र-व्यवहार किया था, जैसा उस पत्रसे प्रकट है जो उन्होंने २९ जूनको भारत-मन्त्रीको लिखा था: मेरा ट्रान्सवाल-स्थित संवाददाता नेटालकी खेतियोंमें गिरमिटिया भारतीयोंकी आत्महत्याओंकी अस्वाभाविक संख्याका उल्लेख करता है और कहता है कि “इन आत्महत्याओंका बहुत ऊँचा औसत साल-ब-साल चला आता है। उसने ऑरेंज रिवर उपनिवेशके सख्त एशियाई विरोधी कानूनोंका भी जिक्र किया है जो वहाँ आ भी लागू हैं।” (इंडिया ऑफिस: ज्युडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, १५६७) गांधीजीका पूरा पत्र उपलब्ध नहीं है।