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प्रार्थनापत्रः उपनिवेश-सचिवको


साथ करते थे और ब्रिटिश प्रजाजनोंके एक वर्ग के अधिकार प्राप्त करनेके लिए दूसरे वर्ग के अधिकार बेच देनेके लिए तैयार नहीं थे? लॉर्ड मिलनरको अपने कट्टर साम्राज्य-प्रेमी होनेपर गर्व है, किन्तु क्या परमश्रेष्ठका साम्राज्य-प्रेम केवल दक्षिण आफ्रिकातक ही सीमित है? श्री लिटिलटनका खरीता पढ़ कर प्रसन्नता भी हुई और परेशानी भी। स्थानीय सरकार १९०२ के शुरू में जो कुछ देनेके लिए तैयार थी, उससे अब पीछे हट गई है। पिछले सालकी बदनाम बाजार सूचना ३५६ को उचित बताते हुए लॉर्ड मिलनरने जो कुछ करनेका वचन दिया था वह भी अब वापस ले लिया गया है। परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर एक निष्पक्ष ढंग अपनानेके बजाय अब एशियाई-विरोधी नीतिके व्याख्याता बन बैठे हैं। यह सब दुःखद है। इसलिए श्री लिटिलटन भारतीयोंके पक्ष, साम्राज्य-नीति और ब्रिटिश राजनयिकों और मन्त्रियोंके दिये हुए वचनोंका समर्थन जोरोंसे करते हैं। वे निश्चित रूपसे बताते हैं कि इस प्रश्नका एकमात्र हल ब्रिटिश भारतीयोंको वाजिब अधि-कार देना ही है। परन्तु जब हम उनके अन्तिम प्रस्तावोंको देखते हैं तब हमें उनका खरीता पढ़ कर फिर दुःख होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन प्रस्तावोंसे उन्हें सिर्फ मौजूदा व्यापारिक परवानोंकी रक्षा ही अभीष्ट है और अनिवार्य पृथक्करण के सिद्धान्त और रंगके आधारपर कानून बनानेके बड़े उसूल उनसे अछूते रह जाते हैं। परन्तु यह सब बादकी बात है, क्योंकि उपनिवेश-मन्त्रीको जो छोटी-सी चीज अभीष्ट है ट्रान्सवाल सरकार वह भी देने को तैयार नहीं है। हमें कोई शक नहीं है कि विधान परिषदका प्रस्ताव तार द्वारा ब्रिटिश सरकारको भेज दिया गया है और वह जो रुख इख्तियार करेगी उसपर बहुत कुछ निर्भर होगा।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-८-१९०४

२०२. प्रार्थनापत्र: उपनिवेश-सचिवको

[सितम्बर ३, १९०४ के पूर्व[१]]

सेवामें
माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया
महोदय,

परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरने परमश्रेष्ठ गवर्नरको ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंके दर्जे के बारेमें इस साल १३ अप्रैलको जो खरीता भेजा है उसमें कुछ ऐसी बातें हैं जिनसे मेरे संघको घोर दुःख हुआ है। इसलिए मुझे गवर्नर महोदयकी सेवामें नम्रतापूर्वक निम्न प्रार्थनापत्र पेश करने और यह निवेदन करनेका आदेश मिला है कि यह महामहिम सम्राट्के मुख्य उपनिवेश-मन्त्रीको भेज दिया जाये।

खरीतेमें सिफारिश की गई है कि उसमें ब्रिटिश भारतीयोंसे सम्बन्धित मौजूदा कानूनमें जो परिवर्तन सुझाये गये हैं वे तुरन्त स्वीकार कर लिये जायें। ये सुझाव दो घटनाओंके आधार पर दिये गये हैं। पहली घटना हबीब मोटन और सरकारके बीचका परीक्षात्मक मुकदमा है जिसकी जड़ में, परमश्रेष्ठके शब्दों में, आत्मरक्षाकी समस्या है। और दूसरी वह प्रमुखता है जो इस प्रश्नको गिल्टीका प्लेग फैलनेसे प्राप्त हुई है।

  1. जिस तारीखको प्रार्थनापत्र दिया गया वह उपलब्ध नहीं है।