१७८. प्रिटोरिया नगरपालिका और रंगका प्रश्न
पैदल-पटरी उपनियमोंके सवाल पर सरकार और प्रिटोरिया नगरपालिकाके बीच आगे और पत्रव्यवहार हुआ है। इसे हम अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं। इस मामलेमें सरकारने जो मजबूत रुख इख्तियार किया है उसपर वह बधाई की पात्र है। उधर, प्रिटोरिया नगरपालिका जिस दृढ़तासे सरकारसे लड़ रही है उसकी भी तारीफ न करना असम्भव है। इसमें खेदकी बात यही है कि ट्रान्सवालकी राजधानीकी नगरपालिका यह दृढ़ता एक ऐसे काममें दिखा रही है जो प्रत्येक समझदार आदमीको अकीर्तिकर और अयोग्य प्रतीत होगा। गम्भीरतापूर्वक यह दलील नहीं दी जा सकती कि रंगदार लोगोंको पटरियोंपर चलने देनेसे कोई सिद्धान्त खतरे में है। निश्चय ही इसका अर्थ यह नहीं होगा कि नगरपालिका अन्य बातोंमें भी दोनों जातियोंकी समानताका सिद्धान्त स्वीकार करती है। वह तो एक बड़ा सवाल है और उसे पटरियोंके प्रश्नसे बिलकुल अलग रखा जा सकता है। प्रिटोरियाके नगराध्यक्ष अब प्रत्यक्ष देखते हैं कि नगरपालिका सरकारका विरोध जारी रख कर खुदको हास्यास्पद बना रही है, परन्तु दूसरे सदस्य, जिनके श्री लवडे नेता हैं, उनकी दलीलें नहीं सुनते और उन्होंने सरकारसे एक पत्र द्वारा माँग की है कि वह एक विशेष अध्यादेश बना दे, जिससे प्रिटोरिया नगरपालिकाको जोहानिसबर्ग नगरपालिकाके समान अधिकार मिल जायें। सरकार और परिषदके बीच जो द्वन्द्व-युद्ध चल रहा है वह बहुत ही मनोरंजक है। हम इतनी ही आशा रख सकते हैं कि सरकार उस सिद्धान्तपर जमी रहेगी जो खुद उसीने स्थिर किया है और ऐन मौकेपर नगरपालिकाके निर्देशके आगे झुक नहीं जायेगी।
इंडियन ओपिनियन, २-७-१९०४
१७९. भारतीयोंके ऋणपत्र
सरकार भारतीयोंके लिए लेनदेनके कानूनी कागजातपर दस्तखत करने के विनियमनके लिए एक विधेयक पेश कर रही है। हम सरकारको इसपर हृदयसे बधाई देते हैं। यह इस बात का सबूत है कि सरकार उनकी भलाईके लिए चिन्तित है। साफ धोखेबाजीके कुछ मामले हमारे देखने में आये हैं। इनमें आवश्यक रूपसे भारतीयोंको भारतीयोंने ही नहीं ठगा, बल्कि कुछ यूरोपीयोंने भी ठगा है। और इसका कारण यह रहा है कि ये भारतीय अंग्रेजी अक्षरोंमें दस्तखत नहीं कर सकते थे। बहुत बार ये ऋणपत्र (प्रॉमिसरी नोट) ऐसे तैयार कर लिये जाते हैं कि हस्ताक्षर करनेवालोंको मजमून मालूम ही नहीं होता। इसलिए यह विधेयक भोले-भाले लोगों को बहुत सहायता पहुँ-चानेवाला होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। विधेयकको पूर्ण बनानेके खयालसे क्या हम यह सुझाव दे सकते हैं कि यदि ऋणपत्रपर हस्ताक्षर करनेवाले व्यक्तिके अँगूठेकी निशानी लेनेपर भी जोर दिया जाये तो यह ज्यादा अच्छा होगा। यह देखा गया है कि किसीके अँगूठेकी जाली निशानी बनाना असम्भव है। इसलिए कोई भी व्यक्ति अपनेको दूसरा व्यक्ति बता कर धोखा न दे सके, इससे बचनेका सबसे सुरक्षित उपाय उसके अँगूठेकी निशानी लेना ही है। क्योंकि, यह हो