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१९९. भारत ही साम्राज्य है

हमारे सहयोगी स्टारमें "भारत और साम्राज्य" पर एक अग्रलेख है। उसका आधार है। लॉर्ड कर्जनका गिल्डहॉलका भाषण[१] और उसमें भारतके महत्त्त्वके सम्बन्ध में लॉर्ड कर्जनके विचारोंका समर्थन किया गया है। पत्रने उनके मुंहसे निकले हुए निम्न विचार उद्धृत किये हैं एवं उनसे अपनी सहमति प्रकट की है। वे कहते हैं:

अगर आप अपने नेटालके उपनिवेशको किसी जबरदस्त दुश्मन के हमले से बचाना चाहते हैं तो आप भारतसे मदद माँगते हैं और वह मदद देता है; अगर आप पीकिंग गोरे कूटनीतिक प्रतिनिधियों को कत्लेआमसे बचाना चाहते हैं और जरूरत सख्त होती है तो आप भारत सरकारसे सैनिक दल भेजनेको कहते हैं और वह भेज देती है; अगर आप सोमालीलैंड के पागल मुल्लासे लड़ रहे हैं तो आपको जल्दी ही पता लग जाता है कि भारतीय सेना और भारतीय सेनापति उस कामके लिए सबसे ज्यादा योग्य हैं और आप उन्हें भेजने के लिए भारत सरकारसे अनुरोध करते हैं; अगर आप साम्राज्यकी अदन, मॉरिशस, सिंगापुर, हांगकांग, टीनसिन या शान-हाई-क्वान जैसी किसी सबसे बाहरी चौकी या जहाजी कोयला-चौकीकी रक्षा करना चाहते हैं तो भी आप भारतीय सेनाकी ओर ही देखते हैं; अगर आप युगांडा या सूडानमें कोई रेलमार्ग बनाना चाहते हैं तो आप भारतसे ही मजदूरोंकी माँग करते हैं।[२]

परन्तु हमारे सहयोगीको ट्रान्सवालमें बसे हुए भारतीयोंकी ओरसे उपनिवेशियोंको एक शब्द भी नहीं कहना है। उपनिवेशों में अंग्रेजोंके जो वंशज हैं उन्हें अपने ब्रिटिश जातीय होनेपर गर्व तो है और उनमें ब्रिटिश साम्राज्यसे प्राप्त विशेष अधिकारोंको भोगनेकी लालसा भी है, परन्तु खास तौरपर जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध है, वे उस जिम्मेदारीसे बचना चाहते हैं, जो साम्राज्यकी सदस्यतासे उनपर आ जाती है। वे भारत के साथ ब्रिटिश सम्बन्धसे मिलनेवाले गौरवको अपनाने और भारतीय सैनिकोंकी बहादुरीकी तारीफ दूरसे करनेके लिए तो तैयार हैं; परन्तु जब उन्हीं सैनिकोंके भाईबन्दोंके साथ अच्छे बरतावका मामला आता है तब वे अपनेको अलग रखना चाहते हैं। इसलिए यह बड़ी दयनीय बात है कि हमारे सहयोगीने लॉर्ड कर्जनके भाषण-पर विचार करते समय अपने बहुसंख्यक पाठकोंके सामने 'भलाईके बदले भलाई' का बहुत ही प्रारम्भिक और सरल कर्तव्य स्वीकार करनेका सिद्धान्त नहीं रखा। और इस तरह उसे जो अव-सर मिला था उसने उसका उपयोग नहीं किया। जैसा सर मंचरजीने कहा है, यह नहीं हो सकता कि उपनिवेशी लोग अनिश्चित कालतक गुस्ताखीसे ३० करोड़ भारतीयोंको अपमानित करते रहें और उनकी भावनाओंको कटु बनाते रहें। धीरे-धीरे, किन्तु निश्चित रूपसे उपनिवेशोंकी बहिष्कार नीति भारतीय लोगोंके मानसपर गहरा असर कर रही है। और, जब यह पता चल जायेगा कि भारतीयोंके लिए ब्रिटिश नागरिकता या ब्रिटिश सम्बन्धके विशिष्ट अधिकारका

  1. जुलाई २०, १९०४ को दिये गये भाषणसे।
  2. जुलाई २०, १९०४ को दिये गये भाषणसे।