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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/२७८

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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


जरा-सी झलक ही देखने दी है; परन्तु वह झलक हमें स्तब्ध और निराश करने के लिए काफी है। जब सभाकी ये खबरें तारसे श्री लिटिलटनको भेज दी जायेंगी, तब वहाँ उन्हें यह बतानेके लिए कोई नहीं होगा कि ये सभाएँ प्रायः सरकारने ही बुलाई हैं और उसीने उन्हें प्रोत्साहन दिया है और सरकारकी नीति सभाकी नीति है। हजारों ब्रिटिश मंचोंसे यह घोषणा की गई है कि कुछ भी हो, न्याय होना ही चाहिए। ट्रान्सवालमें अब इस कहावत में परिवर्तन करना पड़ेगा, ताकि यहाँ जो नई व्यवस्था कायम हुई है उसके साथ इसका मेल बैठ जाये; और बॉक्सवर्गके महापौरने जो बात कही है उसको देखते हुए हमें महसूस होता है। कि सर जॉर्ज फेरारके एशियाई व्यापारी आयोगकी नियुक्तिसे सम्बन्धित प्रस्तावपर श्री डंकनने भारतीय व्यापारियोंकी जो शानदार वकालत की थी वह सच्चे दिलसे नहीं की गई थी।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३०-७-१९०४

१८९.गिरमिटिया भारतीयोंमें आत्महत्याएँ

गिरमिटिया भारतीयों में आत्महत्याओंकी असाधारण संख्याके बारेमें हमने पिछले ४ जूनके इंडियन ओपिनियनमें जो प्रश्न उठाया था उसपर सर मंचरजीने ब्रिटिश संसदमें सवाल पूछा था और उसका जवाब श्री लिटिलटनने दिया था। अब हमें इस प्रश्नोत्तरको विस्तारसे यहाँ छापनेका सुयोग प्राप्त हुआ है:

सर मंचरजी भावनगरीने उपनिवेश मन्त्रीसे पूछा: क्या आपका ध्यान उक्त वक्तव्यकी ओर गया है जो नेटाली प्रवासी भारतीयोंके संरक्षककी १९०३ की सालाना रिपोर्टमें दिया गया है? उसमें कहा गया है कि उस वर्ष में आत्महत्याओंकी घटनाएँ कमसे-कम ३१ अर्थात् दस लाख में ७४१ हुईं। क्या गिरमिटिया मजदूरोंने बहुत बड़े अनुपातमें आत्म-हत्याएँ कीं; और क्या स्थानीय अधिकारियोंने इस प्रकार स्वेच्छापूर्वक प्राण त्यागके कारणोंका पता लगाया?

श्री लिटिलटनने कहा: मैंने उल्लिखित रिपोर्ट देखी है। भारतीयोंम मृत्यु-संख्या प्रति दस लाखमें ७४१ नहीं हुई जैसा कि कहा गया है, बल्कि ३८२ हुई। स्वतन्त्र भारतीयों और गिरमिटिया भारतीयों में मृत्यु-संख्याको दर क्रमशः १५७ और ७६६ थी। मुझको बताया गया है कि आत्महत्याको प्रत्येक घटना किन परिस्थितियों में हुई, इसकी जाँच न्यायाधीशसे कराई गई और जब कभी प्रमाणोंसे यह प्रगट हुआ कि मृत्यु किसी भी तरह किसी मालिक या नौकरके दुर्व्यवहारसे हुई है तब भारतीय प्रवासीसंरक्षक उस खेती में खुद गया और उसने उन परिस्थितियोंकी जाँच की। केवल एक ही मामलेमें गवाहीसे इस प्रकारका सबूत मिला। आम तौरपर गवाहोंने यह बयान दिया कि वे आत्महत्याका कोई कारण नहीं बता सकते। और अगर जिन लोगोंको जानकारी है वे ही कुछ न बतायें तो बहुतसे मामलों में सम्भावित कारण मालूम करना भी असम्भव है मालूम होता है नेटालके भारतीयों में १९०२ में सामान्य मृत्यु-संख्याकी दर ३३३ रही