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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तीयोंपर किसी भी तरह नहीं आता है और जो हालत हुई है उसके लिए अधिकारी ही जिम्मे-दार हैं; क्योंकि उन्होंने उस स्थानको स्वच्छ हालत में रखनेके अपने प्रथम कर्त्तव्यकी अवहेलना की थी। सैकड़ों भारतीयोंको, जो बेघर-बार हो गये हैं और जिनका माल नष्ट कर दिया गया है, अभीतक कोई मुआवजा नहीं दिया गया है और न उनके पास रहने के लिए कोई निश्चित स्थान हैं। हम कहना चाहते हैं कि संसारमें ऐसे बहुत कम समाज पाये जायेंगे जो उसी तरहका व्यवहार करेंगे जैसा भारतीयोंने इस अग्नि परीक्षामें और अत्यन्त कष्टदायक कठिनाइयोंके बीच किया है। क्या सरकार इसपर ध्यान देगी? क्या रैंड प्लेग-समिति, जो लोगोंके निकट सम्पर्क में आई है, भारतीयोंको उचित श्रेय देनेका साहस करेगी? क्या श्री लिटिलटन किसी भी प्रतिबन्धक कानूनपर मंजूरी देते समय इन तथ्योंपर विचार करेंगे? और क्या भारतीयोंके इंग्लैंड स्थित मित्र अधिकारियोंको इनके सम्बन्धमें विश्वास दिलायेंगे और यह ध्यान रखेंगे कि जो काम इतनी अच्छी तरह किया गया है वह व्यर्थ न चला जाये?

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०४

१९२. सर फीरोजशाह

डाकसे आये पत्रोंसे यह अत्यन्त आनन्ददायक समाचार मिला है कि माननीय श्री फीरोजशाह मेहताको[१] 'सर' की उपाधि प्रदान की गई है। अगर कोई व्यक्ति इस सम्मानका पात्र था तो वे निश्चय ही सर फीरोजशाह हैं। उनकी गिनती सबसे पुराने लोक-सेवकों में है। वे बम्बई नगर-निगमके अध्वर्यु हैं और शायद उस महान निगमका कोई एक भी अन्य सदस्य उतनी बैठकोंमें शामिल नहीं हुआ जितनीमें वे शामिल हुए हैं। उतने लम्बे समयतक निगमको सेवा भी किसी अन्य सदस्यने न की होगी, जितने समयतक सर फीरोजशाहने की है। वे बम्बई प्रान्त के बेताज बादशाह हैं और प्रथम नेता माने जाते हैं। भारतके अन्य किसी प्रान्त में किसी भी अन्य व्यक्तिको यह सम्मान प्राप्त नहीं है। उनको अपनी बेमिसाल योग्यता और तजुर्बेकारी, प्रभावपूर्ण भाषण शक्ति, व्यवहार कुशलता और विरोधियोंके प्रति अचूक शिष्टताके फलस्वरूप जनतामें बड़ी लोकप्रियता और सरकारमें प्रतिष्ठा प्राप्त हुई है। उन्होंने बम्बई विधानसभा के कई कानूनोंपर अपनी छाप डाली है और कलकत्ता-स्थित इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौन्सिलमें सेवाका जो थोड़ा-सा मौका मिला उसमें भी अपने लिए एक अनोखा स्थान बना लिया है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि सर फीरोजशाह राष्ट्रीय कांग्रेसके साथ हमेशा सम्बद्ध रहे हैं और दो बार उस संस्थाके अध्यक्ष भी बने हैं। इसलिए उनका 'सर' बनाया जाना उन माननीय महानुभावका जितना सम्मान है उतना ही कांग्रेसका भी है। हमारा खयाल है। कि सरकारने उनका सम्मान करके खुद अपना सम्मान किया है। इस तरह किसी कांग्रेस नेताका ऐसा सम्मान पहली ही बार नहीं किया गया है। माननीय श्री गोखलेको भी अभी हालमें सी० आई० ई० का खिताब दिया गया है। जैसा कि पाठकोंको मालूम है, माननीय गोखले इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौन्सिलमें महत्त्वपूर्ण सेवा करते आ रहे हैं। हम देखते हैं कि हाल ही में खिताब

  1. देखिए खण्ड १, पृष्ठ ३९५ ।