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स्वर्गीय श्री क्रूगर

जून मास में डर्बनमें प्लेगसे दो व्यक्ति बीमार हुए और वे दोनों वतनी मर्द थे। दोनों मरे हुए पाये गये—एक हार्बर बोर्डकी बारकोंमें और दूसरा क्वीन्स स्ट्रीटके काफिर मुहल्लेमें। और चूँकि दोनोंमें से एककी भी चिकित्सा पहले किसी डॉक्टरने नहीं की थी इसलिए उनकी बीमारीका निदान उनकी शव परीक्षाके बाद ही किया गया। जून मासमें प्लेगकी छूतसे बीमार कोई नया रोगी नहीं मिला है, क्योंकि मेरी मई महीने की रिपोर्टमें जिन मकानोंका जिक्र है उनके बाहर प्लेगकी छूतका एक भी चूहा नहीं पाया गया, यद्यपि डॉ० फरनांडिस और में भिन्न-भिन्न मुहल्लोंके बहुतसे चूहोंकी जाँच-पड़ताल कर चुके हैं। अलेग्जेंड्रा रोड स्थित चुंगी-गोदाममें प्लेग की छूत लग गई थी। इसके मामलेमें जाँचसे अच्छी तरह साबित हो गया है कि चूहोंमें प्लेगकी बीमारी अत्यन्त तीव्र रूपसे संक्रामक और घातक होती है। चूंकि इस मकानसे चूहोंके निकासके सब सम्भावित मार्ग अच्छी तरह बन्द कर दिये गये थे, इसलिए उनमें बड़ी तेजीसे बीमारी फैली और ४० मरे चूहे तो एक दिन ही मिले। करीब-करीब प्रत्येक चूहा इसी रोगसे मरा था। गोदाममें बड़ी मात्रामें जई भरी थी। यह हटाकर जला दी गई, क्योंकि चूहोंको इसमें आश्रय मिलता था और इसीसे वे भोजन भी पाते थे। और उसमें अवश्य ही प्लेगकी छूत थी। साथ ही गोदाम और उसकी चीजोंको पूरी तरह छूत-रहित कर दिया गया।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-७-१९०४


१८५. स्वर्गीय श्री क्रूगर

भूतपूर्व राष्ट्रपति क्रूगर अब इस संसारमें नहीं रहे। और उनके गुजर जानेसे उन्नीसवीं शताब्दीका एक अत्यन्त प्रभावशाली पुरुष चला गया और संसारको अपने लाभसे वंचित कर गया। वे दृढ़ चरित्रके धनी थे, जिसमें शायद अनेक बातें परस्पर-विरोधी थीं। परन्तु, निस्स-न्देह, विशुद्ध नतीजा उनके अनुकूल था। जिन लोगोंको अपना कहने में उन्हें गर्व होता था उनके प्रति उनकी निष्ठा अनुपम थी। उन्होंने अंग्रेज जैसी बलशाली जातिका विरोध करने और उसे अपनी जगत प्रसिद्ध चुनौती भेजने में जो भूल की थी वह भी उनके विरुद्ध नहीं, बल्कि उनके पक्ष में ही गिनी जायेगी। उन्होंने वह घातक कदम देश और देशवासियोंके प्रति अपने गहरे प्रेमसे प्रेरित होकर ही उठाया था। उसके पीछे कोई शेखी नहीं थी। वे अनुभव करते थे कि वे उचित कर रहे हैं। बाइबिलके पुराने धर्मेनियम (ओल्ड टेस्टामेंट) की शिक्षामें उनकी श्रद्धा बहुत गहरी थी और उनका विश्वास था कि ईश्वर उनके साथ है और इसलिए उनकी हार कभी नहीं हो सकती। वस्तुतः मामलेका आखिरी फैसला होनेके बाद भी उन थोड़ेसे दिनोंमें, जबतक वे इस पृथ्वीपर रहे, उनका यह विश्वास कभी डिगा नहीं और वे तब भी अनेक बोअरोंकी भाँति यही विश्वास करते रहे कि अंग्रेजोंका अधिकार हो जानेसे भी उनका कल्याण ही होगा। और बेशक ऐसा ही होगा; शायद उस तरहसे नहीं जिस तरह वे चाहते। परन्तु ईश्वर तो वैसे काम नहीं करता जैसे हम करते हैं और भविष्य बतायेगा कि इस राष्ट्रकी किस्मत क्या होगी। अक्सर यह कहा गया है कि परलोकवासी राष्ट्रपति प्रिटोरियासे कायरताके कारण भागे थे। परन्तु हमने यह आरोप कभी सत्य नहीं माना है। उनका खयाल था कि