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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२६२

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किये गये विचारोंका द्योतक है तो वह ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंके अत्यन्त अशुभ भविष्यका आभास देता है। फिर भी हम आशा करते हैं कि लॉर्ड महोदयने परिषदकी शुष्क कार्रवाईको सरस बनाने और विभिन्न विभागों के कामको बहुत भोंड़े ढंगसे चलानेवाले विद्रोही सदस्योंको खुश करनेके खयालसे ही ये बातें कह दी हैं। क्योंकि हम देखते हैं कि लॉर्ड महोदयने इस हथियारके बारेमें जो बातें कहीं उनपर खूब हँसी हुई थी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०४

१७२. सिपाहीकी शूरता

हमें ट्रान्सवाल लीडरसे तिब्बत में एक झड़पका हूबहू वर्णन देते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है।

लीडरको प्रेषित रायटरके विशेष लेखमें कहा गया है,

हमला अरुणोदयके समय शुरू हुआ। खून जमा देनेवाली चीखोंके साथ दुश्मनके दो मजबूत दल, तेजीके साथ पहाड़ीसे उतर कर हमारे मोर्चेपर टूट पड़े। अंग्रेज फुर्तीसे किलेबन्दीकी आड़में चले गये—अविचलित रहा अकेला एक सिपाही। तब धर्मान्धोंका वह उमड़ता हुआ समूह––जिसमें १०० जवान थे—उस निष्ठावान सिपाहीपर टूट पड़ा। किन्तु वह सिपाही तिब्बतियोंपर धीरजके साथ निशाना साधते हुए अपनी जगहपर अटल रहा। उसने दुश्मनके पाँच जवानोंको गोलीसे मार गिराया, किन्तु इतनेमें दो तलवारियोंने उसके टुकड़े कर दिये। अब हमलावरोंका वह दस्ता अंग्रेज फौजोंको छुपा रखनेवाली दीवारोंपर चढ़नेकी कोशिश करने लगा और दीवारके छेदोंमें व्यर्थ तलवारें घुसेड़ने लगा। किन्तु अब तो वे छेद गोलियोंकी निरन्तर बौछार उगल रहे थे।

इस अकेले सिपाहीकी शूरताकी स्मृति कौन-सा विक्टोरिया क्रॉस कायम रख सकता है, और बहादुरीके ऐसे कितने कारनामे बिना उल्लेखके रह जाते हैं? इसी प्रकारकी बहादुरी होनी चाहिए, जिसने लॉर्ड रॉबर्ट्सको बार-बार मुक्त हृदयसे सराहना करनेके लिए प्रेरित किया। विगत साठ वर्षोंमें अंग्रेजोंने शायद ही ऐसी कोई लड़ाई लड़ी है, जिसमें भारतीय सिपाहियोंने शानदार हिस्सा न लिया हो; फिर चाहे वह सशस्त्र सिपाहीकी हैसियतसे हो या पिछले बोअर युद्धके निःशस्त्र डोलीवाहक या भिश्तीकी तरह हो। लॉर्ड टेनिसनके दो शब्दोंमें:

तर्क नहीं जानते वितर्क नहीं जानते

सिर्फ एक कायदा करो मरोका मानते

ये विस्मरणीय शब्द प्रसिद्ध "चार्ज ऑफ़ दि लाइट ब्रिगेड" के बारेमें लिखे गये थे; किन्तु, ढिठाई माफ हो, इस भारतीय सिपाहीपर भी ये वैसे ही लागू होते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-६-१९०४