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१६६. ट्रान्सवालका प्रस्तावित नया एशियाई कानून

सहायक उपनिवेश-सचिव श्री मूअरने ईस्ट रैंड पहरेदार संघको उत्तर दिया है कि सरकार एशियाइयोंसे सम्बन्धित मौजूदा कानूनमें अर्थात् १८८६ में संशोधित १८८५ के कानून ३ में, परिवर्तन करनेका विचार गम्भीरतासे कर रही है। हमें मालूम है कि सरकार पिछले अठारह महीने से ऐसा विचार कर रही है—गम्भीरतासे कर रही है या नहीं, यह विवादास्पद है। परन्तु हम इसका कारण भी खूब समझते हैं। अब चूंकि न्यायालयने १८८५ के कानून ३ की सरकारी व्याख्या और सरकारी नीति अमान्य कर दी है, इसलिए वह इस मामलेमें गम्भीर हो गई है। श्री लिटिल-टन अनेक मामलों में यह दिखा चुके हैं कि वे मजबूत इरादेके व्यक्ति हैं। रोडेशियामें खानोंके मालिकोंने चीनी मजदूर लाने की माँग की थी; किन्तु उन्होंने बेझिझक यह तय किया कि वे उनकी माँगपर तबतक ध्यान न देंगे जबतक इस दक्षिण आफ्रिकी प्रदेशकी विधान परिषद इस मामलेमें अपना दृष्टिकोण न बता दे। अब फिर उन्होंने सही या गलत यह निश्चय किया है कि ट्रान्सवालमें चीनियोंको लाना देशके लिए अच्छा है और ट्रान्सवालके लोग इसके पक्ष में हैं। इस सम्बन्ध में वे इंग्लैंड और ब्रिटिश साम्राज्यके अन्य भागोंके प्रबल विरोधका सामना करनेमें भी नहीं झिझके हैं। तब क्या वे ट्रान्सवालके भारतीय कानूनके सम्बन्धमें भी अपने मतपर ही दृढ़ रहेंगे? उन्होंने सर मंचरजी भावनगरीको आश्वासन दिया है कि वे इस मामलेपर अत्यन्त गम्भीरतासे विचार करेंगे। चीनियोंको लानेका प्रश्न साम्राज्यसे सम्बन्धित प्रश्न नहीं है। ब्रिटिश प्रजाजनोंके दर्जे पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन यह माना जा चुका है कि भारतीयोंका प्रश्न साम्राज्यसे सम्बन्धित प्रश्न है और वह बहुत महत्त्वपूर्ण भी है। इसके सम्बन्धमें बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। दक्षिण अफ्रिकाके बाहरके देशों में लोगों का बहुत बड़ा बहुमत भारतीयोंकी माँ का समर्थक है। इसके अतिरिक्त साम्राज्य सरकार गणराज्य शासनके समयसे ही ब्रिटिश भारतीयोंके पक्षकी नीतिसे बँधी है। प्रिटोरियामें जब श्री क्रूगर शासन करते थे तब उसने भारतीयोंके अधिकारोंकी लड़ाई लड़ी थी। उसके प्रतिनिधियोंने सोच-समझकर यह वक्तव्य दिया था कि युद्धके अनेक कारणोंमें से एक था ट्रान्सवाली ब्रिटिश भारतीयोंकी शिकायतें। ये सब बातें बहुत कुछ श्री लिटिलटनका सही मार्गदर्शन कर सकती हैं। साम्राज्य-हितैषी होनेके नाते वे भारतीय हितोंकी रक्षा अवश्य करेंगे। फिर वे अपने पूर्व अधिकारियों द्वारा ब्रिटिश भारतीयोंको दिये गये वचनोंसे भी बँधे हैं और हम केवल यही आशा कर सकते हैं कि १८८५ के कानून ३ के स्थानमें जो नया कानून बनाया जायेगा वह साम्राज्य निष्ठा और उक्त वचनोंके अनुकूल होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०४