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१६३. श्री लवडे और ब्रिटिश भारतीय

श्री लवडे प्रिटोरिया में नगराध्यक्ष के सम्मानमें आयोजित भोजके अवसरपर ब्रिटिश भार-तीयोंके खिलाफ फिर उमड़ पड़े हैं। प्रतीत होता है, माननीय सदस्य अपने दिमागसे भारतीयों के भयको दूर करने में बिलकुल असमर्थ हैं। उन्होंने इस प्रश्नपर यह कहा है:

मैं मानता हूँ कि युद्धकालसे पहले ब्रिटिश भारतीयोंकी जो स्थिति थी वह तबतक अपरिवर्तित, अनुल्लंघनीय और सुरक्षित रहनी चाहिए जबतक उत्तरदायी शासन नहीं आ जाता (तालियाँ)। यह तमाम लोगोंकी आवाज है और इसका हेतु है आत्मरक्षा। भारतकी तरफ से कुछ भी आवेदन-निवेदन हों, उनका एक ही जवाब हो सकता है। इससे अधिक काले आदमियोंके लिए दक्षिण आफ्रिकामें अब स्थान नहीं है (जोरसे तालियाँ)। भारतीय इस देशसे जो रुपया खींच कर ले जाते हैं उसके बदले में वे इस देशमें लाते क्या है? अभीतक तो वे बीमारियोंके सिवा कुछ लाये नहीं हैं। इन बीमारियोंपर हमें थोड़े-थोड़े समय बाद कुछ लाख पौंड खर्च करने पड़ते हैं। और, इससे बीमारियाँ नष्ट नहीं होतीं, कुछ समयके लिए रुक भर जाती हैं। ऐसी है इस देशमें भारतीयोंकी स्थिति। और फिर भी वे समुद्रपारीय भावुक सज्जन कहते हैं कि हम यह स्थिति चुपचाप स्वीकार कर लें। मैं अपनी तरफसे—और सारे देशकी तरफसे भी—कह सकता हूँ कि अगर दक्षिण आफ्रिकाके द्वार पूर्वी लोगोंके हमलेके लिए खोल दिये गये तो हमारे लिए अफ्रिकाको पूर्णतः श्वेत लोगोंका देश रखना जिसमें श्वेत लोगोंकी प्रभुता हो-असम्भव हो जायगा (तालियाँ)। इस देशमें बड़ा भय है कि समुद्रपारकी दलगत राजनीतिके हेतु हमारा उपयोग किया जा रहा है और आगे किया जायेगा। मैं इस देशमें बहुत वर्षोसे रहता हूँ। मुझे स्मरण है, सन् १८८१ में भी हम इसी हालतमें से गुजरे थे और एक खास वर्गके राजनीतिज्ञोंने—मैं उन्हें राजनयिक नहीं कह सकता—इंग्लैंडकी दलीय राजनीतिके हेतु दक्षिण आफ्रिकी मामलोंका उपयोग किया था और उसके लिए इस देशका बलिदान किया था (तालियाँ)। हम नहीं चाहते कि हमारे घरेलू मामले इंग्लैंडकी दलीय राजनीतिके खेलकी गेंद बनाये जायें (तालियाँ)।


इस प्रकार श्री लवडे चाहते हैं कि युद्धकालसे पहले भारतीयोंकी जो स्थिति थी वह "अपरिवर्तित, अनुल्लंघनीय और सुरक्षित" बनी रहे। इसलिए क्या दे सरकारसे यह कहनेकी कृपा करेंगे कि वह भारतीयोंको लड़ाईसे पहले की तरह परवानोंके बिना जहाँ वे चाहें वह व्यापार करने दे और उन्हें बिलकुल किसी रुकावटके बिना उपनिवेशमें प्रविष्ट होने दे? हम उनसे आँकड़े देकर यह भी बतानेका अनुरोध करेंगे कि भारतीय इस देशसे कितना रुपया खींच ले गये हैं, और यदि वे अनुमति दें तो हम उन्हें यह बता सकते हैं कि भारतीयोंकी अधिकांश कमाई थोक यूरोपीय व्यापारियों और मकान मालिकोंकी थैलियों में पहुँच गई है। जोहानिसबर्ग नगर-परिषदकी गफलतका जो पर्दाफाश हुआ है उसे देखते हुए यह कहना कि भारतीय इस देशमें बीमारीके सिवा और कुछ लाये ही नहीं, ऐसा ही है जैसा कि "सच्चाईके अड़ोस-पड़ोस में चक्कर लगाना।” और, आखिरकार, क्या श्री लवडे प्लेगको छोड़कर ऐसी कोई भी दूसरी बीमारी