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चीनी पहेली

नियन्त्रण करनेका हक प्राप्त कर सके।" यह बिलकुल स्पष्ट है कि जबतक सरकार इस प्रश्नको टालती जाती है और पूरा न्याय करनेके बजाय दोनों पक्षोंको खुश करनेका विचार करती है तबतक यूरोपीय और एशियाई प्रजाजनोंके बीच शान्ति स्थापना में बाधा देनेवाला यह हानिकारक और अवांछनीय आन्दोलन जारी रहेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-७-१९०४

१८७. चीनी पहेली

चीनी व्यापारकी लड़ाई, जो अनिवार्य थी, पूरी तीव्रता और तत्परतासे शुरू हो गई है। बॉक्सबर्गके लोग चीनी दुकानदारोंका अपने गिरमिटिया देशबन्धुओंसे कोई लेनदेन हो इस विचारके ही खिलाफ उठ खड़े हुए हैं। इतना काफी नहीं कि उनके तमाम नागरिक अधिकार छीन लिये जाने हैं और उनको गुलाम जैसा बना दिया जाना है। और, जैसा एक चीनीने भेंट में स्टारके प्रतिनिधिसे कहा था, यह भी काफी नहीं कि उन्हें मजदूरी इतनी थोड़ी दी जानी है कि बचत बहुत थोड़ी ही होगी, यद्यपि गिरमिटके अन्तमें उनके सामने भविष्य होगा—आव-श्यक रूपसे चीनको लौट जाना। इसके अलावा बॉक्सबर्ग के यूरोपीय दूकानदारोंको चीनी व्यापारसे अनाप-शनाप मुनाफा भी मिलना ही चाहिए। और गिरमिटिया लोग अपनी मजदूरीमें से जो भी खर्च करें वह यूरोपीय दुकानदारोंकी जेबों में जाना चाहिए। बॉक्सबर्गके ये शरीफ लोग वस्तुतः तभी समझेंगे कि उनके साथ कुछ थोड़ा-सा न्याय किया गया है; अन्यथा वे कहेंगे कि चीनी मजदूरोंको यहाँ आने की जरूरत ही नहीं थी। और अगर चीनी दूकानदारोंको अपने देशबन्धुओंकी आवश्यकताओंकी पूर्ति करनेकी अनुमति दे दी जाये तो यह अन्यायकी पराकाष्ठा और यूरो-पीय दूकानदारोंकी हकतल्फी होगी। वे स्वीकार करते हैं कि चीनी दुकानदारोंके साथ वे बिलकुल स्पर्धा नहीं कर सकते। सीधी-सादी भाषामें इसका अर्थ यह है कि वे इन गरीब गुलामोंसे उसकी अपेक्षा बहुत अधिक दाम लेंगे जितना चीनी दूकानदार लेनेका कभी विचार करते। और इसलिए वे अपना सारा सामर्थ्य, प्रभाव और बल इस बातपर खर्च कर रहे हैं कि एक भी चीनी या यों कहिये कि, भारतीय व्यापारी चीनी ग्राहकोंमें से जरा भी हिस्सा न बँटा सके। उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नरको प्रार्थनापत्र दिया है और तमाम व्यापारी संघोंसे अनुरोध किया है कि वे उनके गुटमें शरीक हों और उनके हकमें चीनी व्यापारकी एक बड़ी कोठी बनवाने में उनका साथ दें।[१] वे बहुत साफ-साफ कहते रहे हैं कि अगर सरकार उनकी मदद नहीं करेगी तो वे कानून अपने हाथोंमें ले लेंगे और टेढ़े-सीधे तरीके काममें लाकर भी एक भी चीनी दुकानदारको बॉक्सबर्ग में अपना व्यापार नहीं जमाने देंगे। इससे इस समाजकी मनोदशा विदित होती है और यह भी प्रकट होता है कि जो अधिकार केवल उन्हींके नहीं हैं, उनपर जोर देने या, यों कहिए कि, उन्हें हड़पनेके इरादेसे वे किस हदतक आगे बढ़नेके लिए तैयार हैं। बिगड़ैल और लाड़ले बच्चोंकी तरह, वे चूँकि अबतक अपनी ही जिद पूरी करते रहे हैं इसलिए अब वे सारी मर्यादाएँ ही लाँघ गये हैं और सिर्फ यही समझते हैं कि वे जिस प्रश्नपर चाहें सरकारसे अपनी शर्तें मनवानेका हक रखते हैं। क्या श्री लिटिलटन इनके आगे घुटने टेक देंगे?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २३-७-१९०४
  1. इससे अभिप्राय चीनी मजदूरोंके साथ व्यापारपर गोरोंका एकाधिकार है।