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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


सदस्य बने बैठे हैं, केपके सैकड़ों रंगदार लोगोंका उपयोग अपने लाभके लिए किया था। तब तो उनके साथ बहुत प्यार दिखाया गया, उनकी आँखोंके सामने अंग्रेजी झंडा हमेशा लहराता रखा गया; जोशीली जवानमें उन्हें बताया गया कि उसमें रक्षा करनेकी शक्ति कितनी है, जिससे वे भाग कर उनकी गोदमें आश्रय लें, बोअर अधिकारियोंके जुल्मके बारेमें हलफिया बयान दें और उनके साथ एक हो जायें, ताकि उपनिवेश कार्यालय मजबूर हो जाये और श्री क्रूगरपर दबाव पड़े। निश्चय ही इन लोगों को यह अधिकार है कि वे कमसेकम ट्रान्सवालके किसी भी मार्ग की पैदल-पटरियोंपर किसी तरह की छेड़छाड़ के बिना चल सकें, क्योंकि इनकी सार-सँभालमें दूसरे करदाताओंकी तरह वे भी अपना भाग प्रदान करते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०४

१८१. ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय

पिछले मंगलवारको शामको ट्रान्सवाल विधान परिषद में श्री बोर्कके प्रस्तावपर बहस हुई थी। इस प्रस्तावमें सरकार से भारतीयोंकी स्वतन्त्रतापर प्रतिबन्ध लगाने के सम्बन्ध में कानून बनानेका अनुरोध किया गया है। माननीय प्रस्तावक महोदयने हमेशा की-सी मामूली बातें कहीं। उन्होंने सदस्योंके सामने छोटे-छोटे गोरे व्यापारियोंके भावी विनाशका चित्र खींचा और जोर देकर कहा कि इस मामले में ट्रान्सवालको कोई भी कानून बनानेका अधिकार है। उन्होंने साथ ही देशमें भारतीयों के प्रवेशके बारेमें कई बातें कहीं। परन्तु श्री हॉस्केन और डॉ० टर्नरने पूरी तरह साबित कर दिया कि श्री बोर्क अपने कथनोंके सम्बन्ध में जमाने से बेहद पीछे हैं। श्री हॉस्केनने आंकड़ोंसे प्रमाणित किया कि भारतवासी नेटालके लिए एक वरदान रहे हैं और अब भी हैं, एवं नेटाल भारतीयोंके कारण ही समृद्ध है। एक सदस्यने भारतीयोंपर घोर आक्षेप करते हुए कहा कि उनकी आदतें बहुत गन्दी होती हैं। इसके उत्तरमें डॉ० टर्नरने अकाट्य रूपमें सिद्ध किया कि जोहानिसबर्ग की जो भारतीय बस्ती अब जला दी गई है उसकी स्थितिके सम्बन्ध में दोषी एकमात्र अधिकारी ही थे। भारतीय समाजको लायक डॉक्टरका बहुत आभारी होना चाहिए कि उन्होंने सच कहने में संकोच नहीं किया और इन अनुचित आक्षेपोंसे भारतीयोंकी इस प्रकार रक्षा की। श्री डंकनने अकाट्य रूपमें प्रमाणित किया कि बहुत कम भारतीयों को ट्रान्सवालमें प्रवेशकी अनुमति दी गई है और चारके सिवा बाकी सब वास्तविक शरणार्थी हैं। परन्तु श्री डंकनने सदनको अपनी सहानुभूतिका विश्वास दिलाया है और इस सारे मामलेको उपनिवेश कार्यालयके सामने पेश करनेका वचन दिया है। अन्तमें श्री सॉलोमनका संशोधन स्वीकार कर लिया गया और उपनिवेश-सचिव के इस आश्वासनपर सन्तोष प्रकट किया गया कि मौजूदा अधिवेशनमें ही ऐसा कानून पेश किया जायेगा, जिससे श्री बोर्कके भाषण और प्रस्तावमें व्यक्त इच्छाओंपर थोड़ा-बहुत अमल किया जा सकेगा। श्री डंकनको स्वीकार करना पड़ा कि ब्रिटिश सरकार लड़ाईसे पहले दिये गये वचनोंसे बँधी हुई है; हमें देखना है कि ये वचन कैसे पूरे किये जाते हैं।

{{left[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०४}}