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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


दूसरी घटनाको पहले लें तो मेरा संघ निवेदन करना चाहता है कि यह बात अत्यन्त निश्चित रूपसे सिद्ध की जा चुकी है कि बस्तीके निवासी भारतीय प्लेगके आरम्भके लिए किसी भी तरह जिम्मेदार नहीं थे। मेरा संघ बखुशी इस मामले में जबान बन्द रखता; परन्तु वह उन वक्तव्योंके लिए जिम्मेदार है जो इस मामलेमें सर मंचरजी भावनगरीको भेजे गये हैं; और चूँकि परमश्रेष्ठने उनकी जानकारीका खण्डन किया है, इसलिए मेरे लिए अपने संघके प्रति न्याय करने की दृष्टिसे एक संक्षिप्त स्पष्टीकरण देना जरूरी हो गया है।

यहाँ यह स्मरणीय है कि सरकारी तौरपर पिछली १८ मार्च प्लेग शुरू होनेकी तारीख घोषित की गई है। पिछले साल २६ सितम्बरको जोहानिसबर्ग नगर परिषदने यह बस्ती अधि-कृत कर ली थी। उस तारीख से पहले बस्तीमें प्रत्येक बाड़ेका मालिक उसकी उचित सफाईके लिए जिम्मेदार था। इसलिए मालिकोंने बाड़ोंको साफ-सुथरी हालतमें रखनेके लिए नौकर रखे थे, और ऐसा मालूम हुआ है कि उस तारीखतक बस्तीमें कोई संक्रामक रोग पैदा नहीं हुआ था और भारतीय समाज छूतकी या उड़नी बीमारियोंसे खास तौरसे मुक्त था। २६ सितम्बर १९०३ से सफाईका नियन्त्रण नगर परिषदके हाथोंमें चला गया। मालिकोंको कुछ कहनेका अधि-कार न तो इस बारेमें रह गया था कि बाड़ोंकी व्यवस्था किस तरह रखी जाये और न इस बारेमें कि किरायेदार कौन रखे जायें। हर बाड़ेकी सफाईके लिए एक या अधिक आदमी रखनेके बजाय नगरपालिकाने सारे इलाकेकी देखभालके लिए चन्द आदमी नौकर रख लिये। नतीजा यह हुआ कि वे इस कामको बिलकुल नहीं सँभाल सके। आबादी भी बहुत बढ़ गई, क्योंकि नगर परिषदने बस्तीकी गुंजाइशकी परवाह न करके किरायेदार रख लिये। इस असन्तोषजनक स्थिति के बारे में बहुत बार शिकायतें की गई; मगर किया कुछ नहीं गया। डॉक्टर पोर्टरको आवश्यक चेतावनी देते हुए यह पत्र लिखा गया:

२१ से २४ कोर्ट चेम्बर्स
फरवरी १५, १९०४

सेवामें
डॉ० सी० पोर्टर
स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारी
जोहानिसबर्ग
प्रिय डॉ० पोर्टर,

आप पिछले शनिवारको भारतीय बस्ती देखने गये और उसकी ठीक-ठीक सफाईके काममें दिलचस्पी ले रहे हैं, इसके लिए में आपका बहुत ही आभारी हूँ। मैं वहाँकी स्थिति के बारेमें जितना अधिक विचार करता हूँ वह मुझे उतनी ही बुरी मालूम होती है। और मेरा खयाल है कि यदि नगर परिषद असमर्थताका रवैया अपना लेती है तो वह अपने कर्तव्यसे च्युत होती है; और में यह भी जरूर आदरपूर्वक कहता हूँ कि लोक स्वास्थ्य समितिका यह कहना किसी भी तरह उचित नहीं हो सकता कि वहाँ न तो भीड़-भड़क्का रोका जा सकता है और न गन्दगी। मुझे विश्वास है कि इस मामले में बरबाद किया गया एक-एक पल विपत्तिको जोहानिसबर्गके नजदीक लाता है, और उसमें ब्रिटिश भारतीयोंका कोई भी दोष नहीं है। जोहानिसबर्गके सब स्थानोंमें से भारतीय बस्ती ही शहरके सारे काफिरोंको भरनेके लिए क्यों चुनी जाये, यह मेरी समझमें ही नहीं आता। जहाँ लोक-स्वास्थ्य समितिकी सफाई सम्बन्धी सुधारकी बड़ी-बड़ी योजनाएँ