१६९."मर्क्युरी" और गिरमिटिया मजदूर
हमारे सहयोगी नेटाल मर्क्युरीको जो कुछ कहना होता है, वह प्रायः अच्छी जानकारीके आधारपर कहता है। परन्तु ट्रान्सवालके चीनी प्रवासी सम्बन्धी अध्यादेश और ट्रिनिडाड तथा ब्रिटिश गियाना में लागू गिरमिटिया मजदूरोंके लाये जानेका विनियमन करनेवाले अध्यादेशकी तुलनाके सम्बन्ध में उसकी जानकारी गलत है। शायद हमारे सहयोगीसे यह भूल इस कारण हुई है कि श्री बालफ़रने राजनीतिक कारणोंसे यह कहना उचित समझा है कि ब्रिटिश गियाना अध्या-देश और चीनी प्रवासी अध्यादेश एक समान हैं। जो लोग इस तरहकी दलीलें देते हैं उनकी जानकारी के लिए हम यह बता दें कि इन दोनों अध्यादेशों में उतना ही अन्तर है जितना काले और सफेदमें। ब्रिटिश गियानाके अध्यादेशमें गिरमिटियोंको अपनी बुद्धिके प्रयोग से वंचित करनेका विधान नहीं है। उसमें यह आग्रह नहीं है कि गिरमिटिये अपने गिरमिट खत्म होनेपर देशसे चले जायें; और उसमें उनको महज अनाड़ी मजदूरोंका दर्जा भी नहीं दिया गया है। उनके लिए अनाड़ी मजदूरके कामके अलावा दूसरा काम करना वर्जित नहीं है और न दूसरोंके लिए उनसे इसके अलावा दूसरा काम लेना वर्जित है। साथ ही, वहाँ उनको निश्चित अहातों में रखनेकी प्रणाली[१] नहीं है, जैसी चीनियोंके खिलाफ लागूकी जानेवाली है। ब्रिटिश गियाना के मजदूर अपना गिरमिट खत्म होनेके बाद देशमें बसने और स्वाधीन मनुष्योंकी हैसियतसे काम करनेके लिए स्वतन्त्र हैं। चीनियोंके बारेमें ऐसा नहीं। हमें पता नहीं, दोनोंमें इस बुनियादी भेदके बावजूद क्या हमारा सहयोगी अब भी इसी रायपर अड़ा रहेगा कि फर्क सिर्फ यह है कि “राजनीतिक दलोंके कुछ लोग ट्रान्सवालमें उस प्रणालीको गुलामी कहते हैं और उसकी निन्दा करते हैं, जो दूसरे उपनिवेशों में खुशीसे गिरमिटिया मजदूर प्रथा मानी जाती है।"
इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०४
- ↑ इसका उद्देश्य चीनियोंको उसी स्थानमें रखना, जहाँ वे काम करते थे और उनकी हलचलोंको पासों द्वारा उनके स्थानसे एक मीलके घेरेमें सीमित कर देना था।