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२०८. पॉचेफस्ट्रमके भारतीय

पाँचेफस्ट्रममें जो थोड़ेसे भारतीय दूकानदार अपनी रोजी कमा रहे हैं उनसे इस नगरके लोग बहुत परेशान मालूम होते हैं। पाँचेफस्ट्रमसे प्रत्येक भारतीयको निकाल बाहर करनेकी उत्सुकता में वे आतंकका आश्रय ले रहे हैं । अभी उस दिन एक भारतीय वस्तु भण्डारमें आग लग गई थी। खयाल किया जाता है कि वह किसी आग लगानेवालेका काम था । अखबारोंका कहना है कि भारतीय डर गये हैं और बीमा कम्पनियाँ भारतीयोंके जोखिमके बीमे स्वीकार नहीं करतीं । भारतीय भण्डारोंके पड़ोस में रहनेवाले गोरे लोग भी बेचैन हो गये हैं । खुशीकी बात है कि पुलिस सतर्क मालूम होती है और इस बारेमें बहुत चिन्ता करनेका कोई कारण दिखाई नहीं देता । परन्तु हमें यह देखकर दुःख होता है कि पॉचेफस्ट्रम नगर-परिषद भी बहाव में बह गई है और उसने ऐसा प्रस्ताव पास किया है, जो एक प्रतिनिधि-संस्थाके अयोग्य है। नगर परिषदकी स्वास्थ्य समितिने निम्नलिखित सिफारिश की है :

इस बातको देखते हुए कि सरकार एशियाइयोंको बाजारोंमें अलग बसानेकी कोई कार्रवाई नहीं कर रही है, यह परिषद नगरके तमाम एशियाइयोंको आज्ञा देती है कि वे रातको भारतीय बस्तीमें चले जाया करें और वहीं रहा करें। उक्त एशि- याई व्यापारियोंको स्थानीय पत्रोंमें विज्ञापनके रूपमें एक महीने की सूचना दी जाये और इस अवधि में वे परिषदके आदेशका पालन करें। और इसके अतिरिक्त अगर आवश्यक सिद्ध हो तो परिषदके प्रस्तावपर अमल कराने में मदद देनेके लिए ५० गोरे पुलिस सिपाही भरती किये जायें और परिषद स्थानीय मजिस्ट्रेटसे आग्रहपूर्वक अनुरोध करती है कि वे इस मामले में भरसक सहायता दें।

जैसा कि हम पिछले अंकों में पहले ही बता चुके हैं, १८८६ में संशोधित १८८५ के कानून ३ में ब्रिटिश भारतीयोंको बलपूर्वक अलग बसानेकी कोई सत्ता नहीं दी गई है। इस- लिए यदि उपर्युक्त प्रस्तावपर अमल करानेका प्रयत्न किया गया तो परिषदका यह काम बिलकुल गैर-कानूनी होगा। मुख्य न्यायाधीशने हबीच मोटन बनाम सरकारके परीक्षात्मक मुक- दमे में इस धाराके सम्बन्धमें अपने फैसलेमें जो राय जाहिर की है उसके होते हुए पॉचेफस्ट्रमकी नगर परिषद के सदस्योंने यह सुझाव देना कैसे ठीक समझा कि भारतीयोंको शायद जबरदस्ती अलग बस्ती में रखवानेके लिए ५० विशेष गोरे पुलिस सिपाही भरती किये जायें- - यह हमारी समझ में नहीं आता। हम आशा ही रख सकते हैं कि सरकार उक्त प्रस्तावपर ध्यान देगी और ऐसी किसी भी कार्रवाईके विरुद्ध नगर परिषदको सचेत कर देगी। भारतीयोंको कानून द्वारा पूरा अधिकार है कि वे जहाँ भी चाहें वहाँ व्यापार करें और रहें; और उन्हें यह भी हक है कि वे उस अधिकारके अमलमें हर तरहकी हिंसासे बचावकी आशा रखें, फिर भले ही वह हिंसा पॉचेफस्ट्रमकी नगर परिषद जैसी कानून द्वारा निर्मित संस्थाकी तरफसे ही क्यों न हो ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९०४