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१८८. बॉक्सबर्गके पहरेदार

बॉक्सबर्ग में भारतीय व्यापारके सम्बन्धमें जो सभा की गई थी हम उसका विवरण नीचे उद्धृत करते हैं। इससे हमें १८९६ का डर्बनका ऐसा ही आन्दोलन[१] बहुत तीव्रतासे याद आता है। और इस सभा में प्रस्तुत और स्वीकृत दूसरे प्रस्तावमें भी बहुत तेज डर्वनी बू आती है। प्रस्ताव यों है:

बॉक्सर्ग नगरपालिका निवासी इस आम सभामें प्रतिज्ञा करते हैं कि वे मौजूदा एशियाई कानूनके सिद्धान्तोंको, ट्रान्सवालके लोगों द्वारा हमेशा के लिए गये अर्थके अनुसार, कायम रखेंगे और एशियाई दूकानदारोंको पृथक् बस्तीके बाहर बॉक्सबर्ग नगरपालिकामें व्यापार करने या रहनेसे रोकने के लिए सब सम्भव उपाय काममें लेंगे; वे सरकारसे यह अनुरोध करते हैं कि जो पेचीदगियाँ पैदा हो गई हैं उन्हें देखते हुए नये कानून में एशियाई व्यापारकी बिलकुल मनाही कर दी जाये।

तब हम देखते हैं कि इसमें एशियाई व्यापारकी पूरी मनाहीकी प्रार्थनाके रूपमें साफ तौरपर सर्वोच्च न्यायालयका विरोध किया गया है और धमकी दी गई है कि अगर कोई एशियाई बॉक्सबर्ग में पृथक् बस्तीके बाहर बसनेका इरादा करेगा तो हिंसाका आश्रय लिया जायेगा। प्रस्तावकने उदाहरण देकर बताया कि सब सम्भव उपायोंसे उनका मतलब क्या है। यह है उसका अर्थपूर्ण कथन:

अबतक शानदार एकता और सार्वजनिक भावनाके बलपर लोगोंने नगरमें एशिया-इयोंको कोई दुकान या बाड़ा किरायेपर देनेसे इनकार किया है, यद्यपि एक चीनीने ड्रीफाँ-टीनमें परवाना हासिल कर लिया है। मगर मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता होती है कि, आशा है, कल सुबह्तक खतरा दूर हो जायेगा और पृथक् बस्तीके बाहर सारी नगरपालिकाकी सीमामें किसी भी बाड़ेका किसी एशियाईके नाम परवाना बिलकुल नहीं रहेगा (तालियाँ)। अबतक जो 'नैतिक दबाव' इतनी सफलतापूर्वक डाला गया, उसमें ऐसी ताकत है। किन्तु हमें और हमलोंके लिए तैयार रहना होगा और इसलिए प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम एशियाइयोंको प्रोत्साहन देनेका हर सम्भव उपायसे विराध करेंगे।--स्टार हमें यह कहने की जरूरत नहीं कि " नैतिक दबाव" का क्या अर्थ है।

सभामें उपस्थित कुछ संजीदा लोगोंको यह सहन नहीं हो सका और हमें उनमें ईस्ट रैंड एक्स्प्रेसके श्री कॉन्स्टेबलको देखकर खुशी हुई। हमारा खयाल है कि वे एशियाइयोंके कट्टर विरोधी हैं, फिर भी उनको अपनी वैधानिक बुद्धिमें यह प्रस्ताव बड़ा घिनौना मालूम हुआ और उन्होंने सुझाव दिया कि इसमें [ "हर सम्भव उपाय" शब्द निकालकर ] "प्रत्येक सम्भव वैधानिक उपाय" शब्द जोड़ दिये जायें और मनाहीकी पूरी धारा निकाल दी जाये। परन्तु श्री कॉन्स्टेबल और उनके समर्थकों की आवाज अरण्यरोदन ही सिद्ध हुई और वहाँ विवेकको क्रोध और द्वेषसे हार माननी पड़ी। जैसा हमने अनेक बार कहा है, यदि बॉक्सबर्गवासी महानुभाव यह समझते हों कि कायरता-भरी धमकियोंसे वे किसी एक भी ब्रिटिश भारतीयको, जो अपने अधिकारपर जोर देना चाहता

  1. यह संकेत यूरोपीयों द्वारा भारतीयोंको डर्बनमें उतरने देनेके विरोधकी ओर है। देखिए खण्ड २, पृष्ठ १९९ और आगे।