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पुलिस सुपरिंटेंडेंट और ब्रिटिश भारतीय


खानोंके परवानों की संख्या कम रखनेकी बराबर कोशिश की है। और मेरे खयालसे नगर इस बात के लिए बधाईका पात्र है कि यहाँ ब्रिटेन या उसके उपनिवेशोंके इसकी बराबरीके किसी भी बन्दरगाही नगरकी तुलनामें शराबको बिक्रीके परवाने कम हैं, क्योंकि हमारे यहाँ सिर्फ ५ होटल, १८ होटल और शराबखाने मिले-जुले, १७ शराब-खाने और ७ बोतल भण्डार हैं। मुझे यह कहते हुए भी खुशी होती है कि ब्रिटेनके नगरोंकी अपेक्षा इस नगरमें बहुत कम यूरोपीय स्त्रियाँ मदिरापान करती हैं। पिछले साल शराबखोरीके अपराधमें १,३१७ यूरोपीय गिरफ्तार किये गये थे। उनमें सिर्फ २४ औरतें थीं और १९ वर्षसे कम आयुका सिर्फ एक लड़का था। इसकी तुलना में ब्रिटेनके बन्दरगाही नगरोंके बारेमें पुलिसके आंकड़ोंसे पता चलता है कि उनमें से कुछ नगरों में शराबखोरीमें पकड़े गये लोगों में ६० प्रतिशत स्त्रियाँ थीं और १९ वर्षसे कम उम्र के लड़कोंकी संख्या एक हजारमें ५० थी। शराबखोरीके जुर्म में पकड़े गये भारतीय और वतनी लोगों में स्त्रियोंकी संख्या क्रमशः ९ और १० फीसदी है।

परन्तु आज हमारा सारा जोर रिपोर्टके एक छोटे वाक्यपर ही रहेगा, जिसमें सुपर-टेंडेंट कहते हैं कि “शराबखोरीमें गिरफ्तार भारतीयों में स्त्रियाँ ९ फीसदी हैं।" यह कोई नयी बात नहीं है। फिर भी यह सोचकर हृदय विदीर्ण होता है कि जिन भारतीय स्त्रियोंने अपने देशमें कभी यह नहीं जाना कि मदिरापान क्या होता है, वे यहाँ सड़कोंपर नशे की हालत में पाई जायें। कुछ मामले बेशक ऐसे होते हैं जिनपर किसीका काबू नहीं होता, और पतिता स्त्रियोंकी दुर्बलताकी सफाई में बहुत-कुछ कहा जा सकता है। परन्तु हमारी धारणा है कि जबतक नगरमें एक भी भारतीय स्त्री नशेकी हालतमें पाई जायेगी तबतक अवश्य ही भारतीय समाजपर लांछन रहेगा। हमें समाजके अधिकारोंकी हिमायत करनेका फर्ज अक्सर अदा करना पड़ा है। आज हमारा विशेष अधिकार हो गया है कि हम भारतीय समाजका ध्यान एक बहुत प्रत्यक्ष कर्तव्यकी ओर आकर्षित करें, जिसका उसको स्वयं अपने प्रति और अपनी नारी जातिके प्रति पालन करना चाहिए। हम खुद तो चाहते हैं कि भारतीय स्त्रियोंको नगरके किसी भी शराबखानेमें शराब देना जुर्म करार दे दिया जाये; परन्तु इससे भी अधिक सन्तोषजनक यह होगा कि जहाँतक भारतीय स्त्रियोंका सम्बन्ध है, समाज खुद इस अभिशापके विरुद्ध लड़ाई छेड़े; और हमें कोई शक नहीं कि इसमें सफलता आसानीसे प्राप्त की जा सकती है। नगर में भारतीय संस्थायें हैं और काफी भारतीय युवक हैं, जिनके पास बहुत समय है। वे मद्य-निषेधका अत्यावश्यक कार्य कर सकते हैं और इस कार्य में सब धर्मोके लोग उपयोगी ढंगसे उनका हाथ बँटा सकते हैं; क्योंकि उनके पास काम करनेकी सब सुविधायें हैं और उपयुक्त संगठन भी है। फिर शिक्षित भारतीय महिलायें भी हैं जो इस मामलेमें बहुत सहायक हो सकती हैं। यह बिलकुल सम्भव होना चाहिए कि छोटी-छोटी टोलियाँ हरएक भारतीय शराबखाने-पर जायें और स्त्रियों और शराब बेचनेवालोंसे बात करें। क्योंकि हम नहीं समझते कि शराब बेचनेवाले भी, जो ज्यादातर भारतीय हैं, औरतोंके हाथ शराब बेचने से इनकार करनेके लिए राजी क्यों न किये जायें। हमें इस प्रश्नके गुणावगुणपर विचार करनेकी जरूरत नहीं है, क्योंकि इस बारेमें तो राय एक ही हो सकती है। खास तौरपर स्त्रियोंमें शराबखोरीके जो भयंकर परिणाम होते हैं उन्हें बताना जरूरी नहीं है। इस अपराधसे (क्योंकि यह अपराधसे कुछ भी कम नहीं है) आगामी सन्ततिपर जो प्रभाव पड़ जाता है वह अक्सर अमिट होता