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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


मुझे भरोसा है कि आप इस पत्रको उसी भावनासे अंगीकार करेंगे जिस भावनासे यह लिखा गया है; और मुझे आशा है कि मैंने अवसरको विकटताको देखते हुए आवश्य-कतासे अधिक जोरदार भाषाका उपयोग नहीं किया है। कहने की जरूरत नहीं कि इस दिशामें मेरी सेवाएँ पूरी तरहसे आपके और लोक-स्वास्थ्य समितिके सुपुर्द हैं। और मुझे कोई शक नहीं कि सफाईके मामलेमें भारतीय समाज जो कुछ कर सकता है वह कर दिखानेका, अगर नगर परिषद उसे उचित मौका भर दे दे तो, मेरे मतसे, बहुत भूल न होगी।

आप इस पत्रका जैसा चाहें उपयोग कर सकते हैं।अन्तमें, मैं आशा करता हूँ कि समाजके सामने जो खतरा है उसका कोई उपाय तुरन्त खोज निकाला जायेगा।


आपका विश्वासपात्र,
मो० क० गांधी

डॉ० पोर्टरने जवाब में यह पत्र लोक-स्वास्थ्य समितिको भेज दिया; किन्तु उसने कोई कार्रवाई नहीं की। अकस्मात् असाधारण वर्षा हो गई और उससे वही प्लेग फैल गया जिससे लोग इतने डर रहे थे।

इस प्रकार मेरे संघकी नम्र रायमें बस्तीमें रहनेवाले भारतीयोंने कोई कसर बाकी नहीं रखी थी। यह उनकी विशुद्ध लाचारी ही थी। दूसरी ऐसी कोई जगह नहीं थी जहाँ वे जाते। बस्ती छोड़कर नगरपर धावा बोलना असम्भव था। तत्काल कार्रवाईकी प्रार्थना करनेपर भी अधिकृत बस्तीके बदले में उनके बसनेके लिए कोई स्थान मुकर्रर नहीं किया गया। बस्तीकी हालत के बारेमें डॉ० पोर्टरकी राय, जिसपर मेरे संघने आपत्ति की है, १९०२ में दी गई थी और फिर भी अधिग्रहण के समयतक (अर्थात् लगभग एक वर्षतक) बस्तीको उसी अवस्था में रहने दिया गया और कोई छूतकी बीमारी न फैली।

इस प्रकार यहाँ डाँ० जॉन्स्टन और स्वर्गीय डॉ० मैरेसने[१] जो गवाही दी थी उसकी सचाईका प्रत्यक्ष प्रमाण मौजूद है। असल बात यह है कि डॉ० पोर्टरने इस बस्तीकी जो हालत बयान की है वह तभी हुई जब नगर परिषदने उसको अपनी सम्पत्ति बना लिया और भारतीय उसकी देखभाल करनेमें असमर्थ हो गये।

इतना ही नहीं, कहते हैं कि ट्रान्सवालके स्वास्थ्य-चिकित्सा अधिकारीने प्लेग फैल जानेके सिलसिले में निम्नलिखित बातें कही हैं और इस प्रकार बस्तीके भारतीयोंको जिम्मेदारीसे मुक्त कर दिया है:

जोहानिसबर्गको कुली बस्ती शर्मनाक हालत में है, और क्यों? इसलिए कि ये रहनेके लिए मजबूर हैं और अधिकारियोंने अगर श्री रेट (विधान परिषद के सदस्य) गरीब लोग दरवेमें मुर्गीके बच्चोंकी तरह वहाँ उसे बहुत ही गन्दी हालतमें रख छोड़ा है। उसमें रहनेको विवश होते तो वे भी उतने ही गन्दे होते।

यह भी ध्यान देने लायक बात है कि ट्रान्सवालमें भारतीय इस बस्ती से बाहर, अर्थात् जहाँ उनका अपने निवास स्थानोंपर नियन्त्रण है, दूसरी जातियोंसे ज्यादा इस बीमारीके शिकार नहीं

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ४३२-३६ ।