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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं । दूसरी ओर परमश्रेष्ठ सम्राट्के प्रतिनिधि और राज्यके प्रधान हैं। अतः भारतीयोंका अधिकार है कि परमश्रेष्ठ उनकी स्थितिपर निष्पक्ष रूपसे विचार करें।

इसके सिवा ब्रिटिश भारतीयोंने एक जातिके रूपमें सदा ही सम्राट्की विनम्र सेवाएँ की हैं। वे इस तथ्य की ओर परमश्रेष्ठका ध्यान आकर्षित करनेपर क्षमा चाहते हैं। सोमालीलैंड हो या तिब्बत, चीन हो या दक्षिण आफ्रिका - सभी जगह भारतीय सिपाहियोंने ब्रिटिश सैनिकोंके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाईमें सख्त मोर्चा लिया है। लॉर्ड कर्जनने अभी भारतकी साम्राज्य-सेवाओंका उल्लेख इन सुन्दर शब्दोंमें किया था :

अगर आप अपने नेटालके उपनिवेशको किसी जबरदस्त दुश्मनके हमलेसे बचाना चाहते हैं तो आप भारतसे मदद माँगते हैं और वह मदद देता है; अगर आप पीकिंगके गोरे कूटनीतिक प्रतिनिधियोंको कत्लेआमसे बचाना चाहते हैं और जरूरत सख्त होती है तो आप भारत सरकारसे सैनिक दल भेजनेको कहते हैं और वह भेज देती है; अगर आप सोमालीलैंडके पागल मुल्लेसे लड़ रहे हैं तो आपको जल्दी ही पता लग जाता है कि भारतीय सेना और भारतीय सेनापति उस कामके लिए सबसे ज्यादा योग्य हैं, और आप उन्हें भेजने के लिए भारत सरकारसे अनुरोध करते हैं; अगर आप साम्राज्यकी अदन, मारिशस, सिंगापुर, हांगकांग, टोनसिन या ज्ञान- हाई-क्वान जैसी किसी बाहरी चौकी या जहाजी कोयला-चौकीकी रक्षा करना चाहते हैं; तो भी आप भारतीय सेनाकी ओर देखते हैं; अगर आप युगांडा या सूडानमें कोई रेल-मार्ग बनाना चाहते हैं तो आप भारतसे ही मजदूरोंकी माँग करते हैं। जब स्वर्गीय श्री रोड्स आपके नव-प्राप्त रोडेशिया प्रदेशके विकासमें लगे हुए थे तब उन्होंने मुझसे सहायता मांगी। डेमरारा और नेटाल दोनोंके बगानसे लाभ उठानेके लिए भी आप भारतीय कुलियोंसे ही काम लेते हैं। मित्रमें सिंचाई और नील नदीके बाँधका काम भी आप भारतके प्रशिक्षित अधिकारियोंसे ही कराते हैं। भारतके वन अधिकारियोंकी सहायता से ही आप मध्य आफ्रिका और स्यामके वन-साधनोंका लाभ उठाते हैं और भारतके सर्वेक्षण अधिकारियों के द्वारा पृथ्वीके तमाम गुप्त स्थानोंकी खोज कराते हैं।

हम जबतक करोड़ों भारतवासियोंसे यह नहीं मनवा लेते कि हम उन्हें मनुष्य- मनुष्यके बीचमें उचित पूर्ण न्याय, कानूनके सम्मुख समानता और अत्याचार, अन्याय तथा सब प्रकारके उत्पीड़नसे स्वतंत्रता देते हैं, तबतक हमारा साम्राज्य उनके हृदयों को स्पर्श नहीं करेगा और विलीन हो जायेगा ।[१]

सर जॉर्ज व्हाइटने कर्त्तव्य-परायण प्रभुसिंहकी सेवाएँ उदारतापूर्वक स्वीकार की थीं। यह व्यक्ति लेडीस्मिथ के घेरेके वक्त बहुत जोखिम उठाकर भी बोअरोंकी गोलियोंकी बौछारमें एक पेड़पर बैठा रहा और अम्बुलवानाकी पहाड़ीपरसे बोअरोंकी तोपोंकी गोलाबारी के बारेमें एक बार भी चूके बिना चेतावनी देता रहा। जोहानिसबर्ग में वेधशालाकी पहाड़ीपर बना भार- तीय स्मारक भी दक्षिण आफ्रिकाकी लड़ाईमें भारतके योगदानका सबूत है । मेरे संघकी नम्र सम्मति है कि ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय, जो इसी जातिके हैं, खास तौरपर अपने निहित

  1. लॉर्ड कर्जन के गिल्टहॉल के भाषण के इस उद्धरण में पहले दिये गये उद्धरणसे कुछ शाब्दिक परिवर्तन थे । ये ठीक कर दिये गये हैं। देखिए, “भारत ही साम्राज्य है", २०-८-१९०४ ।