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२११. पीटर्सबर्ग के भारतीय

हमारे सहयोगी स्टारमें यह सूचना छपी है कि " एशियाई प्रश्नपर कार्रवाई करनेके लिए पीटर्सबर्ग में एक श्वेत-संघ स्थापित किया गया है। इसकी कार्य समितिमें तीन नगर परिषद के प्रतिनिधि हैं, चार स्थानीय बोअर-वीरीनिगिंग (फ्रेनिखन) के और चार अन्य प्रमुख नागरिक हैं। और यह कि नगर परिषदकी बैठक में यह निर्णय किया गया है कि नगरपालिकाओंको काम-काजके घंटे नियमित करनेका अधिकार दिलानेके सम्बन्धमें सरकारसे प्रार्थना की जाये । पीटर्सबर्ग जैसे रंगविद्वेषके अड्डे में श्वेत-संघ बनानेका विचार पैदा हुआ, इसपर हमें कोई आश्चर्य नहीं । हम इतना ही कह सकते हैं कि इन प्रवृत्तियोंके कारण हमारी समझमें नहीं आते, क्योंकि लॉर्ड मिलनरने अत्यन्त सख्तीसे उन थोडेसे भारतीय शरणार्थियोंका प्रवेश भी रोक दिया है जिन्हें हर महीने अपने घरोंको लौट आनेकी इजाजत थी। जैसा कि हमारे पाठकोंने अवश्य देखा होगा, परमश्रेष्ठने तो एक भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी-दलको ट्रान्सवालकी पवित्र सीमामें प्रवेश करनेकी अस्थायी अनुमति भी नहीं दी । तब यदि श्वेत-संघ पाँचेफस्ट्रमके पहरेदार-संघकी तरह ट्रान्सवालवासी भारतीयोंको आतंकित करना नहीं चाहते तो ये अपने अस्तित्वका औचित्य सिद्ध करनेके लिए और क्या करेंगे ? नगर-परिषदकी काम-काज बन्द करनेके घंटोंको नियमित करनेकी प्रस्तावित कार्रवाईके साथ हमारी सहानुभूति है । हमें मालूम हुआ है कि पॉचेफस्ट्रूमके भारतीय इस मामलेमें अगुआ बने हैं और उन्होंने फैसला किया है कि उनकी दूकानें उसी समय बन्द की जायेंगी जिस समय यूरोपीय दुकानें बन्द होती हैं । हम इतनी ही आशा रख सकते हैं कि पीटर्सबर्ग के भारतीय अपने पाँचेफस्ट्रमके भाइयों द्वारा उपस्थित किये गये बढ़िया उदाहरणका अनुसरण करेंगे और नगर परिषद के लिए ऐसे कोई उपनियम बनाना अनावश्यक कर देंगे। उनके लिए ऐसी कार्रवाई शोभास्पद और सामयिक होगी और शायद इससे यह सिद्ध करनेमें बड़ी सहायता मिलेगी कि वे प्रस्तावित श्वेत-संघ के भावी सदस्योंकी भावनाओंसे यथासंभव समझौता करनेके लिये उत्सुक हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १७-९-१९०४