पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 4.pdf/३१२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

२०९. केपके भारतीय

शुभाशा अन्तरीप ( केप ऑफ गुडहोप) के पिछले ३० अगस्तके सरकारी गजटमें, उपनि- वेशके स्थानापन्न प्रशासक परमश्रेष्ठ मेजर जनरल एडमंड स्मिथ ब्रुककी जारी की हुई निम्न- लिखित घोषणा छपी है :

मैं इस घोषणा द्वारा यह घोषित और प्रकट करता हूँ कि इसकी तारीखसे किसी अरब, भारतीय या और अन्य एशियाईका, चाहे वह किसी भी राष्ट्रका क्यों न हो, पूर्वोक्त इलाकों (अर्थात् गीलेकालैंड सहित ट्रान्सकाई; प्रवासी टैम्बूलैंड और बॉम्वानालैंड 'सहित टॅम्बूलैंड, पूर्वी और पश्चिमी भागों सहित पौंडोलैंड, पोर्ट सेंट जॉन्स; पूर्व श्रीक्वालैंड) - में से किसीमें भी प्रवेश करना तबतक कानून सम्मत नहीं होगा जबतक कि उसको स्थानीय मजिस्ट्रेटका हस्ताक्षरयुक्त विशेष परवाना या आदेश न मिला हो और उसपर ट्रान्सकाई इलाकेके मुख्य मजिस्ट्रेटको मंजूरी न हो। कोई ऐसा व्यक्ति किसी ऐसे परवानेके बिना उक्त इलाकों में से किसीमें प्रवेश करेगा तो वह अपराध सिद्ध होनेपर जुर्मानेका, जो २० शिलिंगसे ज्यादा न होगा, या जुर्माना न देनेकी सूरत में सादी या कड़ी कैदको सजाका पात्र होगा, जिसकी अवधि एक महीनेसे अधिक नहीं होगी और उसे उस इलाकेसे तुरन्त चले जानेका हुक्म दिया जायेगा । और यदि ऐसा व्यक्ति ऐसा हुक्म नहीं मानेगा तो वह कसूर साबित होनेपर और जुर्मानेका देनदार होगा जो २० शिलिंगसे अधिक नहीं होगा और ऐसे इलाकेकी सीमासे तुरन्त हटा दिया जायेगा ।

हम नहीं जानते कि भारतीयोंने केप उपनिवेशमें यह प्रतिबन्ध लगाने लायक क्या काम कर डाला है। सही बात यह है कि केपमें भारतीयोंकी आबादी थोड़ी है और केपके राज- नीतिज्ञोंने अक्सर यह शेखी बघारी है कि उन्होंने उस उपनिवेशमें जो कुछ किया है वह रंगद्वेष से प्रेरित होकर नहीं। श्री स्क्रीनरने वतनी मताधिकारके प्रश्नपर ब्लूमफॉटीन पोस्टको जो उत्तर लिखा है, अभी तो उसकी स्याही भी नहीं सूखी है, फिर भी हमें केपके सरकारी गजटमें उक्त घोषणा पढ़नेको मिल गई है। श्री स्क्रीनर कहते हैं कि केपके लोग इस बातके लिए बिलकुल राजी हैं कि इस देशके वतनियोंको मताधिकार प्राप्त हो और उसके लिए व्यक्तिकी योग्यता उसकी चमड़ीके रंगसे नहीं, परन्तु उसकी सभ्यताकी मात्रासे परखी जाये । यदि यह सच है तो केपके मातहत इलाकों में भारतीयोंके प्रवेशकी यह मनाही समझ में नहीं आती। अगर केपवासी भारतीयोंके लिए केपमें रहना जुर्म नहीं है तो उनके लिए उसके मातहत इलाकों में प्रवेश करना क्यों जुर्म होना चाहिए ? बेशक ऐसी विशेष परिस्थितियोंकी कल्पना की जा सकती है जिनमें ऐसा व्यवहार उचित समझा जाये; परन्तु निश्चय ही घोषणामें इस बारेमें बिलकुल कुछ नहीं कहा गया है। इसलिए हमारा यह नतीजा निकालना बिलकुल ठीक ही है कि यह मनाही केवल भारतीयोंके विरुद्ध की गई है। हम इसे भारतीय समाजका विचारहीन अपमान समझते हैं और वह केप प्रायद्वीपके द्वार नये प्रवासी भारतीयोंके लिए लगभग बन्द कर देनेसे गम्भीरतर हो गया है। दरअसल, ब्रिटिश प्रजाजनोंके नाते भारतीयोंके अधिकारोंपर किये गये इस ताजा हमलेमें उस रंग-विरोधी लहरकी तीव्र गन्ध है, जो इस समय दक्षिण आफ्रिकामें चल रही है और जिसका प्रारम्भ पिछले साल ट्रान्सवाल- सरकारकी १९०३ की