१८२. गिरमिटिया भारतीयोंकी आत्महत्याएँ
तारसे खबर मिली है कि श्री लिटिलटनने सर मंचरजी भावनगरीसे कहा है, गिरमिटिया भारतीयों द्वारा की जानेवाली आत्महत्याओंकी संख्या बहुत नहीं है, फलतः वे कोई जाँच नहीं करायेंगे। यदि यह खबर सही है तो हमें बेहद आश्चर्य है।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिकाके अनुसार: "इसके अस्तित्वको राज्यांग में रोगोंकी उपस्थितिका लक्षण मानना ठीक ही है। ये रोग साध्य हों चाहे न हों, इस लक्षणपर बारीकीसे विचार होना चाहिए।" इस तरह, आत्महत्याओं द्वारा होनेवाली मृत्यु-संख्याके अधिक होनेके सिवा भी यह एक ऐसी बात है, जिसकी छानबीन की जानी चाहिए। प्रवासी-संरक्षक भी अपने विवरणमें उस हदतक नहीं गये, जहाँतक श्री लिटिलटन गये हैं। वह मानता है कि मृत्यु- संख्या इतनी बड़ी तो है ही कि उसपर मामूली चर्चासे कुछ ज्यादा किया जाये।
मगर हम आँकड़ोंको मिलाकर देखें। स्वतन्त्र भारतीयोंकी आबादी ५१,२५९ है; उसमें आठ आत्महत्याएँ हुईं। गिरमिटिया भारतीयोंकी आबादी ३०, १३१ है; उसमें तेईस हुईं। ठिठक कर सोचने के लिए यही काफी है। एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में दी हुई तालिकाके अनुसार यह संख्या सेक्सनी में सबसे अधिक थी—अर्थात् १८८२ में ३७१ प्रति दस लाख। गिरमिटिया भारतीयोंमें यह ७४१ प्रति दस लाख है। क्या यूरोपकी और नेटालमें गिरमिटिया भारतीयोंकी अधिकतम आत्महत्याओंके आँकड़ोंका यह जबरदस्त अन्तर बिलकुल विचारणीय नहीं है? और इतनेपर भी, जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, फिलहाल हम किसीको भी दोष नहीं देते; हमने फैसला मुलतवी रख छोड़ा है। शायद इसका कोई सीधा-सादा कारण हो और आसानीसे स्पष्टीकरण किया जा सके। श्री लिटिलटनके प्रति अधिकसे-अधिक आदर रखते हुए हमारी इतनी ही माँग है कि न्याय और मानवताके भलेके लिए इस मामलेकी तहतक जाकर सफाई की जानी चाहिए। हमें यह आशा इसलिए है कि जब सर मंचरजीने मामलेको हाथमें उठाया है। तब वे उसे यों ही छोड़ नहीं देंगे, बल्कि अपनी जाँच-पड़तालमें आग्रहपूर्वक लगे रहेंगे।
इंडियन ओपिनियन, ९-७-१९०४