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गिरमिटिया भारतीयोंमें आत्महत्याएँ


भारतसे बाहर कोई अर्थ नहीं है और चाहे उनकी प्रतिष्ठा अथवा योग्यता कुछ भी हो, उपनिवेशों में वे अवांछनीय हैं, तब भारत सरकारका काम अधिकाधिक कठिन हुए बगैर नहीं रह सकेगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २०-८-१९०४

२००.गिरमिटिया भारतीयोंमें आत्महत्याएँ

हमने गिरमिटिया भारतीयोंमें आत्महत्याओंकी ऊँची दरके बारेमें कुछ बातें लिखी थीं। उनके सम्बन्धमें अभी कुछ समयसे कुछ संवाददाता नेटाल मर्क्युरीको पत्र लिख रहे हैं। इन पत्र-लेखकोंने गुमनाम रहना पसन्द किया है और यद्यपि हम प्रायः इस अखबारमें छपी बातोंके बारेमें दूसरे अखबारोंमें— खास तौरपर बनावटी नामोंसे—प्रकाशित पत्रोंकी ओर ध्यान नहीं देते, फिर भी हमारी इच्छा होती है कि सचाईके स्पष्टीकरण के लिए कुछ बातें लिखें। इनमेंसे एक पत्र-लेखकने अपनेको "एक गोरा" बताते हुए एक पत्र लिखा है, जिसकी कोई तुक नहीं है। वह इस पत्र के सम्पादकीय विभाग और प्रबन्ध विभागके कर्मचारियोंकी चर्चा करता है और अपने मनमें हिन्दुओं और मुसलमानोंके भेदभावोंकी कल्पना करता है और अपनी यह राय देता है कि यह पत्र भारतीय समाजका प्रतिनिधित्व नहीं करता। हम इनमेंसे किसी भी आरोपका जवाब देना नहीं चाहते। यह पत्र किसीका प्रतिनिधित्व करता है या नहीं, इससे उन बातोंकी सचाईमें कोई फर्क नहीं पड़ता जो हमने आत्महत्याओंके बारेमें लिखी हैं। लेकिन इस बीचमें हम "एक गोरे" का ध्यान उस विज्ञापनकी[१] तरफ खींचना चाहते हैं जो इस पत्रके सम्बन्धमें, शुरू-शुरू अंकोंमें निकला था। उसपर समाजके तमाम प्रभावशाली नेताओंके हस्ताक्षर थे और अगर पत्र-लेखक सूचीको देख जानेका कष्ट करेगा तो उसे अपने अधिकांश आरोपोंका उत्तर मिल जायेगा। इससे वह उस पत्रके उद्देश्योंका भी अध्ययन कर सकेगा। लेकिन जब वह लेखक यह कहता है कि भारतीयोंकी आत्महत्याओंके विषयमें भारतीय संरक्षककी रिपोर्टपर चर्चा करनेका हमारा उद्देश्य गोरोंको बदनाम करना है तब हम ऐसे किसी भी लांछनके विरुद्ध आपत्ति प्रकट करना उचित समझते हैं। हम अपने इस विषयके[२] पहले अग्रलेखसे निम्नलिखित अंश देते हैं और इस बारेमें निर्णय "एक गोरे" और उसीकी तरह सोचनेवाले दूसरे लोगोंपर छोड़ देते हैं:


हम इन भयंकर आँकड़ोंसे मालिकोंके विपक्षमें कोई परिणाम निकालना नहीं चाहते। परन्तु हम भारतीयों और मालिकोंके हितमें पूरी तरह जाँच करनेके लिए जोर अवश्य देते हैं और हमारे विचारमें कारणकी जाँचके लिए एक निष्पक्ष आयोगसे कम कोई चीज न्यायके उद्देश्यको पूरा नहीं कर सकेगी।

हमने खेत मालिकोंपर किसी भी प्रकारसे कोई लांछन नहीं लगाया है। हमें तो सब सम्बन्धित जनोंके हितमें सिर्फ जाँचकी ही जरूरत है। जो आंकड़े हमने पेश किये हैं वे भयंकर हैं। इससे कोई इनकार नहीं करेगा। परन्तु "आंग्लभारतीय" ने इनपर शंका की है।

  1. देखिए, इंडियन ओपिनियन १२-६-१९०३। यह विज्ञापन गुजराती, हिन्दी और तमिलमें प्रकाशित हुआ था और उसपर इन भाषाओंको बोलनेवाले प्रतिनिधि भारतीयोंके हस्ताक्षर थे। देखिए खण्ड ३, १४ ३३७ के सामने दिया गया चित्र।
  2. देखिए, " गिरमिटिया भारतीय " ४-६-१९०४