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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२६०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यदि मूल भाषा या पाठमें इसकी मनाही या रुकावट न हो तो “रंगदार व्यक्ति" अथवा "रंगदार व्यक्तियों" शब्द-समुच्चयका स्पष्ट अर्थ यह किया जाना चाहिए, और उससे यह समझना चाहिए कि वह दक्षिण आफ्रिकाके तमाम वतनी मर्दों और औरतोंपर लागू है और उसमें वे सब रंगदार लोग और किसी भी नस्ल या राष्ट्रके वे तमाम व्यक्ति भी शामिल हैं जो कानून या रिवाजके अनुसार रंगदार या रंगदार व्यक्ति कहे जाते हैं या व्यवहारमें ऐसे माने जाते हैं।

यह एक ऐसा निर्लज्जतापूर्ण भेदभाव है, जिसका आधार केवल रंग है और वह भी अत्यन्त उग्र रूपमें। हम दावेसे कह सकते हैं कि अगर जबरदस्तीकी नौकरी गुलामी मानी जा सकती है। तो यह नियम भी इतना दूरगामी है कि इसके भीतर अस्थायी गुलामी आ जाती है। विनबर्गकी नगरपालिकाकी हृदमें रहनेका मूल्य है किसी गोरे मालिककी नौकरी करना। यह स्पष्ट है कि इन नियमों में ब्रिटिश प्रजाजन अथवा वाहैसियत रंगदार व्यक्ति भी अपवाद नहीं माने गये हैं। असल में उनमें रंगदार व्यक्तियोंकी कोई हैसियत मानी ही नहीं गई है। हम इस अखबार में अनेक बार ऑरेंज रिवर उपनिवेशकी नगरपालिकाओंके इसी प्रकारके नियम उद्धृत कर चुके हैं। हमने उनके विरुद्ध आपत्ति प्रकट की है, परन्तु व्यर्थ। और कारण कुछ भी हो, लन्दनमें भी कुछ नहीं किया गया है। शासकीय अधिकारपत्रोंमें उपनिवेश-कार्यालयकी स्वीकृतिके बिना इस प्रकारके कानून बनानेकी मनाही की गई है। यद्यपि खयाल यह था कि बड़ेमें छोटा समाया हुआ माना जायेगा, फिर भी ऐसा मालूम होता है कि उपर्युक्त ढंगके नगरपालिका-कानूनसे बचावकी कोई सूरत है नहीं। और स्थानीय सरकार ऐसे कानूनको अपने विशेषाधिकारसे नामंजूर कर देगी, इसकी कोई आशा दिखाई नहीं देती। हम आशा करते हैं कि उपनिवेश-कार्यालयका ध्यान इन नियमोंकी ओर आकर्षित होगा और कमसे कम, रंगदार लोगोंके विरुद्ध जो नीति ब्रिटिश झंडेके नीचे और सम्राटके नामपर ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें अपनाई जा रही है, उसके सम्बन्धमें कोई घोषणा तो कर ही दी जायेगी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०४