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लॉरेंसो मासिके ब्रिटिश भारतीय


पानेवालोंम माननीय शंकरन नायरका[१] भी नाम है। ये सब शायद समयके सूचक चिह्न हैं। मगर साथ ही इनसे यह भी प्रकट होता है कि सरकार उस अच्छे कामसे पूरी तरह परिचित है जो भारतीय समाजके नेताओं द्वारा भारतके भिन्न-भिन्न भागों में उसके लिए किया जा रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ६-८-१९०४

१९३. लॉरेंसो मासिके ब्रिटिश भारतीय

कुछ समय पूर्व " फेयरप्ले " (इन्साफ) नामसे एक संवाददाताने हमारे सहयोगी स्टारमें लेख लिखकर लॉरेंसो मासिके ब्रिटिश भारतीयों की स्थितिकी तुलना ट्रान्सवालके भारतीयोंकी स्थितिसे की थी| संवाददाताके कथनानुसार डेलागोआ बेके भारतीय यह कहते हैं:

हम यहाँ पुर्तगाली शासनमें पूरी तरह और बिलकुल आजाद हैं और यद्यपि हम सब ब्रिटिश प्रजाजन हैं तो भी ट्रान्सवालकी अपेक्षा यहाँ हमारी हालत सौ गुनी अच्छी है।

इसपर स्टारका नियमित संवाददाता लॉरेन्सो मासिसे हमारे सहयोगीको लिखता है:

सम्भव है, लेखकको यह बात नयी ही मालूम हो कि संसद (कॉरटिस) की पिछली बैठक में एक कानून समयाभावसे छोड़ दिया गया था। और अब वह अगली बैठकमें लाया जाना है। इसके अनुसार नवागन्तुक भारतीयोंपर प्रति व्यक्ति ८० पौंड वार्षिक कर लगाया जाना है। कहा जाता है कि यह कानून सरकारने मंजूर कर लिया है। अगर माननीय सदस्य श्री कारवेलोका उक्त प्रस्ताव कानून बन जाता है, तो 'फेयरप्ले' महाशय अपने मित्रोंकी भर्तीके लिए पुर्तगाली इलाकेके अलावा कोई अन्य स्थान तलाश करेंगे। अब अगर यह जानकारी, जो स्टारके संवाददाताने दी है, सही है तो इससे एक बार और जाहिर होता है कि डेलागोआ बेके पुर्तगाली लोग नहीं, बल्कि वे आम यूरोपीय व्यापारी भारतीयोंके विरुद्ध हैं, जिनसे कि डचेतर गोरोंका दल बना है। वे ही लोग पुर्तगाली सरकारसे अपनी बात मनवाने में सफल हो गये हैं, ताकि व्यापारमें उन्हें एकाधिकार मिल जाये। ट्रान्सवालमें पिछली हुकूमत के जमाने में उन्होंने ऐसा ही किया था और भूतपूर्व राष्ट्रपति क्रूगरको कानून मंजूर करनेके लिए मना लिया था। यूरोपीय डेलागोआ-बेमें अभी हालमें ही बड़ी संख्या में आबाद हुए हैं और यदि उन्होंने ब्रिटिश भारतीयोंपर पाबन्दियाँ लगानेके लिए पुर्तगाली सरकारको राजी कर लिया हो, तो हमें इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यदि श्री लिटिलटन कुछ भी दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश भारतीयोंके अधिकारोंकी रक्षा करना चाहते हों तो उन्हें बहुत सावधान रहना पड़ेगा। और एक दफा पुर्तगाली सरकारने ब्रिटिश भारतीयों-पर प्रतिबन्ध लगाना शुरू कर दिया तो समस्या बेशक कहीं अधिक पेचीदा बन जायेगी।

  1. सर चेटूर शंकरन नायर (१८५७-१९३४), मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायाधीश और १८९७ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसके अध्यक्ष।