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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३०७

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पत्र : दादाभाई नौरोजीको

सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार कराने और अचल सम्पत्तिकी मिल्कियतका अधिकार बिलकुल जरूरी है । यदि आवश्यक हो तो दूसरी बातकी हदतक कुछ जमीनें केवल यूरोपीयोंकी मिल्कियत के लिए सुरक्षित रखी जा सकती हैं। मैं परवानोंकी स्थिति, पुनरुक्तिकी जोखिम उठाकर भी स्पष्ट कर दूं । कोई परवाना अधिनियम हो, उससे वर्तमान परवानोंको अछूता छोड़ देना चाहिए और जो लोग परवानों या बिना परवानोंके युद्धके पहले व्यापार कर रहे थे; किन्तु जिन्होंने ब्रिटिश अधिकारके बाद मुख्यतः इसलिए परवाने नहीं लिये कि उन्हें उपनिवेशमें लौटने ही नहीं दिया गया है, उन्हें भी अछूता छोड़ना चाहिए। परवानोंकी बाड़ोंको नियमानुसार साफ-सुथरा रखने और हिसाब-किताब अंग्रेजीमें रखनेकी शर्तका पालन न हो तो बात अलग है । नये परवानोंके बारेमें सरकार अथवा नगरपालिकाके अधिकारियोंको पूरा विवेकाधिकार रह सकता है । हाँ, अपीलका अधिकार तो रहेगा । इस तरह सारा प्रश्न सुलझ जायेगा। यह प्रस्ताव नेटालके ढंगका है. केवल इसमें सर्वोच्च न्यायालयको उसके स्वाभाविक अधिकारसे वंचित करनेवाली अत्यन्त अन्यायपूर्ण धाराको छोड़ दिया गया है । इस तथ्यसे वहाँके हर भारतीय व्यापारीकी स्थिति अनिश्चित हो गई है। यदि संघके प्रस्ताव स्वीकार कर लिये जायें तो किसी आयोगकी नियुक्ति अनावश्यक जान पड़ेगी। विधान परिषदका प्रस्ताव जैसा सुझाता है, उसके अनुसार परवाने मुल्तवी नहीं किये जा सकते । और यदि परवाने मुल्तवी नहीं किये जाते तो मेरी समझ में लॉर्ड मिलनर आयोगकी नियुक्ति शायद ही स्वीकार करें। वास्तवमें आयोगकी मांगके द्वारा मंशा परोक्ष रूपसे वही प्राप्त करनेका है, जिसे श्री लिटिलटन प्रत्यक्षतः अस्वीकार कर चुके हैं। इससे परवानोंका प्रश्न भी एक लम्बे और अनिश्चित कालके लिए टल जायेगा और यदि श्री लिटिलटनने परवानोंको मुल्तवी करनेकी बात मान ली तो भारतीय-विरोधियोंकी ओरसे किसी निश्चित विधानके लिए जल्दी नहीं मचाई जायेगी ।

मैं देखता हूँ, ऑरेंज रिवर कालोनीका प्रश्न अभीतक नहीं उठाया गया है । मेरा खयाल है कि इसे प्रमुखताके साथ ध्यानमें रखना चाहिए, क्योंकि मेरी रायमें यह एक कलंकसे कम नहीं है कि कालोनीको अबतक भारतीयों के लिए अपने द्वार बिलकुल बन्द रखनेकी सुविधा प्राप्त है ।

आपका सच्चा
मो० क० गांधी

पुनश्च : सर आर्थर लाली और उपनिवेश सचिव श्री डंकन पिछले हफ्ते लन्दनके लिए रवाना हुए हैं। क्या मैं सुझाव दे सकता हूँ कि एक मिला-जुला शिष्टमण्डल उनसे मिले और उनके साथ इस प्रश्नकी चर्चा कर ले ? सम्भवतः उनपर इसका बहुत ज्यादा प्रभाव हो सकता है और कुछ नहीं तो वे यह तो जान ही जायेंगे कि अलग-अलग मतोंके प्रभावशाली लोग इस प्रश्नपर बिलकुल एकमत हैं।

टाइप किये हुए मूल अंग्रेजी पत्र की फोटो नकल (जी० एन० २२६०) से ।