हो, डरा-धमका सकेंगे, तो यह उनकी बड़ी भूल है। और हम उन्हें फिर डर्बन और अमतलीकी घटनाओंकी[१] याद दिलाते हैं। डर्बनमें स्वयंभु प्रदर्शन समितिकी चुनौती भारतीयोंको डराने-धम-काने अशक्त रही और उससे वे जहाँसे आये थे वहाँ वापिस नहीं गये। और अमतलीमें भीड़ अकेले निर्दोष भारतीय व्यापारीको भी डराकर उसको अपनी दुकानसे नहीं हटा सकी। उसने उन लोगोंको चुनौती दी कि वे जो कुछ बुरासे-बुरा कर सकते हैं वह कर गुजरें और वह अपनी जगहपर उस वक्ततक डटा रहा जबतक पुलिसकी मदद न आ गई और पुलिस सुपरिटेंडेंटने भीड़ को तितर-बितर नहीं कर दिया।
परन्तु बॉक्सबर्गके महापौरने जो कुछ कहा वह कहीं अधिक खौफनाक था। उन्होंने सभामें उपस्थित लोगों को समझाया कि वे उत्तरदायी शासन जल्दी ही देने की माँगके प्रस्तावसे सरकारको दी गई धमकी निकाल दें। उन्होंने सभामें बिलकुल स्पष्ट कहा कि उपनिवेश सचिव श्री डंकन पूरी तरह उनके साथ मिलकर काम कर रहे हैं। हम अपने विचार पेश नहीं करना चाहते, क्योंकि हम उपनिवेश सचिवके प्रति अनजान में भी कोई अन्याय नहीं करना चाहते। उनके शब्द ये हैं:
महापौरने तब कहा: मैं आज प्रिटोरिया गया था और आपको बता सकता हूँ कि वहाँ भी एशियाई प्रश्नपर उतनी ही तीव्र चर्चा होती है, जितनी ईस्ट रैंडमें। आपको एक क्षणके लिए भी यह नहीं सोचना चाहिए कि सरकारको जो खबरें दी जा रही हैं उनके प्रति वह उदासीन है। परन्तु सरकार यह महसूस करती है कि मौजूदा कानून जबतक है, वह एशियाइयोंको परवानोंका दिया जाना रोक नहीं सकती। परन्तु वह भरसक कोशिश कर रही है कि ऐसा कानून तुरन्त बनानेकी अनुमति ले ली जाये, जिससे अब और पर- वाने देना रुक जाये। मुझे भय है कि अगर श्री मैक' क्यूको सभाके सामने यह प्रस्ताव पेश करने दिया जाता है तो इससे सरकारका उद्देश्य व्यर्थ हो जायेगा। मैं उपनिवेश-सचिव श्री डंकन और सर जॉर्ज फेरारके कथनके आधारपर कह सकता हूँ कि गोरे लोगोंके साथ सरकारकी पूरी सहानुभूति है और इसके प्रमाणस्वरूप मुझसे कहा गया है कि यहाँ आज शामको जो प्रस्ताव पास हों, वे इंग्लैंडको प्रेषित करनेके लिए तारसे प्रिटोरिया भेज दिये जायें। मुझे कहा गया है कि इस प्रस्तावसे सरकारके हाथ मजबूत होंगे और मुझे आशा है कि हमें जल्दी ही राहत मिलेगी। उपनिवेश-सचिवने मुझसे साफ-साफ कहा है कि तीन-चार दिन पहले ही इस प्रश्नके सम्बन्धमें इंग्लैंडको समुद्री तार भेजे गये हैं और सरकार इस प्रश्नको अत्यन्त महत्त्वपूर्ण समझती है (तालियाँ)।—स्टार हमने पिछले सप्ताह जो कुछ कहा था उसके समर्थनमें हम इससे अधिक प्रबल या अच्छा प्रमाण दूसरा नहीं दे सकते। हमने तब कहा था कि यह सारा आन्दोलन आयोजित है। यह दृश्य अपमानजनक है कि हम उपनिवेश सचिवको सरकारी प्रतिनिधि होते हुए भी ऐसा पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हुए और ताकत वगैरा माँगते हुए आन्दोलनके पीछे खड़ा पाते हैं। इस तरहका व्यवहार तो स्वर्गीय राष्ट्रपति क्रूगरकी सरकारने भी नहीं किया था। उन्होंने भी यह नहीं कहा था कि नगर निवासी अथवा डचेतर यूरोपीय उनके हाथ मजबूत करें। उन्होंने अपनी लड़ाई सीधी और न्यायपूर्वक लड़ी थी। तब परदेके पीछे कुछ नहीं होता था और भारतीय जानते थे कि उन्हें किस चीजका सामना करना है। इस समय जैसी स्थिति है, उसमें उन्हें कुछ भी पता नहीं है कि परदेके पीछे क्या हो रहा है। महापौरने हमें भीतरी स्थितिकी
- ↑ देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ६१।